रविवार, 20 अक्टूबर 2024
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कविता : जाएं तो जाएं कहां

कविता : जाएं तो जाएं कहां - Poem
जाएं तो जाएं कहां  
समझे तो समझे क्या जमाने को 


 
जिन्हें हम अपना समझ कर हाले दिल सुनाते हैं  
वही हमारा दर्द-ए-दिल बढ़ाते हैं बेगानों की तरह 
हमें तो ना अपने रास आए ना बेगाने 
बस खुदा की खुदाई का सहारा है 
कि हम तन्हाइयों में भी जिंदा हैं 
जो हमारे अपने थे, 
वो जीवन के संघर्ष में दूर हो गए 
जिन्हें हम से प्यार था, 
वो मुफलिसी की राहों में कही खो गए
दुनिया का हर रंग 
हम से बे रंग हो गया 
क्योंकि हम दुनिया के रंगों में ढल ना सके 
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