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संजू : फिल्म समीक्षा

संजू : फिल्म समीक्षा | Movie Review of Sanju in Hindi
राजकुमार हीरानी जैसे ऊंचे कद के निर्देशक के लिए संजय दत्त जैसा विषय स्तर से नीचे है। आखिर संजय दत्त के जीवन में ऐसा क्या है कि हीरानी को उस पर फिल्म बनाने की जरूरत महसूस हो। नि:संदेह संजय के जीवन में कई ऐसे उतार-चढ़ाव हैं जिस पर कमर्शियल फिल्म बनाई जा सकती है, लेकिन हीरानी कभी भी अपनी फिल्म को सफल बनाने के लिए इस तरह समझौते नहीं करते। 
 
संजय दत्त के साथ हीरानी ने तीन फिल्में की हैं और उस दौरान संजय ने ऐसे कई किस्से सुनाए जिन्हें सुन हीरानी को लगा हो कि संजय के ये रोचक किस्से दर्शकों तक पहुंचने चाहिए। साथ ही यह बात भी बताना जरूरी है कि अदालत फैसला दे चुकी है कि संजय दत्त आतंकवादी नहीं हैं और उन्होंने सिर्फ गैरकानूनी तरीके से हथियार रखे थे जिसकी सजा वे काट चुके हैं। यह बात ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाई। 
 
संजू फिल्म आपका भरपूर मनोरंजन करती है, लेकिन यदि गहराई से सोचा जाए तो यह संजय दत्त का महिमा मंडन भी करती है। संजय दत्त को एक 'हीरो' की तरह पेश किया गया है मानो उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत बड़े कारनामे किए हो। यही बात फिल्म देखते समय खटकती है क्योंकि कई जगह निर्देशक और लेखक लाइन क्रॉस कर गए हैं। 
 
सभी जानते हैं कि संजय दत्त उस समय ड्रग्स की चपेट में आ गए थे जब उनकी पहली फिल्म 'रॉकी' रिलीज भी नहीं हुई थी। उसी दौरान उनकी मां और फिल्म अभिनेत्री नरगिस दत्त की मृत्यु हो गई थी और संजय दत्त नशे में चूर थे। इंटरवल तक, ड्रग्स लेने वाले संजय से लेकर तो  ड्रग्स से छुटकारा पाने वाले संजय की कहानी फिल्म में दिखाई गई है। 
 
इंटरवल के बाद फिल्म उस किस्से को दिखाती है जब संजय हथियार रखने के मामले में फंस जाते हैं और किस तरह से संजय और उनके पिता सुनील दत्त परिवार पर लगे दाग को मिटाने के लिए संघर्ष करते हैं। 
 
राजकुमार हीरानी और अभिजात जोशी ने बहुत चतुराई से स्क्रिप्ट लिखी है। उन्होंने फिल्म की शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया है कि यह फिल्म संजय दत्त के जीवन में घटित कुछ घटनाओं से प्रेरित है। नाटकीयता के लिए कुछ कल्पना भी शामिल की गई है। वास्तविकता और कल्पना के धागों को उन्होंने इतनी बारीकी से पिरोया है कि दर्शकों के लिए यह समझना कठिन हो जाता है कि क्या कल्पना है और क्या हकीकत? कुछ हाल ड्रग्स लिए संजय दत्त की तरह हो जाता है जिसे समझ नहीं आता कि जो हो रहा है वो सपना है या हकीकत?  
 
फिल्म की शुरुआत से संजय दत्त के प्रति इमोशन्स जगा दिए गए हैं। सीन ऐसे बनाए गए हैं कि दर्शक तुरंत संजय दत्त को पसंद करने लगते हैं। इसके बाद उन्हें सभी बातों में मजा आने लगता है और पूरी सहानुभूति संजय दत्त के साथ हो जाती है। 
 
यदि किसी फिल्म का ऐसा सीन होता तो जिसमें अस्पताल में मां कोमा में है और सामने बैठा उसका बेटा ड्रग्स ले रहा है तो दर्शक उसे व्यक्ति को धिक्कारते, लेकिन 'संजू' में इस दृश्य को इस तरह से पेश किया गया है कि संजय के लिए आपको दया आती है। गलती संजय की नहीं बल्कि उस दोस्त की लगती है जो संजू को ड्रग्स के दलदल की ओर धकेलता है। 
 
