• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. Shivraj Singh Chauhan, Kisan movement

शिव के राज में प्रदेश बना किसानों की कब्रगाह

शिव के राज में प्रदेश बना किसानों की कब्रगाह - Shivraj Singh Chauhan, Kisan movement
मध्यप्रदेश में किसानों के साथ अभी भी सत्ता पक्ष का रवैया दोगला ही है। इसी दोगलेपन के चलते प्रदेश में किसानों की खुदकुशी और आंदोलन थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अब किसानों ने होशंगाबाद जिले में रेलवे ट्रैक जाम कर अपना विरोध दर्ज किया है। इस विरोध प्रदर्शन में सिवनी, बानापुर और तमाम मालवा अंचल के किसान शामिल थे। इतना सब कुछ होने के बावजूद शिवराजसिंह के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
 
अभी भी किसानों की खुदकुशी का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा। हर दूसरे दिन किसान खुदकुशी कर रहे हैं। गत 8 जून से अब तक राज्य में 17 किसान आत्महत्या कर चुके हैं जबकि देशभर में 35 किसानों की मौत की खबर है। प्रदेश में किसानों की सबसे अधिक मौतें होने की खबरें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के गृह जिले सीहोर से आई हैं। सीहोर में सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। 
 
पिछले 24 घंटों में शिवराज सिंह के विधानसभा क्षेत्र बुधनी में 1 और सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, छिंदवाड़ा और मंदसौर जिलों में 22 जून को 5 किसानों ने आत्महत्या की है। मुख्यमंत्री के बुधनी विधानसभा क्षेत्र के गुराडिया गांव में शत्रुघ्न मीणा ने जहर पीकर आत्महत्या कर ली। मीणा ने 21 जून को जहर पिया था। रिश्तेदारों के अनुसार उस पर 10 लाख का कर्ज था और कर्ज से परेशान होकर ही आत्महत्या की। 
 
काबिलेगौर हो कि शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर में इस महीने होने वाली यह 6ठी आत्महत्या है। इधर होशंगाबाद में भी 40 वर्षीय किसान बाबूलाल वर्मा ने खुद को आग के हवाले कर दिया। इनके परिजनों की मानें तो उसने एक साहूकार के उत्पीड़न से तंग आकर यह कदम उठाया। बाबूलाल कर्ज की वजह से बहुत परेशान था। 
 
नरसिंहपुर जिले के 65 वर्षीय लक्ष्मी गुमास्ता ने भी कर्ज के चलते जहर खाकर जान दे दी है। मृतक किसान के परिजनों का कहना है कि उस पर 4 लाख रुपए का कर्ज था जिसे वह लौटा नहीं पा रहा था। चर्चा है कि 2 महीने पहले ही उसकी फसल आग लगने से तबाह हो गई थी जिसका उसे मुआवजा तक नहीं मिला था। इसी तरह से सागर जिले में भी कर्ज के बोझ चलते एक किसान ने खुद को मौत के आगोश में समा लिया। इस किसान ने खुदकुशी से पहले लिखे सुसाइड नोट में लिखा था कि उसे साहूकार परेशान कर रहा था। 
 
छतरपुर जिले में नारायणपुर गांव के महेश तिवारी ने 22 जून को अपने घर पर आत्महत्या कर ली। उन पर 2.5 लाख का कर्ज था। इसी प्रकार से 22 जून को ही टीकमगढ़ के ककरहवा गांव के सीकन कल्ला अहिरवार ने जहर खाकर अपनी जान दे दी। छिंदवाड़ा जिले में परासिया गांव के श्याम कुमार ने आत्महत्या कर ली। मंदसौर जिले में एक किसान ने कुएं में कूदकर जान दे दी। 
 
ये तो एक बानगी है प्रदेश में किसानों की आत्महत्या के मामलों की। यह प्रदेश किसानों की कब्रगाह बनता जा रहा है। जिस तरह से यहां किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, वह किसी आपात स्थिति से कम नहीं है। 
 
बावजूद इसके किसानों पर बढ़ते कर्ज और उनके साथ होने वाली जुल्म-ज्यादतियों को नजरअंदाज कर शिवराज सिंह चौहान विपक्ष पर किसानों को भड़काने का आरोप लगाकर ये मानने को तैयार नहीं हैं कि वाकई किसान परेशान है। किसानों की मौतों व बदहाली को लेकर भोपाल से प्रकाशित एक दैनिक अखबार ने भी 23 जून को रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में साफ लिखा है कि पिछले 24 घंटे में प्रदेश में कर्ज से परेशान 6 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। 
 
