अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है। दीप, स्वयं बन गया शलभ अब जलते-जलते, मंजिल ही बन गया मुसाफिर चलते-चलते, गाते गाते गेय हो गया गायक ही खुद सत्य स्वप्न ही हुआ स्वयं को छलते छलते, डूबे जहां कहीं भी तरी वहीं अब तट है, अब चाहे हर लहर बने मंझधार मुझे परवाह नहीं है। अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
अब पंछी को नहीं बसेरे की है आशा, और बागबां को न बहारों की अभिलाषा, अब हर दूरी पास, दूर है हर समीपता, एक मुझे लगती अब सुख दुःख की परिभाषा, अब न ओठ पर हंसी, न आंखों में हैं आंसू, अब तुम फेंको मुझ पर रोज अंगार, मुझे परवाह नहीं है। अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
अब मेरी आवाज मुझे टेरा करती है, अब मेरी दुनियां मेरे पीछे फिरती है, देखा करती है, मेरी तस्वीर मुझे अब, मेरी ही चिर प्यास अमृत मुझ पर झरती है, अब मैं खुद को पूज, पूज तुमको लेता हूं, बन्द रखो अब तुम मंदिर के द्वार, मुझे परवाह नहीं है। अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
अब हर एक नजर पहचानी सी लगती है, अब हर एक डगर कुछ जानी सी लगती है, बात किया करता है, अब सूनापन मुझसे, टूट रही हर सांस कहानी सी लगती है, अब मेरी परछाई तक मुझसे न अलग है, अब तुम चाहे करो घृणा या प्यार, मुझे परवाह नहीं है। अब तुम रूठो, रूठे सब संसार, मुझे परवाह नहीं है।
गीत तुम झूम झूम गाओ, रोते नयन हंसाओ, मैं हर नगर डगर के कांटे बुहार दूंगा। भटकी हुई पवन है, सहमी हुई किरन है, न पता नहीं सुबह का, हर ओर तम गहन है, तुम द्वार द्वार जाओ, परदे उघार आओ, मैं सूर्य-चांद सारे भू पर उतार दूंगा। तुम झूम झूम गाओ।
गीला हरेक आंचल, टूटी हरेक पायल, व्याकुल हरेक चितवन, घायल हरेक काजल, तुम सेज-सेज जाओ, सपने नए सजाओ, मैं हर कली अली के पी को पुकार दूंगा। तुम झूम झूम गाओ।
विधवा हरेक डाली, हर एक नीड़ खाली, गाती न कहीं कोयल, दिखता न कहीं माली, तुम बाग जाओ, हर फूल को जगाओ, मैं धूल को उड़ाकर सबको बहार दूंगा। तुम झूम झूम गाओ।
मिट्टी उजल रही है, धरती संभल रही है, इन्सान जग रहा है, दुनिया बदल रही है, तुम खेत खेत जाओ, दो बीज डाल आओ, इतिहास से हुई मैं गलती सुधार दूंगा। तुम झूम-झूम गाओ।