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Written By समय ताम्रकर

दारा सिंह : रुस्तम-ए-हिंद

दारा सिंह : रुस्तम-ए-हिंद -
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दारा सिंह का नाम लेते ही एक हट्टे-कट्टे बलशाली पुरुष की छवि उभरती है, जिससे डर नहीं लगता बल्कि ऐसा महसूस होता है कि फौलाद के शरीर वाला यह शख्स किसी भी मुसीबत से हमें बचाने का माद्दा रखता है। उसके मजबूत शरीर में एक मुलायम दिल भी है और चेहरे पर गजब की मासूमियत। इन्हीं खासियत के कारण दारासिंह फिल्मकारों की नजरों से बच नहीं सके और उनकी इस इमेज को फिल्मों के जरिये खूब भुनाया गया। उनका गुरुवार सुबह साढ़े सात बजे निधन हो गया।

किंग-कांग, जॉर्ज जॉरडिएंको, जॉन डिसिल्वा, माजिद अकरा, शेन अली जैसे महारथियों को दारा सिंह ने जब धूल चटा दी तो उनके नाम डंका चारों ओर बजने लगा। इस रियल हीरो के दरवाजे पर सिल्वर स्क्रीन पर हीरो बनने के प्रस्ताव जब लगातार दस्तक देने लगे तो वे अपने आपको नहीं रोक पाए और अखाड़े से स्टुडियो में फैली चकाचौंध रोशनी की दुनिया में आ गए।

जवानी के दिनों में दारासिंह बेहद हैंडसम थे। ऊंचा कद, चौड़ा सीना, मजबूत बांहे और मुस्कान से सजा चेहरा। फिल्म वालों को तो अपना हीरो मिल गया। उस दौर में तलवार बाजी, स्टंट्सम और फाइटिंग वाली फिल्मों का एक अलग ही दर्शक वर्ग था।

बड़े सितारे इस तरह की फिल्मों में काम करने से कतराते थे। इन दिनों हर स्टार जिम में ज्यादा वक्त बिताता है, लेकिन उस वक्त छुईमुई से हीरो का चलन था और कई हीरो तो लिपस्टिक का उपयोग भी करते थे।

मारधाड़ वाली फिल्म बनाने वालों को ऐसा हीरो चाहिए था जो उनकी फिल्मों में फिट बैठ सके। दारा सिंह के बारे में सबसे अहम बात यह थी कि वे ऐसी भूमिकाओं में विश्वसनीय लगते थे क्योंकि रियल लाइफ में भी वे इस तरह की फाइटिंग करते थे। निर्देशकों को उनके किरदार को स्थापित करने में ज्यादा फुटेज खर्च नहीं करना पड़ते थे।

दारासिंह की शुरुआती फिल्मों के नाम भी ऐसे हैं कि सुनकर लगता है ‍जैसे किसी कुश्ती की स्पर्धा के नाम हो, जैसे- रुस्तम-ए-रोम, रुस्तम-ए-बगदाद, फौलाद। इन फिल्मों की कहानी बड़ी सामान्य होती थी और इनमें अच्छाई बनाम बुराई को दिखाया जाता था। दारा सिंह अच्छाई के साथ होते थे और विलेन को मजा चखाते थे।

स्क्रिप्ट इस तरह लिखी जाती थी कि ज्यादा से ज्यादा फाइट सीन की गुंजाइश हो और इन दृश्यों में दारा सिंह जब दुश्मनों को धूल चटाते थे ‍तो थिएटर में बैठे दर्शक खूब शोर मचाते थे। जंग और अमन, बेकसूर, जालसाज, थीफ ऑफ बगदाद, किंग ऑफ कार्निवल, शंकर खान, किलर्स जैसी कई फिल्में दारा सिंह ने की और दर्शकों को रोमांचित किया। शर्टलेस होकर उन्होंने अपना फौलादी जिस्म का खूब प्रदर्शन किया।

