आयुर्वेद में एलोविरा को ग्वारपाठा, घी कुंवारा, स्थूलदला, कुमारी आदि नामों से इसे जाना जाता है। घृतकुमारी के पत्तों का इस्तेमाल यकृत विकार, आमवात, कोष्ठबद्धता, बवासीर, स्त्रियों के अनियमित मासिक चक्र और मोटापा घटाने के साथ ही चर्म रोग में भी लाभकारी होता है।
एलोविरा रक्त में शर्करा के स्तर को बनाए रखता है। जोड़ों का दर्द, त्वचा की खराबी, मुंहासे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, झुर्रियों, चेहरे के दाग-धब्बों, आंखों के काले घेरों, फटी एडियों के लिए यह लाभप्रद है।
इसका पल्प या जैल निकालकर बालों की जड़ों में लगाना चाहिए। बाल काले, घने-लंबे एवं मजबूत होंगे।
एलोविरा की कांटेदार पत्तियों को काटकर रस निकाला जाता है।
3-4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिन-भर शरीर में चुस्ती-स्फूर्ति बनी रहती है।
जलने पर, कटने पर, अंदरूनी चोटों पर एलोविरा अपने एंटीबैक्टेरिया और एंटीफंगल गुण के कारण घाव को जल्दी भरता है।
यह मच्छर से भी त्वचा की सुरक्षा करता है।
आजकल सौन्दर्य निखार के लिए हर्बल कॉस्मेटिक प्रोडक्ट के रूप में बाजार में एलोविरा जैल, बॉडी लोशन, हेयर जैल, स्किन जैल, शैंपू, साबुन, फेशियल फोम, और ब्यूटी क्रीम में हेयर स्पा में ब्यूटी पार्लरों में धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है।
कम से कम जगह में, छोटे-छोटे गमले में एलोविरा आसानी से उगाया जा सकता है।
एलोविरा जैल या ज्यूस मेहंदी में मिलाकर बालों में लगाने से बाल चमकदार होंगे।