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बॉलीवुड दोस्ती : ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे…..

बॉलीवुड दोस्ती : ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे….. - बॉलीवुड दोस्ती : ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे…..
बॉलीवुड के नायक और नायिका के बीच जब कुछ पक रहा होता है और खबरची जब इसे सूँघ लेते हैं, तब वे बड़ी मासूमियत से जवाब देते हैं- ‘हमारे बीच कुछ नहीं है, हम तो केवल अच्छे दोस्त हैं।‘ ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड के सभी लोग ऐसा ही करते हैं। यहाँ कई लोगों की दोस्ती भी मशहूर रही है। बॉलीवुड में सभी लोग आपस में मिलजुलकर काम करते हैं। वे काम और दोस्ती करते समय ऊँच-नीच या जात-पाँत का ध्यान नहीं रखते हैं।

 
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दोस्ती हो तो शाहरुख खान और फराह खान जैसी। फराह जब नचाती हैं, जैसा नचाती हैं, किंग खान फिल्म के सेट पर वैसे नाचने लगते हैं। मनमुटाव हुआ फिर दोस्त बन गए। साथ फिल्म कर रहे हैं। पक्के दोस्तों में ही तो ऐसा होता है। कौन कहता है कि स्त्री और पुरुष में दोस्ती नहीं हो सकती?

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दोस्ती हो तो सलमान खान और साजिद नाडियाडवाला जैसी। सलमान और साजिद की फिल्म एक ही दिन प्रदर्शित होने वाली थी। साजिद ने यह देख अपनी फिल्म का प्रदर्शन आगे बढ़ा दिया। दोस्ती में ये मामूली बात है।
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दोस्ती हो तो राज-दिलीप-देव जैसी। पचास और साठ के दशक की त्रिमूर्ति यानी देव आनंद-राजकपूर और दिलीपकुमार तीनों समकालीन ऐसे सितारे हैं, जो हमेशा दोस्त पहले रहे, अभिनेता बाद में। चवालीस साल की उम्र में चौबीस साल की सायरा बानो से जब दिलीप साहब ने शादी की, तो बरात में घोड़े के दाएँ-बाएँ राजकपूर-देव आनंद सड़कों पर नाचते गुजरे थे।
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दोस्ती हो तो रफी और किशोर जैसी। मोहम्मद रफी ने फिल्म ‘रागिनी’ तथा ‘शरारत’ में किशोर कुमार को अपनी आवाज उधार दी। मेहनताना लिया सिर्फ एक रुपया।
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दोस्ती हो तो अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी जैसी। दोनों एक्शन हीरो। दोनों को डुप्लिकेट की जरूरत नहीं। दोनों की फिल्में साथ-साथ प्रदर्शित, मगर कोई गलाकाट प्रतियोगिता नहीं।
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दोस्ती हो तो राजकपूर और मुकेश जैसी। गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जैसी। संगीतकार शंकर और जयकिशन जैसी। ये जोडि़याँ, ये दोस्तियाँ तब टूटीं, जब इनमें से जो पहले जमीन से उठ गया।
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दोस्ती हो तो अमिताभ और प्रकाश मेहरा व मनमोहन देसाई जैसी। इन दोनों की बेसिर-पैर की फिल्मों में अमिताभ ने घटिया रोल भी किए। मगर यारी-दोस्ती के तकाजे में और लिहाज के बोझ तले दबे रहे बिग-बी।
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दोस्ती हो तो फिल्मकार गुरुदत्त और जानी वॉकर जैसी। गुरुदत्त की तमाम फिल्मों में जानी वॉकर को न सिर्फ हीरो जैसा फुटेज मिला, बल्कि हर फिल्म में उन पर खास गाने भी फिल्माए गए। सर जो तेरा चकराए और दिल डूबा जाए तो चम्पी, तेल मालिश या फिर जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी, अभी-अभी यहीं था किधर गया जी।

दोस्ती हो तो ट्रेजेडी किंग दिलीपकुमार और कॉमेडियन मुकरी जैसी। दिलीपकुमार जब कभी नई फिल्म साइन करते, तो अपने से पहले साइन कराते मुकरी को। बताया जाता है कि मुकरी हमेशा दिलीप साहब के लिए शुभ-लाभ रहे हैं।

दोस्ती हो तो प्रिया राजवंश और चेतन आनंद जैसी। वे ताउम्र दोस्त बने रहे। लिव इन रिले‍शनशिप का सबसे बड़ा उदाहरण।
दोस्ती हो तो सरदार चंदूलाल शाह और गौहर मामाजी जैसी। इन्होंने ऐसी दोस्ती निभाई, वो रिश्ता निभाया जो सगे भाई-बहन ‍भी नहीं निभा सकते। बीमारी के दिनों में गौहर ने घर का एक-एक सामान बेचकर शाह का इलाज कराया और खुद तकलीफों में रहीं।

दोस्ती हो तो शशि कपूर और जेनिफर जैसी। दोस्ती को शादी में बदला शशि कपूर ने, शेक्सपीयरवाला की बिटिया जेनिफर कैंडल से। शशि परदे पर और परदे के पीछे आज जो भी हैं, जेनिफर की बदौलत हैं।
दोस्ती हो तो कॉमेडियन मेहमूद और संगीतकार पंचम यानी राहुल देव बर्मन जैसी। जब मेहमूद ने अपनी फिल्म ‘छोटे नवाब’ बनाई तो संगीत का मौका दिया आरडी को। इसे कहते हैं दोस्ती के पौधे को सींचना।

दोस्ती हो तो राजकपूर और शैलेन्द्र जैसी। फिल्म ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर ने निर्माता गीतकार शैलेन्द्र से अपने पारिश्रमिक के बदले सिर्फ सवा रुपया लिया। इसे कहते हैं हीरामन का त्याग।