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Last Updated : शुक्रवार, 24 जुलाई 2020 (23:55 IST)

दिल बेचारा : फिल्म समीक्षा

दिल बेचारा : फिल्म समीक्षा - Dil Bechara, Movie Review in Hindi, Sushant Singh Rajput, Mukesh Chhabra, Samay Tamrakar, Sanjana Sanghi
इतिहास गवाह है कि क्लासिक फिल्म का रीमेक बनाने में कई फिल्मकार औंधे मुंह गिरे हैं। ओरिजनल वाला जादू या प्रभाव पैदा करना आसान बात नहीं है। जिन्होंने मूल फिल्म देख रखी है, वे तुलनात्मक वाले 'मोड' में रहते हैं। जिन्होंने नहीं देखी है उनकी अपेक्षाएं आसमान छूने लगती है। 
 
कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा ने निर्देशक के रूप में अपनी पहली फिल्म 'द फॉल्ट इन ऑवर स्टार' का रीमेक बनाने का फैसला लेकर कुछ बड़े ही साइज का जूता पहन लिया है। जॉन ग्रीन के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित यह अमेरिकन फिल्म दो ऐसे प्रेमियों की 'इमोशनल जर्नी' है जिसे देख दर्शक स्क्रीन पर दिखाए जा रहे रोमांस और इमोशन को फील करते हैं। प्रेमियों का दर्द उन्हें अपना दर्द लगता है। फिल्म इमोशन से इतनी सराबोर है कि आंखें नम हो जाती हैं। 
 
यह प्रभाव पैदा करने में मुकेश छाबड़ा 'दिल बेचारा' में असफल रहे हैं। दर्शकों का इस फिल्म से इसलिए इमोशनल जुड़ाव है क्योंकि फिल्म के हीरो सुशांत सिंह राजपूत फिल्म रिलीज होने के 40 दिन पहले इस दुनिया को अलविदा  कह गए। वे इस फिल्म को देख सुशांत को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं और इसलिए फिल्म से उनका एक किस्म का भावनात्मक लगाव है। 
 
यदि इस लगाव को थोड़ी देर के लिए 'साइडलाइन' कर फिल्म को देखा जाए तो 'दिल बेचारा' एक औसत फिल्म के रूप में सामने आती और शायद सुशांत भी यह फिल्म देख कुछ ऐसा ही 'फील' करते। 
 
 कहानी ऐसे युवा जोड़े की है जो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से ग्रस्त हैं और उनके पास बहुत कम समय है। लड़का जिंदादिल है और बोरिंग लाइफ जी रही लड़की के जीवन में एक नई उमंग जगाता है। जीना और मरना उनके हाथ में नहीं है, लेकिन इसके बीच का सफर उनके हाथ में है जिसमें वे जिंदगी का हर रंग भरना चाहते हैं। 
 
कहानी में रोमांस और इमोशन कूट-कूट कर भरा हुआ है, लेकिन मुकेश छाबड़ा का सपाट निर्देशन इस पर पानी फेर देता है। वे 'द फॉल्ट इन ऑवर स्टार' के आसपास भी नहीं फटके कि दर्शकों के गले रूंध जाए या रोमांस देख जिंदगी के प्रति प्यार बढ़ जाए। 
 
किरदारों को उन्होंने ठीक से स्टैबलिश भी नहीं किया और कहानी को सरपट दौड़ाना शुरू कर दिया, इससे दर्शक कनेक्ट नहीं हो पाते और यह सिलसिला फिल्म के खत्म होने तक चलता रहता है। फिल्म की नायिका 'फील' करती है कि जब से नायक से उसकी मुलाकातें शुरू हुई हैं, तब से उसकी जिंदगी में बदलाव आया है, लेकिन ये बात फिल्म देख रहे दर्शक फील नहीं पर पाते। 
 
मुकेश का सारा ध्यान इस बात पर रहा कि फ्रेम को खूबसूरत कैसे बनाया जाए। इस काम में उन्हें सफलता भी मिली है, लेकिन ये 'पोस्टकार्ड ब्यूटी' के समान है जिसे आप केवल देख सकते हैं, महसूस नहीं कर सकते।  
 
सुशांत सिंह राजपूत की ऊर्जा फिल्म में बहती हुई महसूस होती है। एक खास किस्म के मैनेरिज्म के जरिये उन्होंने अपने किरदार को बेहतर बनाने की कोशिश की है। निर्देशक ने जितना मांगा था उससे ज्यादा उन्होंने दिया है। स्क्रिप्ट से उठ कर अभिनय किया है, लेकिन लेखन और निर्देशन की कमी उनके पैरों में बंधी भारी-भरकम जंजीर समान सिद्ध हुई। 
 
संजना सांघी मासूम लगी हैं और उनका अभिनय भी अच्‍छा है। सुशांत और संजना की जोड़ी में मासूमियत झलकी है। छोटे से रोल में सैफ अली खान बेअसर रहे हैं। ए.आर. रहमान का संगीत उनके नाम के अनुरूप नहीं है। 
 
दिल बेचारा में सुशांत चमकते हैं, लेकिन यही बात फिल्म के लिए नहीं कही जा सकती। 
 
निर्देशक : मुकेश छाबड़ा
संगीत : एआर रहमान
कलाकार : सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी, सैफ अली खान
*डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर उपलब्ध 
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