कविता : जाएं तो जाएं कहां
जाएं तो जाएं कहां
समझे तो समझे क्या जमाने को
जिन्हें हम अपना समझ कर हाले दिल सुनाते हैं
वही हमारा दर्द-ए-दिल बढ़ाते हैं बेगानों की तरह
हमें तो ना अपने रास आए ना बेगाने
बस खुदा की खुदाई का सहारा है
कि हम तन्हाइयों में भी जिंदा हैं
जो हमारे अपने थे,
वो जीवन के संघर्ष में दूर हो गए
जिन्हें हम से प्यार था,
वो मुफलिसी की राहों में कही खो गए
दुनिया का हर रंग
हम से बे रंग हो गया
क्योंकि हम दुनिया के रंगों में ढल ना सके