क्या समय चल रहा है। खाते हैं तो पचता नहीं। कमाते हैं, तो बचता नहीं। ऐसा लगता है, जैसे कि बटुए में नाथूराम गोडसे रहता है, जो गांधीजी को रहने ही नहीं देता!