मंगलवार को 'लाभ मंडपम' में आयोजित संगीत सभा Indore Music Festival में ज्यादातर युवा श्रोता उस्ताद राशिद खान को उनके लाइट मूड को सुनने के लिए आए होंगे, लेकिन उन्हें क्या पता था उस्ताद गला साफ़ करने में भी मज़ा दे जाते हैं।
शायद इसीलिए पक्की गायकी के ऐसे कलाकारों को संगीत परम्परा में उस्ताद कहा गया है।
राशिद खान साहब ने मंच पर आते ही वही उस्तादी दिखाई। बगैर किसी लाग लपेट के उन्होंने राग जोग कौंस शुरू कर दिया। मूड अच्छा था तो उन्होंने संगीत गुरुकुल के युवा शिष्यों को भी अपने इर्द गिर्द मंच पर ही बैठा लिया।
ऐसा कम ही होता है, जब गायन के श्री गणेश में ही श्रोता महफ़िल की अच्छी खासी आंच महसूस करने लगे।
कहा जा सकता है कि उस्तादों का गला साफ़ करना भी अच्छा होता है। राशिद खान के ठीक पीछे बैठे उनके बेटे अरमान की आवाज़ भी खान साहब की आवाज का पीछा करते हुए अच्छी लग रही थी। अरमान के लंबे और खरज भरे अलाप सुंदर थे। भले वो रियाज़ के तौर पर थे। तबले पर उनके साथ विजय घाटे, सारंगी पर मुराद अली और हारमोनियम पर तन्मय देवचके संगत कर रहे थे।
करीब 40 मिनट के राग जोग कौंस के बाद युवाओं का मूड भांप कर उस्ताद ने खुद ही कह दिया कि अब थोड़ा लाइट म्यूजिक की ओर चला जाए। श्रोताओं को लगा था कि अब वे शायद 'याद पिया की आए' या 'आओगे जब तुम साजना' गाएंगे, लेकिन उन्होंने भजन 'ऐरी सखी मोरे पिया घर आए' गाया। इसके बाद भजन 'आज राधा बृज को चली' गाकर सभा को भक्तिमय कर दिया। हालांकि 'आओगे जब तुम हो साजना' और ठुमरी 'याद पिया की आए' सुनने की ख़्वाहिश लेकर आए श्रोताओं को इसके बगैर लौटना पड़ा। फिर भी वे निराश तो नहीं हुए होंगे।
उस्ताद राशिद खान को खासतौर से हिन्दुस्तानी संगीत में ख्याल गायिकी के लिए जाना जाता है। वे ठुमरी, भजन और तराना भी गाते हैं।
राशिद खान रामपुर-सहसवान घराने से ताल्लुक रखते हैं। बचपन में उनकी रुचि क्रिकेट खेलने में थी, लेकिन गजल और कुछ कलाकारों की प्रस्तुतियां देखने-सुनने के बाद संगीत में उनकी दिलचस्पी जागी और उन्होंने क्लासिकल संगीत सीखना शुरू किया। अपने इंटरव्यू में वे कहते हैं कि शुरुआत में वे क्लासिकल की हैवी और उबाऊ रियाज से बहुत बोर भी हो जाते थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे उन्हें इसमें रस आने लगा और गाने लगे।
अगर म्यूजिक की तरफ उनका ध्यान नहीं जाता तो संभव है वे आज क्रिकेटर होते। हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत की दुनिया में उन्हें बहुत माना जाता है, लेकिन जब वी मेट के 'आओगे जब तुम हो साजना' गीत के बाद उस्ताद को आमजन में भी खासी लोकप्रियता हासिल हुई। इस गीत में राशिद खान ने ठुमरी का अंदाज़ भी शामिल किया था, जिसे खूब पसंद किया गया।
इंदौर म्यूजिक फेस्टिवल के इस दूसरे दिन की शुरुआत में शहर के गौतम काले की प्रस्तुति अच्छी रही। उन्होंने भक्ति संगीत से समा बांध दिया।
राम और हनुमान भजन पर उन्होंने खूब दाद बटोरी। पहले दिन यानी सोमवार को मंजूषा पाटिल का गायन, विजय घाटे का तबला वादन और शीतल कोलवलकर का नृत्य लोगों ने खूब पसंद किया। इसके बाद पंडित राजन-साजन के भक्ति संगीत ने इंदौरी श्रोताओं को बनारसी स्वाद और वहां का अंदाज़ महसूस करवाया ही था।
मंगलवार की देर रात दो दिवसीय इंदौर म्यूजिक फेस्टिवल का समापन हुआ। यह आयोजन संगीत गुरुकुल द्वारा हर साल आयोजित किया जाता है। संगीत गुरुकुल की डायरेक्टर अदिति काले और शास्त्रीय गायक गौतम काले के मुताबिक आयोजन का यह 5वां साल है। पंडित जसराज के जन्मदिन के मौके पर आयोजित किया जाता है। इंदौर के अभय प्रशाल के 'लाभ मंडपम' में मौसिक़ी की इस शास्त्रीय सभा को सुनने के लिए इंदौर के कई कला रसिक उपस्थित थे।