सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह है, भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह है, राह को सँवार दो, निगाह को निखार दो,
आदमी हो तुम कि उठा आदमी को प्यार दो, दुलार दो। रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो।
तुम हो एक फूल कल जो धूल बनके जाएगा, आज है हवा में कल ज़मीन पर ही आएगा, चलते व़क्त बाग़ बहुत रोएगा-रुलाएगा, ख़ाक के सिवा मगर न कुछ भी हाथ आएगा,
ज़िंदगी की ख़ाक लिए हाथ में, बुझते-बुझते सपने लिए साथ में, रुक रहा हो जो उसे बयार दो, चल रहा हो उसका पथ बुहार दो। आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, दुलार दो।
ज़िंदगी यह क्या है- बस सुबह का एक नाम है, पीछे जिसके रात है और आगे जिसके शाम है, एक ओर छाँह सघन, एक ओर घाम है, जलना-बुझना, बुझना-जलना सिर्फ़ जिसका काम है, न कोई रोक-थाम है,
ख़ौफनाक-ग़ारो-बियाबान में, मरघटों के मुरदा सुनसान में, बुझ रहा हो जो उसे अंगार दो, जल रहा हो जो उसे उभार दो, आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, दुलार दो।
ज़िंदगी की आँखों पर मौत का ख़ुमार है, और प्राण को किसी पिया का इंतज़ार है, मन की मनचली कली तो चाहती बहार है, किंतु तन की डाली को पतझर से प्यार है, क़रार है,
पतझर के पीले-पीले वेश में, आँधियों के काले-काले देश में, खिल रहा हो जो उसे सिंगार दो, झर रहा हो जो उसे बहार दो, आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, दुलार दो।
प्राण एक गायक है, दर्द एक तराना है, जन्म एक तारा है जो मौत को बजाता है, स्वर ही रे! जीवन है, साँस तो बहाना है, प्यार की एक गीत है जो बार-बार गाना है, सबको दुहराना है,
साँस के सिसक रहे सितार पर आँसुओं के गीले-गीले तार पर, चुप हो जो उसे ज़रा पुकार दो, गा रहा हो जो उसे मल्हार दो, आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, दुलार दो।
एक चाँद के बग़ैर सारी रात स्याह है, एक फूल के बिना चमन सभी तबाह है, ज़िंदगी तो ख़ुद ही एक आह है कराह है, प्यार भी न जो मिले तो जीना फिर गुनाह है,
धूल के पवित्र नेत्र-नीर से, आदमी के दर्द, दाह, पीर से, जो घृणा करे उसे बिसार दो, प्यार करे उस पै दिल निसार दो, आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, दुलार दो। रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो॥