बीजिंग। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सख्त शून्य-कोविड नीति के खिलाफ अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन के बीच चीन ने मंगलवार को कहा कि वह कोरोनावायरस लॉकडाउन के प्रभाव को कम करने के लिए कदम उठाएगा। शंघाई और बीजिंग सहित चीन के कई शहरों में पिछले कुछ दिनों में लॉकडाउन के कड़े नियमों के खिलाफ प्रदर्शन गंभीर होने के साथ शी के पद छोड़ने की मांग की जाने लगी।
प्रदर्शन बढ़ने के साथ पुलिस ने कार्रवाई तेज कर दी और अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शनकारियों के घर भी पहुंची। प्रदर्शनकारियों को लेकर वैश्विक चिंताओं को दूर करने का प्रयास करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि चीन बदलती परिस्थितियों के आधार पर शून्य-कोविड नीति को समायोजित कर रहा है।
उन्होंने कहा कि हम लोगों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए विज्ञान आधारित अधिकतम सुरक्षा में सुधार करते रहेंगे तथा सामाजिक आर्थिक विकास पर कोविड के प्रभाव को कम करेंगे। चीन, कोविड को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करेगा और स्थिर आर्थिक प्रदर्शन सुनिश्चित करेगा।
चीन ने सख्त शून्य-कोविड नीति लागू की है जिसके तहत कम मामले आने पर भी बड़े पैमाने पर जांच के साथ सख्त लॉकडाउन लगाए जाते हैं। वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारियों ने स्वीकार किया कि लोग हर जगह एक दृष्टिकोण से कदम उठाए जाने को लेकर नाराज हैं।
राष्ट्रीय रोग नियंत्रण और रोकथाम प्रशासन के एक पर्यवेक्षण अधिकारी चेंग युक्वान ने मंगलवार को कहा कि जनता द्वारा उजागर की गई समस्याओं का उद्देश्य महामारी की रोकथाम और नियंत्रण व्यवस्था को खत्म करना नहीं, बल्कि रोकथाम उपायों को सरल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है।
यह पूछे जाने पर कि क्या अधिकारी विरोध के बाद शून्य-कोविड नीति पर पुनर्विचार करेंगे? राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग (एनएचसी) के प्रवक्ता माई फेंग ने कहा कि समाज और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को कम करने के लिए नीति को ठीक करने के प्रयास जारी रहेंगे।
जिन-जिन जगहों पर सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए हैं, उन जगहों को अवरोधक लगाकर सील कर दिया गया है। इसके अलावा सिंघुआ विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सैकड़ों छात्रों ने सादे कागज के साथ विरोध प्रदर्शन किया। इस तरह का प्रदर्शन चीनी सेंसरशिप के खिलाफ अवज्ञा का प्रतीक बन गया है। प्रदर्शनकारी छात्रों को अपने गृहनगर जाने की सलाह दी गई।
तिआनमेन चौक की 1989 की घटना के मद्देनजर सरकार चौकसी बरत रही और सुनिश्चित करना चाहती है कि विश्वविद्यालय परिसरों में प्रदर्शन भड़कने से पहले छात्र वहां से चले जाएं। तिआनमेन प्रदर्शन के दौरान कम्युनिस्ट राष्ट्र में लोकतंत्र और स्वतंत्रता की मांग करने वाले हजारों छात्र मारे गए थे।
प्रदर्शनकारियों और विदेशी मीडिया पर पुलिस की कार्रवाई की वैश्विक स्तर पर आलोचना हुई है। शंघाई में बीबीसी के एक पत्रकार को हिरासत में लिया गया और उनसे मारपीट की गई। संयुक्त राष्ट्र ने चीन से शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार का सम्मान करने का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के प्रवक्ता जेरेमी लारेंस ने मीडिया से कहा कि केवल विरोध करने पर लोगों को हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए।
अमेरिका में रणनीतिक संचार के लिए व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद समन्वयक जॉन किर्बी ने कहा कि अमेरिका, चीन के घटनाक्रम पर करीबी नजर रख रहा है। किर्बी ने कहा कि लोगों को इकट्ठा होने और शांतिपूर्ण ढंग से नीतियों या कानूनों का विरोध करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
लंदन में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कारोबारियों और विदेश नीति विशेषज्ञों के साथ बातचीत के दौरान कहा कि विरोध के सामने चीन ने बीबीसी पत्रकार पर हमला करने सहित आगे बढ़ने का रास्ता चुना है। हम मानते हैं कि चीन हमारे मूल्यों और हितों के लिए व्यवस्थागत चुनौती पेश करता है। यह चुनौती लगातार गंभीर होती जाती है, क्योंकि वह और अधिक अधिनायकवाद की तरफ बढ़ती है।
आधिकारिक मीडिया ने भी नियमों में ढील के संकेत दिए हैं। सरकार के नियंत्रण वाले अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' के पूर्व संपादक हू जिजिन ने ट्वीट किया कि पिछले सप्ताहांत में चीन में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए। महामारी की रोकथाम और नियंत्रण के उपायों में ढील मिलने से जनभावना जल्द ही शांत होगी। मैं अनुमान लगा सकता हूं कि चीन अराजक या नियंत्रण से बाहर नहीं होगा।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने मंगलवार को कहा कि देश में कोविड-19 के 38,421 नए मामले आए। इनमें से 5,375 मामले बीजिंग में आए, जहां कई इमारतों को बंद कर दिया गया है।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta