गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
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Written By Author श्रवण गर्ग

रोकना होगा इस आदमी को!

रोकना होगा इस आदमी को! - Poetry, This man has to be stopped
समझाया जाना चाहिए इसे 
पागल हो गया है यह आदमी 
बांटने बैठ गया है सुर्ख़ गुलाब 
खून से सने मैदानों में!
खोलने लगा है 
दुकानें मोहब्बत की 
नफ़रत के बाज़ारों में 
देखा है पहले कहीं-कभी!
पागलपन इस तरह का?
 
हो गया है ज़रूरी अब 
बचाना तानाशाही को 
इस आदमी की गिरफ़्त से 
कर देगा तबाह यह 
एक साथ सारी चीज़ें—
बारूदों के गोदाम, खूनी तलवारें
आस्तीनों में छुपे सांप!
रोकना चाहिए इस आदमी को 
और आगे बढ़ने से!
 
क्या करेंगी अदालतें?
ये ही बचा लेगा जब 
आईन और आईना मुल्क का!
ज़मीर अवाम का!
 
हो गया है ज़रूरी अब 
बांध देना इसे मज़बूती से
बांट  देगा वरना दोनों हाथ भी 
लगाने पौधे इंसाफ़ के, 
बोने बीज जम्हूरियत के!
 
कौन लगेगा क़तारों में
घर ढोने के लिए 
मुफ़्त का अहसान!
हिल जाएंगी यूं तो 
सल्तनतें सारी, हर जगह 
टिकी हुई हैं जो 
सूई की नोकों पर!
 
हो गया है यह आदमी 
बहुत ख़तरनाक 
सिखा रहा है जनता को 
निकलना सूई के छेद से!
रोकना ज़रूरी है इसे 
रोक नहीं पाएगी 
अदालत दुनिया की कोई!
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