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नई कविता : एक सवाल

नई कविता : एक सवाल - New Poem Ek sawal
देवेंन्द्र सोनी 
मेरे जेहन में कौंधता है
एक सवाल हरदम 
आखिर क्यों हुआ है
जन्म हमारा मानव योनि में ही
होने के बाद भी, 
चौरासी लाख योनियां।
 
क्या सिर्फ - 
मौज मस्ती, संघर्ष और
खाने-कमाने के लिए ?
यश-अपयश के भंडारण के लिए ?
या अलावा इनके
नियति के चक्र को चलाने के लिए ?
 
सवाल उठता है, यह भी 
क्यों मिली हमको ही
बुद्धि, विवेक और वाक शक्ति ।
 
अन्य किस योनि में है - यह सब ?
 
करता हूं मनन जब यह मैं 
पाता हूं - इस सवाल का जवाब भी ।
 
कर्मों से ही है, हमारे जन्म का नाता
किए होंगे पूर्व जन्म में भी 
कई ऐसे सद्कर्म, जिससे चुना 
विधाता ने मानव योनि के लिए हमको।
 
फिर करना है सार्थक इसे -
अपने सद्कर्मों को अर्जित कर।
अटल मृत्यु से पहले ।
 
जानता हूं, मुश्किल है, 
निर्वाह करते हुए
जीवन के प्रपंचों से छुटकारा पाना
पर करना ही होगा -
थोड़ा अलग उपयोग अपना
निभाते हुए इन्हें भी।
 
सोचा है, जब से यह 
मिल गया है मुझको 
मेरे सवाल का जवाब ।
 
आपको भी मिल जाएगा 
बस सोचना और करना है
जरा हटकर, सद्कर्म भी
रोजमर्रा के कामों के साथ ।
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