हिन्दी कविता : शब्द
श्रीमती गिरिजा अरोड़ा
शब्द
जब ब्रह्मा जी के मुख से चलते हैं
शांत तेजस
वेद ऋचा बनते हैं
शब्द
जब प्रशासक के मुख से चलते हैं
आदेशात्मक और दृढ़
व्यवस्था के रस्ते हैं
शब्द
जब सिद्ध ऋषि के मुख से चलते हैं
सौम्य विनम्र
प्रार्थना के मनके हैं
शब्द
जब क्रांतिकारी के मुख से चलते हैं
उग्र तीव्र
परिवर्तन के जलसे हैं
शब्द
जब जन मानस के मुख से चलते हैं
बनते छोटी छोटी बात
जैसे पत्ते जंगल में जलते हैं
शब्द शब्द हैं
शब्दों की ताकत
कहने भर में
कभी बनें मील का पत्थर
कभी
अर्थहीन लगते हैं