एक लेखिका (अनुष्का शर्मा) का किरदार बनाया गया है जो संजय दत्त के जीवन पर इसलिए किताब नहीं लिखती क्योंकि संजय ड्रग्स लेते हैं। आतंकवादी होने का उस पर ठप्पा लगा है, लेकिन बाद में वह किताब लिखने के लिए मान जाती है। इस सीक्वेंस के जरिये दर्शकों के मन में बात डाली गई है कि संजय दत्त फंस गए थे।  
 
संजय दत्त के जीवन के कई किस्से हैं। एक सुपरस्टार को उन्होंने धमकाया था। एक हीरोइन के घर के सामने उन्होंने फायर किए थे। उन्होंने कई शादियां की। उनकी बड़ी बेटी त्रिशाला से उनके संबंध तनावपूर्ण रहे। वे गलत संगतों में फंस गए थे। 90 के दशक की एक टॉप हीरोइन से उनकी नजदीकियां थीं। इन बातों का कोई जिक्र फिल्म में नहीं मिलता। 
 
यह भी कहा जा सकता है कि अब इन लोगों की अपनी जिंदगियां हैं जिनके साथ खिलवाड़ करना उचित नहीं है, लेकिन एक राजनेता को दिखाने में समझौता नहीं किया गया जो संजय दत्त से मुलाकात के वक्त सो जाता है। इशारों-इशारों में वह नेता कौन है ये बता दिया गया है। जब यह दिखाया जा सकता है तो इशारों में और भी कई बातें दिखाई जा सकती थीं। 
 
यहां पर लेखक और निर्देशक ने सूझबूझ से काम लिया और साफ कह दिया कि यह बायोपिक नहीं है। इसलिए उन्हें अधिकार मिल जाता है कि वे क्या दिखाएं और क्या नहीं? उन्होंने वहीं पहलू चुने जिससे यह लगे कि संजय दत्त मासूम थे और न चाहते हुए भी उलझते चले गए।  
 
इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जाए तो आप फिल्म का भरपूर मजा ले सकते हैं। फिल्म लगातार मनोरंजन करती है। एक पल के लिए भी बोझिल नहीं होती। कई दृश्य आपको हंसाते हैं। आपको इमोशनल करते हैं। खास तौर पर संजय दत्त और सुनील दत्त वाले किस्से शानदार बने हैं। 
 
संजय दत्त और सुनील दत्त के रिश्ते के बारे में कई बातें पता चलती हैं। संजय दत्त जब जेल में थे तब सुनील दत्त भी जमीन पर सोते थे और पंखा भी चालू नहीं करते थे क्योंकि संजय के पास भी कोई पंखा नहीं था। संजय दत्त अपने पिता से इसलिए नाराज थे क्योंकि वह कभी भी संजू की तारीफ नहीं करते थे। सुनील दत्त की छवि एक ईमानदार और साफ-सुथरे शख्स की थी और संजय दत्त इसलिए कुंठित थे कि वे पिता जैसे नहीं बन पाए। उनकी महानता को नहीं छू पाए। 
 
फिल्म का वो सीक्वेंस बेहद इमोशनल है जहां पर संजय दत्त ने अपनी पिता की तारीफ में एक भाषण तैयार किया है और परिस्थितिवश वे अपने पिता को यह सुना नहीं पाते और अगले ही दिन सुनील दत्त की मृत्यु हो जाती है। पिता-पुत्र के रिश्ते में उपजे तनाव और प्यार को बेहद खूबसूरती के साथ दिखाया गया है और यह दिल को छू जाता है। 
 
इसी तरह संजय दत्त और उनके खास दोस्त कमलेश कापसी (विक्की कोशल) के बीच दृश्य खूब हंसाते हैं। जो हर मुसीबत में संजय दत्त का साथ निभाता है और एक बार रूठ भी जाता है। कमलेश के अनुसार संजय की जिंदगी सिर्फ 'ख', 'प' और 'च' शब्दों के इर्दगिर्द घूमती है। इनकी पहली मुलाकात, साथ में नाइट क्लब जाना, चाय में वोदका पिलाना, संजय की पहली गर्लफ्रेंड रूबी से मिलने वाले सीन खूब मनोरंजन करते हैं। 
 
