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Written By Author गिरीन्द्र प्रताप सिंह

ऐसा प्रेम रहे

ऐसा प्रेम रहे - a poem on love
महाराणा का प्यारा चेतक,
बसंती की प्यारी धन्नो,
क्या फर्क है दोनों में,
उनके दर्द में
जो नाल ठोकने पर हुआ था
जो नकेल खींचने पर हुआ
जब उनके पैरों से खून टपका था, 
 
हल्दीघाटी के युद्ध में
थोड़ा तो अंतर आया था
बसंती को भी 
डाकुओं से बचाया था,
 
दोनों घोड़ों से किसी ने ना पूछा
की दर्द कितना था
या कितना खून बहा 
या कितना सहन किया,
 
शायद महाराणा इतना प्रेम करते थे
अपने चेतक से,
या बसंती प्रेम करती थी 
अपनी धन्नो से,
या चेतक प्रेम करता था 
अपने राणा से, 
या धन्नो प्रेम करती थी
अपनी बसंती से, 
 
ऐसा प्रेम रहे
और ऐसे प्रेम रहे तो 
हदें अक्सर टूट जाती हैं
दर्द की सीमाएं भी
बिखरकर टूट जाती हैं। 
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