कविता : फूल कांटे
- आशुतोष सिंह
चेहरे के पीछे छुपा एक चेहरा
घाव करें वही बस गहरा
फूल नहीं बस कांटे दे दो।
याद रहे बस असली है।
गर्दन मैं भले कटा लूंगा
पर झूठ कभी ना बोलूंगा
दु:ख जाएं कितना भी
सिर झुक जाए कितना भी
फूल नहीं बस कांटे दे दो।
याद रहे बस असली है।
तलवार भले जख्म देती है,
बोली दल पे वार कर।
दवा लगा जख्म भर जाएं
पर दल का घाव यूं ही रह जाए।
फूल नहीं बस कांटे दे दो।
याद रहे बस असली है।