कविता : प्रेम शब्द बड़ा मीठा-मीठा
ग्रीष्म के दिनों में आम
जाड़े के दिनों में जाम
बाग में खिले कुसुम
मंद-मंद बहती समीर
प्रेम शब्द बड़ा मीठा-मीठा
हल्के-हल्के शब्द भाव से
ह्रदय में भरा-भरा उजास
धीमे-धीमे जलता हुआ दीप
चम-चमाता चंद्रमा अति करीब
प्रेम शब्द बड़ा मीठा-मीठा
पूछना नहीं अब किससे कुछ
मूंद नयनों को रहता अपने संग...
न चाह अब किससे कुछ
ईश्वर का मिला अनुपम प्रेम
प्रेम शब्द बड़ा मीठा-मीठा।
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