हीरो के रूप में दारा सिंह लंबी पारी इसलिए खेलने में सफल रहे क्योंकि लोग उनसे बहुत प्यार करते थे। वे बीस गुंडों की एक साथ पिटाई करते थे तो दर्शकों को यह यकीन रहता था कि यह आदमी रियल लाइफ में भी ऐसा कर सकता है।

अभिनय की दृष्टि से देखा जाए तो दारा सिंह को हम बेहतर अभिनेता नहीं कह सकते हैं। रोमांटिक सीन में हीरोइन के साथ रोमांस करते वक्त उनका हाल बहुत बुरा रहता था। उनके उच्चारण भी खराब थे। दारा सिंह भी इन बातों से अच्छी तरह परिचित थे और उन्होंने कभी दावा भी नहीं किया कि वे महान कलाकार है।

मुमताज के साथ दारा सिंह की जोड़ी खूब जमी। दोनों ने लगभग 16 फिल्मों में काम किया। उस दौरान बॉलीवुड की हर फिल्म में गाने मधुर हुआ करते थे, इसलिए दारा सिंह पर भी कई हिट नगमें फिल्माए गए।

ऐसे उदाहरण बिरले ही मिलते हैं जब एक ही व्यक्ति ने खेल और फिल्म में एक साथ सफलता हासिल की हो। हिंदी फिल्मों के साथ-साथ दारा सिंह ने कई पंजाबी फिल्मों में भी काम किया। फिल्में निर्देशित भी की और मोहाली में एक स्टुडियो भी खोला।

जब हीरो बनने की उम्र निकल गई तो दारा सिंह ने चरित्र भूमिकाएं निभाना शुरू कर दी और 2007 में रिलीज हुई ‘जब वी मेट’ तक वे सिनेमा में नजर आते रहे।

रामानंद सागर के टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ में हनुमान की भूमिका निभाकर उन्होंने अपार लोकप्रियता हासिल की। सागर का कहना था कि हनुमान के रोल में किसी और कलाकार की कल्पना नहीं की जा सकती थी।

19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसरर जिले के धरमूचक गांव में जन्मे दारा सिंह रंधावा को बचपन से कसरत का शौक था। अखाड़े में जाकर वे दण्ड पेलते थे और कहा जाता है कि वे 100 बादाम, दूध-मक्खन के साथ रोज खाते थे।

कुश्ती की ओर दारा सिंह का स्वाभाविक रुझान था और भाइयों के साथ मिलकर उन्होंने पहलवानों को हराने का सिलसिला शुरू किया। दंगलों में जाकर उन्होंने कई पहलवानों की चित किया और उनके नाम का डंका बजने लगा।

गांव से निकल कर वे शहर पहुंचे और फिर देश से बाहर जाकर उन्होंने कई नामी-गिरामी पहलवानों को पराजित किया। 1968 में फ्रीस्टाइल कुश्ती के वे विश्व चैम्पियन बने और 1983 में उन्होंने कुश्ती से संन्यास लिया।

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17 वर्ष की उम्र में बाप बने दारासिंह के तीन बेटे और तीन बेटियों का भरा-पूरा ‍परिवार है। उनके बेटे विंदु दारा सिंह को उन्होंने हीरो के रूप में लांच किया था, लेकिन विंदु फिल्मी दुनिया में नहीं चल पाए। फिलहाल विंदु फिल्मों में छोटे रोल निभाते हैं और टीवी शो बिग बॉस के चैम्पियन रह चुके हैं। दारा सिंह ने राजनीति में भी कदम रखा और वे 2003 से 2009 तक राज्य सभा सांसद रहे।

एक छोटे-से गांव से निकल कर दारासिंह ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाया। वे अक्सर अपने बेटों से कहते थे कि तुम यदि मेरे नाम को आगे नहीं बढ़ा सकते हो तो कोई बात नहीं पर ध्यान रखना कि इस पर कोई आंच न आए।

दारा सिंह ने इतना नाम कमाया कि वे पहलवान शब्द के पयार्यवाची बन गए। हट्टे-कट्टे शख्स को देख लोग कहते हैं कि देखो दारा सिंह आ रहा है।