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आप बीती के शेयर

mehboob
अपनी हैसियत का लोहा मनवा तो दिया हमने 
सरे राहों से मंजिलों तक पहुंचा तो दिया तुझे 


 
मेरे मेहबूब तेरे इस्तकबाल में 
क्या करूं गुस्ताखिया तो हुईं मुझसे 
सजा में अपना दिल रखूं या सर ये बताना मुझे 
 
जब तुम्हें बेपर्दा देखा मैंने तो 
अपने र्ईमान को बेईमान होते देखा मैंने 
 
दर्द भी पाया मैंने, गम भी पाया मैंने बहुत मगर 
रहगुजर भी मेरी हो, मंजिल भी मेरी हो 
आरजू अब भी ये है 
 
अपनी हिमाकत से गवाया सब कुछ 
दुश्मन बनाए इतने की दोस्त बनता नहीं कोई 
 
जिंदगी के बसंत पतझड़ हो गए 
जो राजदार थे वो दर्दे दिल हो गए