मंदसौर गोलीबारी के बाद आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 26 हो गई है। इतनी मौतें होने के बाद भी मुख्यमंत्री बेवकूफ बनाने वाली नीति पर ही चल रहे है। किसान आंदोलन को शांत करने के लिए उपवास के दौरान जो वादे किए गए थे, उन वादों पर भी अमल नहीं किया जा रहा है। किसानों का 1 से 10 जून तक का हिंसक आंदोलन बेनतीजा रहा। इस बीच सरकार ने किसानों को कोई राहत नहीं दी है, बजाय इसके कि पुलिस गोलीबारी में 6 किसान मारे गए। 
 
किसानों की मौतों को लेकर प्रदेश सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्रा का जो बयान सामने आया है, वह भी हास्यास्पद है। नरोत्तम कहते हैं कि किसानों की आत्महत्या का मामला दुखद और गंभीर है, लेकिन किसान केवल कर्ज के चलते नहीं मर रहा है इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं। आत्महत्या का एकमात्र कारण कर्ज नहीं है। शिवराज सरकार पहले भी यह साबित करने की नाकाम कोशिश करती रही है कि किसान निजी अवसाद, पारिवारिक विवाद, वैवाहिक जीवन या घरेलू समस्याओं के चलते आत्महत्या करते हैं। सरकार ने तो आंदोलन के दौरान यहां तक कहा था कि हिंसक आंदोलन करने वाले लोग किसान नहीं हैं, वे उपद्रवी और अराजक तत्व हैं। 
 
शिवराज आज भी वही नादानियां कर रहे हैं, जो किसान आंदोलन के समय की गई थीं। इन्हीं हरकतों के चलते किसानों का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। यही कारण है कि यहां के किसानों ने सरकार के विरोध बतौर योगासन न कर 'शवासन' किया। यह अनोखा विरोध प्रदर्शन प्रदेश सरकार द्वारा किसानों की समस्या पर ध्यान नहीं देने के चलते ही कई अंचलों में हुआ। इस मौके पर किसानों ने साफ कहा कि हम योग के विरोध में नहीं हैं बल्कि प्रदेश सरकार की नीतियों के विरोध में हैं। हालांकि देशभर में सरकार के योग दिवस के विरोध में किसानों ने 'शवासन' करके अपना गुस्सा जाहिर किया है। 
 
हालिया किसान आंदोलन के चलते साफ संकेत मिले हैं कि शिवराज चूक रहे हैं और कांग्रेस किसानों की नब्ज पकड़ रही है। बेशक, अभी प्रदेश में किसानों का आंदोलन शांत हो गया है लेकिन अभी भी राख के अंदर चिंगारी बुझी नहीं है। अब जब भी यह चिंगारी धधकेगी तब यह सरकार को अपने आगोश में लपेटेगी। पहले से अधिक मुसीबत में डाल देगी और अब इसका असर दूर तक जाएगा। कुछ इस तरह कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को अशांत कर सकती है। 
 
जानकारों के मुताबिक अब यह सिर्फ पार्टी ही नहीं, बल्कि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार के लिए भी खतरा साबित होगी। इधर 15 साल से राज्य की सत्ता से बाहर कांग्रेस और प्रदेश में उसका चेहरा-मोहरा बनने को तैयार ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह एक बड़े मौके की तरह सामने आएगा।
 
शिवराज को किसानों की परेशानियों का गंभीरता का अंदाजा लगाना चाहिए। वर्तमान में मुरैना से सांसद और शिवराज की ही पिछली सरकार में मंत्री रहे अनूप मीडिया से बातचीत में साफ कहते हैं, 'राज्य का खुफिया तंत्र पूरी तरह असफल रहा है। शासन को आंदोलन की गंभीरता का अंदाजा होना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ।'
 
मुख्यमंत्री से कुछ किसान नेताओं की मुलाकात और उनसे मिले आश्वासन के बाद शासन ने यह भरोसा कर लिया कि आंदोलन खत्म हो गया है जबकि ऐसा नहीं है। अभी भी किसान शांत नहीं हैं। अब अगर किसानों के बीच अशांति पैदा होती है तो इनकी आग की चपेट में हर कोई मरेगा। खैर! शिवराज अभी भी अपने वादों पर अमल की तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं। मुख्यमंत्री ने किसानों के असंतोष को शांत करने के लिए उपवास के दौरान अनेक वादे किए थे लेकिन जैसे-जैसे वक्त टलते जा रहा है, वैसे-वैसे वादों पर मिट्टी की परत चढ़ते जा रही है। 
 
बता दें कि मंदसौर गोलीकांड के मृतकों के परिवारों को सीएम ने पहले 5 लाख, फिर 10 लाख और इसके बाद बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए मुआवजा देने की घोषणा की थी लेकिन मुआवजे की यह रकम सरकारी नियम-कायदों के भंवर में उलझकर रह गई है। इतनी बड़ी राशि देने का प्रावधान ही नहीं है। नतीजा यह हुआ कि अगले दिन मुआवजे का चेक दिला देने की घोषणा करने वाले शिवराज जब हादसे के 8 दिन बाद पीड़ित किसानों से मिलते हैं तब भी उनके हाथ खाली ही थे यानी तब तक पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला था। 
 
