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Written By WD Feature Desk

Bhagat Singh: इंकलाब जिंदाबाद के अमर संदेशवाहक: भगत सिंह पर सर्वश्रेष्ठ निबंध

Essay on Bhagat Singh
Shaheed Bhagat Singh Essay: भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक, शहीद भगत सिंह का नाम सुनते ही हर भारतीय का सिर गर्व से झुक जाता है। भगत सिंह की जयंती 28 सितंबर को मनाई जाती है। उनका अद्वितीय बलिदान और इंकलाब जिंदाबाद (Inquilab Zindabad) का नारा आज भी युवाओं को देशभक्ति के लिए प्रेरित करता है।ALSO READ: 28 सितंबर जयंती विशेष: शहीद-ए-आजम भगत सिंह: वो आवाज जो आज भी जिंदा है Bhagat Singh Jayanti

वैसे तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक महान क्रांतिकारी हुए, लेकिन उनमें से एक नाम जो हमेशा युवाओं के दिलों में गूंजता रहेगा, वह है 'शहीद-ए-आजम भगत सिंह'। भगत सिंह केवल एक युवा क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि वे देश के लिए एक नई सोच, नई आवाज़ और निडर संघर्ष की मिसाल थे।
 
अगर आप भगत सिंह के जीवन, उनके विचारों और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान पर सर्वश्रेष्ठ निबंध पढ़ना चाहते हैं तो यहां पढ़ें...
 
प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा: भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा नामक गांव में हुआ था। उनका परिवार देशभक्ति और क्रांतिकारी विचारों से भरा था। बचपन से ही भगत सिंह ने अंग्रेजों की अन्यायपूर्ण नीति को देखा और महसूस किया कि भारतवासियों को स्वतंत्रता के लिए लड़ना होगा। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन ने उनकी सोच को और गहरा किया। लेकिन वे अहिंसा से अलग एक मजबूत, क्रांतिकारी रास्ता अपनाने पर दृढ़ थे।
 
इंकलाब जिंदाबाद की भावना: भगत सिंह का सबसे प्रसिद्ध नारा 'इंकलाब जिंदाबाद' (क्रांति अमर रहे) था। यह नारा केवल शब्द नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता के लिए लगातार संघर्ष की प्रतिबद्धता का प्रतीक था। उन्होंने यह नारा युवाओं में देशभक्ति की लौ जगाने के लिए इस्तेमाल किया। इस नारे ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई ऊर्जा और दिशा दी।
 
भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियां: भगत सिंह ने कई साहसिक कार्य किए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध था लाहौर में जालियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए पुलिस अफसर जॉन सैंडर्स की हत्या। इसके बाद उन्होंने संसद भवन में बम फेंका, लेकिन यह बम लोगों को चोट पहुंचाने के लिए नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार को चेतावनी देने के लिए था कि अब भारत के लोग दबे नहीं रहेंगे।

उनका यह साहस और बलिदान अंग्रेज सरकार के लिए एक बड़ा झटका था। वे अपने विचारों के लिए दृढ़ थे और न्याय के लिए लड़ते हुए अपनी जान भी न्योछावर कर दी।
 
बलिदान और विरासत: 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई। उनकी शहादत ने न केवल देश में क्रांति की आग जलाई, बल्कि पूरे विश्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की पहचान बनाई। उन्होंने युवाओं को यह सिखाया कि आज़ादी की कीमत क्या होती है और इसके लिए किस हद तक जाना पड़ता है।
 
उनका जीवन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आज भी भारत में हर युवा जब देशभक्ति की बात करता है, तो वह भगत सिंह को याद करता है और उनका नारा 'इंकलाब जिंदाबाद' गूंजता है।
 
निष्कर्ष: भगत सिंह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे, वे एक विचारधारा और आदर्श थे। उन्होंने यह साबित किया कि स्वतंत्रता केवल एक सपना नहीं, बल्कि एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए लड़ना और अपने प्राणों की आहुति देना भी जरूरी है। उनका नारा 'इंकलाब जिंदाबाद' आज भी देश के कोने-कोने में प्रेरणा की तरह सुनाई देता है और युवाओं को जागरूक करता है कि वे अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाएं।
 
भगत सिंह की आत्मा आज भी भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में ज़िंदा है, और उनकी आवाज़ हमेशा देश की मिट्टी में गूंजती रहेगी।

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