‘फिल्म अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। बिना अनुभव के इस माध्यम में काम करना आसान नहीं, लेकिन अगर इरादे मज़बूत हों तो पहली कोशिश भी कामयाब हो सकती है। दिल्ली की जवाहरलाल यूनिवर्सिटी में अपनी पहली फिल्म – ‘अरेंज टू लव’ के प्रदर्शन के दौरान ये बात डॉ. रानू सिन्हा ने कही।
इस फिल्म का निर्माण, लेखन और निर्देशन डॉ. रानू ने ही किया है जिसे सेन फ्रांसिस्को में प्रतिष्ठित ‘फेस्टिवल ऑफ ग्लोब (फॉग) का अवॉर्ड मिल चुका है। फिल्म के प्रदर्शन के लिए वे अमेरिका से दिल्ली आई थीं। पहले प्रदर्शन के लिए उन्होंने जेएनयू यूनिवर्सिटी को इसलिए चुना क्योंकि यहीं से उन्होंने समाज शास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की है।
यहीं पर उन्होंने देश-विदेश के छात्र-छात्राओं के बीच रहकर धर्म-जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर इंसानी रिश्तों का पहला पाठ सीखा था।
सबके सहयोग ने दिलाई कामयाबी : कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में अरसे तक समाजशास्त्र की प्रोफेसर रहीं डॉ. रानू अब फिल्म निमार्ण के क्षेत्र में हाथ आज़मा रही हैं। अपने नए अवतार के बारे में इस प्रोफेसर ने कहा कि ‘मैं खुशनसीब हूं कि मुझे अपनी पहली कोशिश में उन दोस्तों और परिचितों का सहयोग मिला जिन्होंने ज़िदंगी में कभी कैमरा फेस नहीं किया था। इनमें से बहुत से मेरे बेटे रोहन से जुड़े टीचर या स्टूडेंट्स हैं।
इसके साथ ही मैं अपनी फिल्म का श्रेय अमेरिका के बहुत से साथियों, इंडिया कम्युनिटी सेंटर और फॉग के डॉ. रोमेश जापरा को भी देती हूं जिन्होंने कदम-कदम पर मेरा हौसला बढ़ाया, हर तरह से मेरी मदद की। ‘
मल्टी कल्चर दुनिया का ग्लोबल सच : समारोह में भारत में फेस्टिवल ऑफ ग्लोब के भारत में मैनेजिंग डायरेक्टर कैप्टन कृष्ण शर्मा भी शामिल हुए। उन्होंने फिल्म की मल्टी कल्चर स्टोरी की सराहना की। फिल्म के इंडियन, ब्रिटिश, मैक्सिकन, अफ्रीकन, जर्मन, अमेरिकन किरदारों की तुलना अपने परिवार के सदस्यों से की जो अलग-अलग समाज,देशों और धार्मिक परंपराओं से वास्ता रखते हैं।
उन्होंने कहा कि फॉग के संस्थापक डॉक्टर रोमेश जापरा भी आज की मल्टी कल्चर ग्लोबल दुनिया और उससे जुड़ी कहानियों को बेहद अहम मानते हैं। ये दौर नए समाज का सच है। कैप्टन शर्मा ने दर्शकों को फॉग उत्सव में शामिल होने का निमंत्रण देते हुए कहा कि अगस्त 2017 में फेस्टिवल ऑफ ग्लोब का सिल्वर जुबली समारोह सेनफ्रिस्को में होने जा रहा है। इस उत्सव में बहुसांस्कृतिक माहौल के दर्शन होते हैं। इसमें शामिल होने का मतलब एक नई ग्लोबल संस्कृति का गवाह बनना है।
डॉ. रानू ने पेश की नई मिसाल : समारोह में सीनियर जर्नलिस्ट और क्रिएटिव पर्सनैलिटी शकील अख़्तर ने कहा कि डॉ. रानू ने तकरीबन ज़ीरो बजट में अवॉर्डेड फिल्म बनाकर एक नई मिसाल तो पेश की ही है, कई फिल्म निर्माताओं के सामने चुनौती भी खड़ी कर दी है। आज समाज बदलाव के दौर से गुज़र रहा है, बदलते परिवेश में ‘अरेंज टू लव’ जैसे कई विषय हैं जिनपर बेहतर फिल्में बनाई जा सकती हैं। जेएनयू भी ऐसी फिल्मों के निमार्ण में डॉ. रानू के अनुभवों का लाभ ले सकता है।
उन्होंने डॉ. रानू के पहली कामयाब कोशिश पर खुशी जताई और भविष्य के प्रोजेक्ट्स के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं। कार्यक्रम में अपनी ईमानदारी के लिए सुर्खियों में रहीं राजस्थान कैडर की आईएएस मुग्धा सिन्हा, आईएएस राजकुमार, मुंबई से जेएनयू पहुंचीं अभिनेत्री शिवांगी चौधरी, स्पैनिश भाषा की प्रो. रोहिता सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मुग्धा सिन्हा ने कहा कि धर्म, जाति, नस्ल, अमीरी-ग़रीबी से उठकर सहज मानवीय मूल्यों की क़द्र इस दुनिया में सबसे बढ़कर है। रूढ़ियों से उठकर आगे बढ़ने का संदेश इस फिल्म के कथानक की एक और बड़ी खूबी है, जिसे समझने और स्वीकार करने की ज़रूरत भी है।
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के : कार्यक्रम का माहौल उस वक्त नए जोश से भर गया जब गायक आदित्य राज ने डॉ. रानू के सम्मान में फिल्म इम्तेहान का गीत ‘रुक जाना नहीं तू कहीं हार के’ गाकर सुनाया। रूड़की के रहने वाले आदित्य हॉलेंड के होटल बिज़नेसमैन हैं।
उन्होंने रानू के साथ एक नई फिल्म बनाने की पेशकश भी की। इस समारोह में जेएनयू के प्राध्यापकों, छात्रों के साथ कई बुद्धिजीवियों और रानू के करीबी दोस्तों के साथ उनके परिवारिक सदस्यों ने हिस्सा लिया। जेएनयू की तरफ से कार्यक्रम का समन्वयन डॉ. देवव्रत बराल ने किया। (वेबदुनिया न्यूज)