*शरद की श्वेत शहद रात्रि में
प्रश्नाकुल मन
बहुत उदास
कहता है मुझसे
उठो ना
चांद से बाते करों,
चांद पर बातें करो....
और मैं बहने लगती हूं
नीले आकाश की
केसरिया चांदनी में,
तब तुम बहुत याद आते हो
अपनी मीठी आंखों से
शरद-गीत गाते हो...!