निर्देशक के रूप में राजकुमार हीरानी ने फिल्म को संजय दत्त के 'सफाईनामा' के रूप में पेश किया है। वे संजय का यह रूप दिखाने में सफल रहे कि वे 'सिचुएशन्स' का शिकार रहे हैं और उनकी ज्यादा गलतियां नहीं थी। संजय की छवि खराब करने वाली बातों को उन्होंने चुना ही नहीं। संजय और अंडरवर्ल्ड कनेक्शन को भी उन्होंने उतना ही दिखाया जितना जरूरी था। 
 
फिल्म को मनोरंजक बनाने में वे सफल रहे और पूरी फिल्म में उन्होंने दर्शकों को बांध कर रखा है। घटनाओं को उन्होंने इस तरह से पेश किया है कि फिल्म रोचक लगती है। कुछ दृश्यों में वे हास्य के नाम पर 'स्तर' से नीचे भी गए हैं। 
 
इस फिल्म को आप चाहें तो सिर्फ रणबीर कपूर के लिए भी देख सकते हैं। फिल्म की पहली फ्रेम से ही वे संजय दत्त लगते हैं। ऐसा लगता है मानो हम संजय दत्त को देख रहे हैं। उनका अभिनय फिल्म को अविश्वसनीय ऊंचाइयों पर ले जाता है और दर्शकों को वे अपने अभिनय से सम्मोहित कर लेते हैं। केवल रणबीर का अभिनय देखते हुए ही हमें फिल्म अच्छी लगने लगती है। संजय दत्त के मैनेरिज्म और बॉडी लैंग्वेज को उन्होंने बहुत ही सूक्ष्मता से पकड़ा है और कहीं भी पकड़ को ढीली नहीं होने दिया। इस फिल्म में उनका अभिनय वर्षों तक याद किया जाएगा।
 
सुनील दत्त के किरदार में परेश रावल का अभिनय बेहतरीन है। सुनील दत्त की जो छवि है उसे परेश ने अपने अभिनय से दर्शाया है। दत्त साहब की विशाल शख्सियत को परेश के अभिनय से आप महसूस कर सकते हैं। विक्की कौशल ने संजय दत्त के जिगरी दोस्त के रूप में खूब मनोरंजन किया है। वे बेहद तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और हर फिल्म में उनका अभिनय देखने लायक होता है। 
 
संजय दत्त को ड्रग्स देने वाले व्यक्ति का किरदार जिम सरभ ने इतना शानदार तरीके से अभिनीत किया है उनसे आप नफरत करने लगते हैं। छोटे-छोटे रोल में अनुष्का शर्मा, दीया मिर्जा, सोनम कपूर, बोमन ईरानी, करिश्मा तन्ना, मनीषा कोइराला, अंजन श्रीवास्तव, सयाजी शिंदे ने अपना काम शानदार तरीके से किया है। 
 
फिल्म के गाने देखते समय अच्छे लगते हैं। अंत में संजय दत्त पर भी एक गाना फिल्माया गया है जिसमें वे 'मीडिया' और उसके 'सूत्रों' को कोसते नजर आते हैं जिन्होंने उनकी जिंदगी में भूचाल ला दिया था। 
 
एक्टिंग और एंटरटेनमेंट इस फिल्म को देखने दो बड़े कारण हैं, लेकिन फिल्म हीरानी के स्तर की नहीं है। 
 
निर्माता : विनोद चोपड़ा फिल्म्स, राजकुमार हिरानी फिल्म्स, फॉक्स स्टार स्टूडियोज़
निर्देशक : राजकुमार हिरानी
संगीत : रोहन रोहन, विक्रम मंट्रोज़
कलाकार : रणबीर कपूर, अनुष्का शर्मा, सोनम कपूर, परेश रावल, मनीषा कोइराला, दीया मिर्जा, विक्की कौशल, जिम सरभ, बोमन ईरानी
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 41 मिनट 45 सेकंड 
रेटिंग : 3/5 
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