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Last Modified: सोमवार, 5 सितम्बर 2016 (17:45 IST)

किस हद तक गिरेंगे आप

किस हद तक गिरेंगे आप - AAP, Sandeep Kumar, sex CD scandal,
एक बहुत ही खूबसूरत बगीचा था, माली की नज़र बचाकर कुछ बच्चे रोज फूल तोड़ लेते थे। एक दिन माली ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया। अब उनमें से सबसे बुद्धिमान एक बालक ने सोचा कि खुद को बचाना है तो आक्रमण करना चाहिए और वह चिल्लाने लगा कि अगर फूलों से खेलने ही नहीं देना तो बगीचे में लगाए ही क्यों हैं? क्या सिर्फ हमें चिढ़ाने के लिए? और वैसे भी हम फूल तोड़ें न तोड़ें वे तो मुरझांएगे ही, कम से कम हमने उनका उपयोग तो किया! वे किसी के काम तो आए! इन तर्कों को सुनकर माली सतब्ध रह गया!
आज देश में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। आप के पूर्व विधायक संदीप कुमार की सीडी के सामने आने के बाद जिस प्रकार अपने बचाव में उन्होंने स्वयं के दलित होने को कारण बताया है और जिस प्रकार आशुतोष उनके बचाव में आगे आए हैं, वह पूरे देश के लिए बेहद शर्म और अफसोस का विषय है। शर्म इसलिए कि हमारे राजनेता अपनी गलतियों को मानकर पश्चाताप एवं सुधार करने के बजाय कुतर्कों द्वारा उन्हें सही ठहराने में लग जाते हैं। अफसोस इसलिए कि चुनाव विकास एवं भ्रष्टाचार के नाम पर लड़ते हैं और समय आने पर जाति को ढाल बनाकर पिछड़ेपन की राजनीति का सहारा लेते हैं।
 
कितने शर्म की बात है कि अपने अनैतिक आचरण को आप भारत की राजनीति के उन नामों के पीछे छिपाने की असफल कोशिशों में लगे हैं जिन नामों को भारत ही नहीं बल्कि विश्व में पूजा जाता है। यह मानसिक दिवालियापन नहीं तो क्या है कि जिन गांधी जी से आप तुलना कर रहे हैं उनके सम्पूर्ण जीवन से आपको सीखने योग्य कुछ नहीं मिला? गांधी जी ने 1925 में यंग इंडिया नामक पुस्तक में लिखा है कि सिद्धांत विहीन राजनीति, श्रमविहीन सम्पत्ति, विवेक विहीन भोग-विलास चरित्र के पतन का कारण हैं। क्या गांधी जी द्वारा कही यह बातें आपको स्मरण नहीं थी या फिर आप वही देखते और दिखाते हैं जो आपके लिए अनुकूल हो?
 
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से आपने देश के हित में उनके द्वारा उठाए गए उनके साहसिक फैसले चाहे परमाणु परीक्षण हो या फिर कारगिल युद्ध में पाक को पीछे हटने के लिए मजबूर करना हो, हर प्रकार के अंतरराष्ट्रीय दबाव को दरकिनार करते हुए भारत के गौरव की रक्षा करना हो, आपको सीखने लायक कुछ नहीं मिला सिवाय उनके ब्रह्मचारी होने पर प्रश्न चिह्न लगाने के? 
 
जी हाँ, आप सही कह रहे हैं जिस प्रकार हम खाते हैं, पीते हैं, सांस लेते हैं उसी प्रकार कुछ अन्य शारीरिक क्रियाएं भी होती हैं उनको इस प्रकार अजूबा बनाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन आप शायद भूल रहे हैं कि पहली बात तो यहां बात मानव जाति की हो रही है और दूसरी बात एक सभ्य समाज की हो रही है, जहां एक सभ्य मनुष्य से एक सभ्य एवं नैतिक आचरण की अपेक्षा की जाती है। कुछ सामाजिक नियमों के पालन की उम्मीद की जाती है। मानव की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर और उसे पशु से भिन्न मानने के कारण ही भारतीय संस्कृति में शादी नामक संस्था को स्वीकार किया गया है। पुरुष और महिला की गरिमा को बनाए रखना किसी भी सभ्य समाज का सबसे बड़ा दायित्व होता है।
 
आशुतोष जी का कहना है कि मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी? सब कुछ आपसी रजामंदी से हुआ लेकिन उनकी यह दलील भी खोखली सिद्ध हो गई जब वह महिला थाने में संदीप के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने पहुंची और संदीप गिरफ्तार कर लिए गए। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक यह है कि संदीप की पत्नी ॠतु उनके समर्थन में आगे आई हैं और इस पूरे प्रकरण को एक राजनैतिक साजिश करार दिया है। जब व्यक्ति सत्ता सुख एवं भौतिकता की अंधी दौड़ का हिस्सा बना जाता है तो सही-गलत, स्वाभिमान-अभिमान, सत्य-असत्य कहीं पीछे छूट जाते हैं।
 
जब आप सार्वजनिक जीवन में होते हैं तो दुनिया की निगाहें आपकी तरफ होती हैं। जिन लोगों के कीमती वोटों के सहारे आप सत्ता के शिखर तक पहुचते हैं उनकी निगाहें आपकी ओर उम्मीद एवं आशा से देख रही होती हैं। यह अत्यंत ही खेद का विषय है कि जिस कुर्सी पर बैठकर हमारे नेताओं को उससे उत्पन्न होने वाली जिम्मेदारी एवं कर्तव्य का बोध होना चाहिए आज वह कुर्सी की ताकत और उसके नशे में चूर हो जाते हैं। जो नेता आम आदमी से उसकी नैया का खेवनहार बनने का सपना दिखाकर वोट मांगते हैं वही नेता कुर्सी तक पहुंचने के बाद उस आम आदमी की जरूरत पर उसका शोषण करते हैं। एक राशन कार्ड बनवाने जैसी मामूली बात भी एक महिला के शोषण का कारण बन सकती है! धिक्कार है ऐसे समाज पर जहां ऐसा होता है और उससे भी अधिक धिक्कार है उन लोगों पर जो ऐसे घृणित आचरण को उचित ठहराते हैं।
 
बात केवल अनैतिक आचरण की नहीं है बात उस आचरण को सही ठहराने की है बात उन कुतर्कों की है जो भारतीय समाज में आशुतोष जैसे लोगों द्वारा दिए जा रहे हैं। बात यह है कि हमारी आने वाली पीढ़ी के सामने हम कैसे उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। अब समय है आम आदमी को अपनी ताकत पहचानने की, समय है ऐसे लोगों को पहचानकर उनका सामाजिक एवं राजनैतिक बहिष्कार करने की, समय है कि यदि ऐसे नेता चुनाव में खड़े होने की हिम्मत करें तो इनकी जमानत जब्त करवाने की, अब समय है भारत की राजनीति में स्वच्छता लाने की। काम आसान नहीं है लेकिन नामुमकिन भी नहीं है।
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