'मां! तुम याद बहुत आती हो
जब मैं संकटों में घिरकर
नीले अम्बर को निहारता हूं
तुम तारा बनकर टिमटिमाती हो
दूर गगन में कहीं दिख जाती हो।'
'मां! तुम याद बहुत आती हो
जब जीवन के झंझावातों में
परेशान हो, निराश हो निढाल हो जाता हूं
तुम थपकी बनकर आती हो
लोरी खूब सुनाती हो'
'मां! तुम याद बहुत आती हो
वैसे तो मेरी सफलता के हैं
कोटि-कोटि ग्राहक
लेकिन जब भी मैं पराजित हो जाता हूं
तुम मेरी हार को हंसकर स्वीकारती हो
मुझे फिर से निष्ठा, कर्म और आत्मविश्वास का
अमृत पिलाती हो, खड़ा होना सिखाती हो'
'मां! तुम याद बहुत आती हो
जीवन के झंझावात तमाम कंटकों में
तुम मुझे गुलाब बन मुस्कुराना सिखाती हो
निश्छल, निर्मल, निर्झर, पावन गंगा-सी
तुम मेरे जीवनपथ में बहती जाती हो'
'मां! तुम याद बहुत आती हो
पतित-पावनी बनकर तुम
मेरे जीवन को संबल दे जाती हो,
पतझड़ के मर्मघात से बसंत बहार आता है
ऐसा विश्वास मेरे जीवन के हर पल में जगा जाती हो'
'मां! तुम याद बहुत आती हो'।