जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी और उसके साथियों की मौत पर जिस तरह से हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं, वह कोई अनोखी बात नहीं है। जब-जब सुरक्षा बल किसी आतंकवादी को मार गिराते हैं, तब-तब जम्मू-कश्मीर की सड़कों पर उग्र प्रदर्शन होता ही है। पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनों के इशारे पर भारत विरोधी नारे लगाए जाते हैं और सेना पर पत्थर भी बरसाए जाते हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि आतंकी बुरहान वानी की मौत पर घाटी में जिस प्रकार के हालात हैं, वे चिंता का विषय हैं।
लेकिन देश के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग और कुछेक राजनीतिक दलों की ओर से जिस तरह की बयानबाजी सामने आ रही है, वह घाटी के हालात से कहीं अधिक चिंताजनक है। यह बयानबाजी इसलिए भी अधिक हो रही है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी गठबंधन की सरकार है। भाजपा की पहचान राष्ट्रवाद है। भाजपा के वैचारिक विरोधी सवाल उठा रहे हैं कि अब भाजपा का राष्ट्रवाद कहां गया? प्रदेश सत्ता में भाजपा के शामिल होने के बाद भी जम्मू-कश्मीर क्यों जल रहा है?
बहरहाल, क्षेत्रीय राजनीतिक दलों, राष्ट्रीय दलों और राष्ट्रवाद के वैचारिक विरोधी बुद्धिवादियों को समझना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के हालात राष्ट्रीय चिंता का विषय है, आपसी राजनीति का नहीं। राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए चूल्हे-चौके और भी हैं इसलिए सबको दलगत राजनीति और वैचारिक असहिष्णुता से ऊपर उठकर जम्मू-कश्मीर के हालात पर टिप्पणी करनी चाहिए।
जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद पूरी तरह खत्म तभी हो सकता है, जब सब अपने-अपने स्वार्थ त्यागकर साथ आएंगे। आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर के विषय पर कांग्रेस की ओर से आया मंतव्य सराहनीय है। इस विषय पर कांग्रेस ने इस बार अपेक्षाकृत परिपक्व राजनीति का प्रदर्शन किया है, बाकी क्षेत्रीय दलों को भी कांग्रेस से सीख लेनी चाहिए।
भाजपा नीत केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के हालात पर काबू पाने के लिए सार्थक प्रयास कर रही है। तमाम राजनीतिक और वैचारिक असहमतियों के बाद भी केंद्र सरकार ने विपक्षी दलों से संवाद का प्रयास किया है। सरकार ने इस बात का संकेत दिया है कि राष्ट्र की सुरक्षा के विषय पर वह सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहती है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और माकपा नेता सीताराम येचुरी से भी जम्मू-कश्मीर के हालात पर चर्चा की है। केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर के हालात सुधारने के लिए कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के अनुभव का लाभ लेना चाहती है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में दोनों दल सरकार में रह चुके हैं। विपक्ष को विश्वास में लेने का केंद्र सरकार का यह कदम काबिले तारीफ है। उससे भी अधिक सराहनीय कांग्रेस का व्यवहार है। भाजपा नीत केंद्र सरकार की प्रमुख विरोधी पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस ने आतंकवाद और राष्ट्र की सुरक्षा के विषय पर सरकार का साथ देने का भरोसा दिया है।
सोनिया गांधी का बयान राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। आतंकवाद का जवाब सख्ती के साथ दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस के इस बयान से उन दलों और लोगों को भी स्पष्ट संदेश गया है, जो आतंकवादियों की मौत पर अपनी वैचारिक क्षुद्रता का परिचय देते हैं। राष्ट्रीय दल की तरह कांग्रेस ने जिस तरह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर व्यवहार किया है, वैसे ही व्यवहार की अपेक्षा अन्य दलों से भी है।
यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि केंद्र और विपक्षी दल राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर एकसाथ आकर खड़े हो जाते हैं। हम भारतीय राजनीति का इतिहास उठाकर देखें तो पाएंगे कि राष्ट्रीय सुरक्षा के अवसर पर प्रत्येक विपक्षी दल ने सरकार का ही साथ दिया है। कुछेक मौकों को छोड़ दिया जाए तो चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, विपक्ष में रहते हुए उन्होंने अपने राष्ट्रीय पार्टी के चरित्र को साबित किया है।
हालांकि, इस्लामिक आतंकवादियों के प्रति नरम रुख रखने के लिए कांग्रेस के कुछ नेताओं की आलोचना की जाती है। कांग्रेस के नेताओं की ओर से कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को 'ओसामा जी', 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को 'साहब' और जहरीली तकरीरों के आरोपी डॉ. जाकिर नाइक को 'शांतिदूत' तक कहा गया है। आतंकियों के प्रति नेताओं के इस सद्भाव ने कांग्रेस की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया है।
आतंकवाद ने भारत को बहुत गहरे घाव दिए हैं। आतंकवाद के प्रति जनता में बेहद आक्रोश है। यही कारण है कि आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति का प्रदर्शन करने वाले लोगों को जनता की ओर से करारा जवाब दिया जाता है। राजनीतिक विश्लेषक इस संबंध में कांग्रेस को चेताते रहे हैं।
संभवत: कांग्रेस ने भी अपने नेताओं की इस गलती को ठीक से समझ लिया होगा। जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस ने आतंकवाद के खिलाफ जिस कड़े रुख का प्रदर्शन किया है, वह निश्चित ही उसकी छवि को दुरुस्त करने में सहायक साबित होगा।
केंद्र सरकार जिस तरह सभी दलों के समन्वय के साथ जम्मू-कश्मीर मसले पर आगे बढ़ रही है, इसके कई मायने हैं। सरकार सब दलों को एकजुट करके आतंकवाद और अलगाववादियों को कड़ा जवाब देना चाहती है। यह निश्चित है कि आतंकवाद के खिलाफ जब सब एक स्वर में बोलेंगे तब आतंकवादियों और उनके संरक्षकों के तेवर भी ढीले पड़ जाएंगे। भारत के बाहर भी एक मजबूत संदेश जाएगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर यहां सब एकजुट और एकमत हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वैश्विक मंच से आतंकवाद के खिलाफ जिस साझा लड़ाई की बात कर रहे हैं, उसका संदेश घर से भी जाएगा।
बहरहाल, जम्मू-कश्मीर के हालात, आतंकवाद एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच जिस तरह का समन्वय नजर आया है, वह भविष्य में भी कायम रहना चाहिए। यह समन्वय भारत की सम्प्रभुता के लिए आवश्यक है। यह आपसी साझेदारी भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत बनाएगी।