यही नहीं, शिवराज ने उपवास तोड़ते समय ऐलान किया था कि समर्थन मूल्य से कम पर कृषि उपज खरीदने को कानून बनाकर अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाएगा लेकिन उनकी इस घोषणा से व्यापारी वर्ग नाराज हो गया। विरोध के साथ ही यह वर्ग कृषि मंडियों में समर्थन मूल्य से कम पर ही उपज खरीद रहा है और सरकार कुछ नहीं कर पा रही है। कानून बनना-बनाना तो अभी दूर की कौड़ी ही साबित हो रहा है। 
 
अभी तो लोगों को शिवराज के उपवास पर ही अचरज हुआ कि जब सरकार शिवराज की, प्रशासन उनका, पुलिस उनकी तो फिर यह किसके खिलाफ और क्यों? और भी कई सवाल उठे लेकिन जल्द ही मीडिया ने इनका भी जवाब ढूंढ लिया और शिवराज के रणनीतिकारों को धता बताते हुए पूरी पोल-पट्टी खोल दी। इसमें पता चला कि न तो शिवराज के उपवास की घोषणा अचानक हुई, न ही वह अनिश्चितकालीन था। सब कुछ सोच-समझकर योजनाबद्ध तरीके से मुख्यमंत्री और सरकार की छवि पर लगे दाग साफ करने की गरज से किया गया था। 
 
एक चैनल पर आई खबर के मुताबिक 9 जून को जब शिवराज सिंह चौहान उपवास की घोषणा कर रहे थे तो उसी समय मंदसौर गोलीकांड के पीड़ित किसान परिवारों के सदस्यों को स्थानीय नेता भोपाल लाने के लिए राजी करने में जुटे थे ताकि वे वहां मुख्यमंत्री से उपवास तोड़ने के लिए आग्रह कर सकें। इन परिवारों को भोपाल लाया भी गया और कथित रूप से उनके आग्रह पर शिवराज ने 'अनिश्चितकालीन उपवास' 28 घंटे में खत्म कर दिया। इस तरह की ड्रामेबाजी से शिवराज बाज नहीं आ रहे हैं। मुआवजे में देरी और किसानों की आत्महत्याओं से शिवराज की किरकिरी और कांग्रेस की नई जमीन तैयार हो रही है। 
 
जाहिर तौर पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और फिलहाल उसकी अगुवाई करते दिख रहे सिंधिया के लिए ये चीजें सरकार के खिलाफ जमीन तैयार करने में मददगार साबित हो रही हैं। शिवराज की इसी कुनीति का फायदा उठाकर कांग्रेस और उसके नेता किसानों का हिमायती बनने का दम भर रहे हैं। कांग्रेस किसानों की समस्याओं की तरफ सरकार का ध्यान दिलाने के लिए प्रदेश के हर जिले में सत्याग्रह कर रही है। 
 
कांग्रेस के मुताबिक यह लड़ाई तब तक चलेगी, जब तक कि मंदसौर गोलीकांड के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज नहीं हो जाते और आंदोलन के दौरान गिरफ्तार 300 किसानों को छोड़ नहीं दिया जाता है। यानी किसान आंदोलन ने कांग्रेस ही नहीं, सिंधिया को भी आगामी चुनाव के लिहाज से उम्मीद की किरण दिखाई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अगले 1 साल में इस उम्मीद को जमीनी हकीकत में कितना तब्दील कर पाते हैं। 
 
फिलहाल इतना तो तय है कि शिवराज किसानों को लेकर उलझते जा रहे हैं और इस उलझन के लिए कोई और नहीं, बल्कि वे स्वयं जिम्मेदार हैं। प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव अगर शिवराज के नेतृत्व में लड़ा गया तो मुश्किलें कम नहीं होंगी। अभी तो राज्य में हर तरफ खासकर भाजपा की ओर से दबी जुबान से ये आवाजें आ रही हैं कि 'शिवराज को हटाओ भाजपा को बचाओ।' 
 
इसमें भी दोराय नहीं है कि अब शिवराज के प्रति आम जनता, प्रदेश भाजपा संगठन और अफसरों के बीच अंदरखानों में विरोध प्रबल होते जा रहा है, ऐसे समय में अगर प्रदेश का मुख्यमंत्री भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को बनाया जाता है तो कुछ हद तक प्रदेश का माहौल शांत हो सकता है। एक बार फिर राज्य में भाजपा की सरकार बनने में भी आसानी हो सकती है।
ये भी पढ़ें
पीरियड्स के दर्द के 5 उपाय, आप भी आजमाएं