वृक्ष धरा का भूषण है
यह प्रतिपल नूतन आभूषण है
जन-जन का यह जीवनदाता
देश का है यह भाग्य-विधाता
कबहुं वृक्ष नहि निज फल चखता
परमारथ का संगीत सुनाता
पानी को यह संचित कर
सृष्टि को नवजीवन देता
प्राणीमात्र का जीवनदाता
पशु-पक्षी का शरणदाता
यह है अद्भुत त्यागी-बलिदानी
अचरज करते ऋषि-मुनि ज्ञानी
इसके त्याग की कहानी
गाते-सुनाते जन-मन वाणी
यह अनुपम धरोहर है राष्ट्र की
इसे सहेजो प्राण त्यागकर
यदि तुम इसे सहेज पाओगे
सृष्टि के संरक्षक कहलाओगे।