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सिद्धियों को देने वाली परमा एकादशी की व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व

सिद्धियों को देने वाली परमा एकादशी की व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व - Parama Ekadashi 2023 Katha n Puja Vidhi
Parama Ekadashi Fast 2023 : वर्ष 2023 में 12 अगस्त, दिन शनिवार को परमा एकादशी मनाई जा रही है। यह श्रावण अधिक मास की द्वितीय एकादशी है, जिसे परमा, पुरुषोत्तमी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं यहां समस्त सिद्धियों को देने वाली परमा एकादशी की कथा, पूजन की सरल विधि और इसके महत्व के बारे में- 
 
व्रत कथा : 
परमा एकादशी व्रत की कथा के अनुसार पुरातन काल में काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम पवित्रा था, जो नाम के अनुरूप ही सती और साध्वी थी। परंतु दोनों ही बहुत ही गरीब थे। हालांकि वे बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और सदा अतिथियों की सेवा में तत्पर रहते थे। 
 
एक दिन निर्धनता से दुखी होकर ब्राह्मण ने दूर देश में जाने का विचार किया, परंतु उसकी पत्नी ने कहा- ‘स्वामी धन और संतान पूर्वजन्म के दान और पुण्य से ही प्राप्त होते हैं, अत: इस बात की चिंता न करें और सभी प्रभु पर छोड़ दें।’
 
फिर एक दिन महर्षि कौडिन्य उनके घर पधारे। दोनों ब्राह्मण दंपति ने यथाशक्ति तन-मन से उनकी सेवा की। 
 
महर्षि ने उनकी गरीब दशा देखकर उन्हें कहा कि- 'दरिद्रता को दूर करने का बहुत ही सरल उपाय यह है कि तुम दोनों मिलकर अधिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत तथा पंच रात्रि जागरण करो। इस एकादशी का व्रत करने से यक्षराज कुबेर तुम्हें धनाधीश बना है, क्योंकि इसी से हरिशचंद्र राजा हुए हैं।' ऐसा कहकर महर्षि कौडिन्य चले गए।
 
इसके बाद सुमेधा और उनकी पत्नी पवित्रा ने यह व्रत विधिवत रूप से किया। इसके बाद प्रात:काल कहीं से एक राजकुमार अश्‍व पर चढ़कर आया और उसने इन दोनों धर्मपरायण एवं व्रती दंपत्ति को देखा, देखकर उसे बड़ी दया आई और उसने दोनों को सर्व साधन, संपन्न, सर्व सुख समृद्ध युक्त करके एक अच्छा भवन रहने को दिया। इस तरह दोनों के सभी दु:ख दूर हो गए।
सरल पूजा विधि : 
 
- अधिक मास की परमा एकादशी व्रत के लिए दशमी तिथि की रात्रि सादा भोजन लें, नमक न खाएं। 
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौचादि से निवृत्त होकर दंतधावन करके 12 कुल्ले सादे पानी से करके शुद्ध हो जाएं।
- सूर्य उदय होने के पूर्व स्नान करके श्वेत स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान श्री विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।
- एकादशी की व्रत कथा पढ़ें।
- आरती करें। 
- श्री विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
- ईश्वर स्मरण करते हुए दिन व्यतीत करें।
- पारण वाले दिन किसी दूसरे के घर का भोजन ग्रहण न करें।
- भूमि पर सोएं।
- ब्रह्मचर्य व्रत रखें। 
 
महत्व : अधिक मास यानी पुरुषोत्तम महीने के देवता भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस एकादशी के संबंध में माना जाता है कि यह माह श्री विष्णु को प्रिय हैं, क्योंकि उन्होंने ही मलमास के महीने को अधिक/पुरुषोत्तम मास का नाम दिया था, जो कि तीन वर्ष में एक बार आता है। इस दिन भगवान श्री विष्‍णु की पूजा करना सर्वश्रेष्‍ठ माना जाता है। वैसे तो अधिक मास में शुभ कार्य करने की मनाही हैं, लेकिन इस महीने में धार्मिक कार्य करना शुभ फलदायी माना जाता है। 
 
परमा एकादशी व्रत के पूर्व रात्रि यानी दशमी तिथि से एकादशी व्रत के दिन लाल मसूर दाल, चना, शहद, शाक और लहसुन, प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। यह एकादशी व्रत धन, लक्ष्मी, पुत्र-पौत्रादि का सुख, हर प्रकार की समृद्धि और पुण्य तथा मोक्ष को देने वाली मानी गई है।

इसीलिए इस पवित्र महीने में तथा खासकर इस दौरान आने वाली सभी एकादशी तिथि पर व्रत-उपवास आदि रखकर, पूजा-पाठ करने, दान-धर्म देने का विशेष महत्व कहा गया है। इतना ही नहीं पूरे विधि-विधान से इस दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन करने और उपवास रखने से सभी पापों का नाश भी हो जाता है। 
 
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