टेकचंद के उपन्यास ‘दाई’ पर बातचीत
विश्व पुस्तक मेले में 3 बजे वाणी प्रकाशन के स्टॉल (हॉल 12 ए 277-288) पर टेकचंद के नवीनतम उपन्यास ‘दाई’ पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में पुस्तक के लेखक टेकचंद और गोपेश्वर सिंह, राजकिशोर जी, बजरंग बिहारी तिवारी जी, और दिनेश कुमार ने हिस्सा लिया।
‘दाई’ टेकचंद का नवीनतम प्रकाशित लघु उपन्यास है। इस उपन्यास में लेखक ने ऐसे विषय को छुआ है। जो आज की आधुनिकता में कहीं खो सा गया है। पहले जहां बच्चे का जन्म ‘दाई’ के जिम्मे का काम हुआ करता था, वहीं अब यह काम डॉक्टरों के जिम्मे चला गया है। जिसका नतीजा यह हुआ की आज बच्चे प्राकृतिक तरीके से कम और ओप्रेसन से ज्यादा होने लगे हैं। जिस कारण हमारी महिलाओं का स्वस्थ्य भी खराब हो जाता है।
यह उपन्यास आधुनिकता पर चोट करता है। और ऐसे समय में हमे ले चलता है जहां हमें अपनी पुरानी मान्यताओं के न सिर्फ दर्शन होते हैं, बल्कि यह एहसास भी होता है की हम आधुनिकता के अंधकार में इतने गहरे तक खो गए हैं कि प्राकृतिक संसाधनों को पूरी तरह खत्म कर चुके हैं और मानवीय सम्बन्धों को भी गला घोट चुके हैं।
परिचर्चा के आयोजन का आरम्भ टेकचन्द के स्वागत के साथ हुआ। सभी मंचासीन अथितियों ने पुस्तक का विमोचन किया और लेखक को बधाई दी। लेखक ने बताया कि ‘दाई’ किस जिजीविषा के साथ अपने परिवार के अलावा, जिस बच्चे का जन्म करवाती है उस परिवार कि जिजीविषा को भी अपने कंधो पर साथ लेकर चलती है।
यही इस उपन्यास में पाठकों को पढ़ने को मिलेगा। जिस तरह से उपन्यास में ‘दाई’ का अन्त होता है उसी तरह से आज जीवन का अंत भी भयानक हो गया है। सभी वक्ताओं ने एक स्वर में उपन्यास के कथानक कि प्रशंसा की। इस प्रकार परिचर्चा का समापन बहुत ही शुभकामनाओं के साथ हुआ।