शुक्रवार, 10 जनवरी 2025
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Written By WD

कविता : देर कितनी लगती है

कविता : देर कितनी लगती है - Poem
सपना मांगलिक
 
आज वक्त का साथ नहीं है
अच्छी कोई बात नहीं है
टूटे को जुड़ जाने में
बिगड़े को बन जाने में
पल भर ही तो लगती है
तकदीर सवंरने में आखिर
देर कितनी लगती है
सपना टूट गया तो क्या
कोई रूठ गया तो क्या
ये जग छूट गया तो क्या
जुदाई किसको अच्छी लगती है
कोशिश करो उसे मनाने की
मोम के पिघलने में आखिर
देर कितनी लगती है
सब टेढ़ा कहीं सीध नहीं है
अंखियों में भी नींद नहीं है
वक्त-वक्त की बात है मानुष
जुट जाओ पूरी मेहनत से अपनी
सपने सच होने में आखिर
देर कितनी लगती है
हारकर जीत जाने में
बस पल भर ही तो लगती है
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