Nandikeshwar Chamunda Devi Mandir: चामुंडा देवी हिमाचल प्रदेश में स्थित एक प्रमुख शक्ति पीठ मंदिर है, जो माता काली को समर्पित है। चामुंडा देवी का ये मंदिर उत्तर भारत की नौ देवियों में से एक है, जो वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा में शामिल है।
चामुंडा मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में बनेर खड्ड के पास धर्मशाला शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां पर भगवान शिव भी पिंडी रूप में स्थापित हैं, इसलिए इस जगह को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोगों की आस्था है कि देवी चामुंडा का यह मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति का एक ऐसा निवास स्थल है, जहां वे विश्व भ्रमण के दौरान विश्राम करते हैं।
चामुंडा मंदिर में क्यों हर दिन जलता है शव या पुतला
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब मां ने चंड और मुंड का वध किया था तब माता बहुत गुस्से में थी, जिससे स्थानीय जनता भयभीत थी और इसीलिए जनता ने खुद ही परिवार से एक व्यक्ति बलि के लिए देना सुनिश्चित कर दिया था।
एक दिन एक ऐसी महिला के बेटे की बारी आई जिसने अपने बेटे को भगवान शिव की अराधना से प्राप्त किया था। उस महिला ने अपने बेटे को बलि के लिए माता के पास भेज तो दिया लेकिन साथ ही वह भगवान शिव से बच्चे की रक्षा करने की अराधना करने लगी।
भगवान शिव ने बलि के लिए जा रहे बालक को खुद बच्चे का रूप धारण कर बातों में लगा दिया और खेलने लगे। बालक जब वहां नहीं पहुंचा तो बलि में बिलंब होता देख माता चामुंडा को क्रोध आया और वे वहीं पहुंच गईं, जहां पर भगवान शिव बालक रूप बनाकर बच्चे से खेल रहे थे।
माता को गुस्से में देख बच्चे ने माता से कहा कि मैं तो आ रहा था लेकिन बालक बने भगवान् शिव की ओर इशारा कर उसने कहा कि मुझे इसने रोक लिया था। ऐसे में शिव ने बच्चे के रूप में माता को और क्रोधित कर दिया। तब माता ने बलि के लिए आए बच्चे को छोड़ शिव का पीछा करना शुरू किया। माँ ने शिव पर पांच विशाल पत्थर बरसाए जिनमें से कुछ पत्थर आज भी विराजमान है। इनमें से एक पत्थर को शिव ने उंगली पर उठा लिया।
जब माता ने बालक को पत्थर को उंगली पर उठाए देखा तो वे समझ गईं कि सामने तो शिव हैं। उन्होंने शिव से माफी मांगी। ऐसे में शिव भगवान ने मां चामुंडा व खुद को उसी जगह स्थापित होने को कहा।
कहते हैं तभी से बलि के रूप में शव जलाने की परंपरा चल रही है। यदि उस दिन शव कहीं से ना आए तो यहां तीर्थ मोक्षधाम में घास का पुतला जलाया जाता है। दूर-दूर से लोग यहां स्थापित मोक्षधाम में अपने स्नेहजन मृतक का शव जलाने आते हैं।
क्या है चामुंडा देवी मंदिर में माता की उत्पत्ति की कथा:
इस पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था, जिसमें असुरों की विजय हुई थी। लेकिन देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दिया और महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया, जिसमें देवी की विजय हुई।
पौराणिक कथा:
चामुंडा देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है, जो शिव और शक्ति से जुड़ा हुआ है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इन सभी स्थलों पर देवी के अंग गिरे थे, जो शक्ति पीठ बन गए।
क्या है चामुंडा मंदिर के नाम की कहानी:
माता का नाम चामुंड़ा पड़ने के पीछे एक कथा प्रचलित है, जो दुर्गा सप्तशती में वर्णित है। शक्ति स्वरूपा माता चामुंडा ने चंड और मुंड नामक दो दैत्यों का संहार किया था, जिसके कारण माता का नाम चामुंड़ा पड़ गया।
मंदिर की महत्ता:
चामुंडा देवी मंदिर में माता सती के चरण गिरे थे जिस वजह से इस मंदिर को शक्ति पीठ में स्थान मिला है। यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुंडा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं।