सोमवार, 23 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. special session for women MLA in up assembly
Written By BBC Hindi
Last Updated : गुरुवार, 22 सितम्बर 2022 (08:22 IST)

यूपी विधानसभा में सुनाई देगी केवल महिलाओं की आवाज़, महज़ सांकेतिक या बदलाव की शुरुआत?

यूपी विधानसभा में सुनाई देगी केवल महिलाओं की आवाज़, महज़ सांकेतिक या बदलाव की शुरुआत? - special session for women MLA in up assembly
सुशीला सिंह, बीबीसी संवाददाता
  • 22 सितंबर, 2022 को पहली बार उत्तरप्रदेश की विधानसभा में केवल महिला विधायक मुद्दे उठाएंगी और अपनी बात रखेंगी
  • एक महिला विधायक न्यूनतम तीन मिनट के लिए बोल सकेंगी।
  • महिला विधायक प्रश्नकाल के बाद महिलाओं, अपनी विधानसभा आदि से जुड़े मुद्दों पर अपनी बात रख सकती हैं।
  • यूपी विधानसभा में कुल 47 महिला विधायक हैं।
  • राज्य के मंत्रिमंडल में पांच महिलाएं शामिल हैं।
  • यूपी विधानसभा में कुल 403 सीटें हैं।
 
अपना दल (एस) की नेता डॉक्टर सुरभि का कहना है कि ये पहल उन महिला विधायकों को आगे आने का मौका देगी जो चर्चा के लिए अपने प्रश्न तो शामिल करा देती थीं, लेकिन बोलने में संकोच कर जाती थीं।
 
सपा विधायक पिंकी यादव के अनुसार, महिला विधायकों को विधानसभा के हर सत्र में बोलने का मौका देकर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ये केवल एक दिन के लिए क्यों किया जा रहा है?
 
कैसे लिया गया फैसला?
विधानसभा स्पीकर सतीश महाना ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा था, ''22 सितंबर का दिन महिला विधायकों के लिए आरक्षित किया जा रहा है। इस दिन प्रश्नकाल के बाद केवल महिला सदस्यों को बोलने का मौका दिया जाएगा।'' यूपी विधानसभा का मानसून सत्र सितंबर 19 से 23 तक बुलाया गया है।
 
अपना दल की नेता और कायमगंज सीट से विधायक डॉक्टर सुरभि ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि स्पीकर ने महिला विधायकों के साथ बैठक की थी जिसमें महिला विधायकों ने कहा था कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं मिल पाता है जिसका संज्ञान लेते हुए स्पीकर ने इसी मानसून सत्र में ये फैसला लिया। राज्य में अपना दल (एस) और बीजेपी का गठबंधन है।
 
डॉक्टर सुरभि के अनुसार, ''ये एक सकारात्मक सोच और पहल है क्योंकि महिलाओं को एक दिन अपने मुद्दों को रखने का मौका मिल रहा है। ये महिला सशक्तीकरण की तरफ एक कदम है क्योंकि कई बार महिलाएं अपने मुद्दों को कहने में संकोच करती हैं। वे जनप्रतिनिधि हैं और जब अपनी बात को खड़ी होकर बोलेंगी तो उनमें भी आत्मविश्वास आएगा और जनता का भी उनमें विश्वास बढ़ेगा।''
 
केवल एक दिन के लिए सत्र क्यों?
वे बताती हैं कि ''चुनावी मंच और विधानसभा के सत्र में बोलना दो अलग-अलग बातें हैं। स्पीकर का कहना था कि सभी महिला विधायकों को बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा यानी ऐसी कोई महिला नहीं होगी जो नहीं बोलेगी। ये एक सेल्फ ग्रूमिंग होगी क्योंकि उन्हें अपने संकोच से बाहर निकलने में मदद मिलेगी।''
 
विपक्षी पार्टी सपा की नेता और असमोली से विधायक पिंकी यादव का कहना है कि वे सरकार की इस पहल का स्वागत करती हैं, लेकिन अगर हक़ीक़त में सरकार चाहती है कि महिला विधायक आगे आकर अपनी बातें रखें तो उन्हें हर सत्र में मौका दिया जाना चाहिए।
 
बीबीसी से बातचीत में पिंकी यादव का कहना है कि ''महिला विधायक एक जनप्रतिनिधि हैं जिन्हें उनके वोटर ने वहां तक पहुंचाया है। अधिकतर महिला विधायक सवाल उठाना चाहती हैं, लेकिन उन्हें बोलने के मौके नहीं दिए जाते हैं, ऐसे में वो जो बोलें या सलाह दें, इस पर कार्रवाई हो और सरकार को आश्वासन भी देना चाहिए और इस मौके को केवल एक दिन तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए।''
 
लखनऊ में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार अमिता वर्मा राज्य सरकार के इस कदम को सांकेतिक बताती हैं। उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ''स्पीकर सतीश महाना की तरफ से एक बैठक बुलायी गई थी जिसमें महिला विधायकों ने कहा था कि उन्हें बोलने का मौका नहीं मिलता है जिसके बाद इस सत्र में एक दिन महिलाओं के लिए तय कर दिया गया। वहीं मुख्यमंत्री ने इसे मिशन शक्ति कार्यक्रम से जोड़ दिया हालांकि इस फैसले का इससे कोई लेना देना नहीं है।''
 
वे बताती हैं कि ''कांग्रेस की अराधना मिश्रा, बीजेपी की बेबी मौर्य, स्वाति सिंह जैसी महिलाओं को हमने बोलते देखा है या थोड़ा पीछे जाएं तो रीता बहुगुणा, सीमा द्विवेदी, कृष्णा राज ये महिलाएं काफ़ी खुलकर बोलती थीं, लेकिन अब ये सब सांसद हो गई हैं। ऐसे में राज्य की राजनीति में ऐसी बहुत कम महिलाएं रह गई हैं जो मुखर होकर बोलती हों।''
 
उनके अनुसार, ''महिलाओं की सक्रिय भागीदारी तभी मानी जाएगी जब ये महिलाएं अपने क्षेत्रों के मुद्दे उठाएं और उन पर खुलकर बहस करें। केवल एक दिन महिलाओं के लिए रखकर कुछ बदलाव नहीं आएगा। जब महिलाओं का ऐक्टिव पार्टिसिपेशन होगा तभी उनका सशक्तीकरण होगा।''
 
'सत्ता पक्ष की महिलाएं उठाएं सवाल'
साथ ही वो एक उदाहरण देती हैं कि ''कानपुर से विधायक प्रतिभा शुक्ला की तस्वीर वायरल हुई थी जहां उनके पति बैठक कर रहे थे और वो बगल की कुर्सी पर बैठी थीं। ऐसे में प्रधान पति की चर्चा भी खूब हुई। ऐसा होता भी है जहां पति राजनीति चला रहे होते हैं, और पत्नी विधायक होती हैं। पार्टी या पति के समर्थन से चुनाव जीतना अलग है, लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिलता है जहां महिलाएं राजीतिक मुद्दों पर जागरुक दिखें और प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए उनको उठाएं।''
 
वो सवाल उठाते हुए कहती हैं कि ''आप पुरानी घटनाएं भूल जाएं, अभी हाल ही में लखीमपुर में दो नाबालिग लड़कियों की मौत के मामले में न ही पक्ष और न ही विपक्ष की महिला विधायकों ने सवाल उठाए। सत्ताधारी दल की महिलाएं पार्टी लाइन पर चलती हैं, वहीं विपक्ष में महिलाएं अपने क्षेत्र के मुद्दे कम ही उठाती नज़र आती हैं।''
 
सीएसडीएस के संजय कुमार का कहना है कि सत्र में केवल एक दिन बोलने देने के बजाए महिलाओं को हर सत्र में सवाल पूछने और मुद्दे उठाने का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
 
वो कहते हैं, ''हालांकि कुछ महिलाएं हो सकती हैं जो पुरुषों की उपस्थिति में सवाल उठाने में सहज न महसूस करती हों या उनमें आत्मविश्वास ना हो कि वे अहम मुद्दों पर बोल पाएंगी या नहीं। लेकिन इस कोशिश से क्या वो आगे आने वाले सत्रों में बढ़-चढ़ कर भाग लेंगी, ऐसा उन्हें नहीं लगता।
 
उनके अनुसार ,''विधायक एक जनप्रतिनिधि होता है और वोटर ये उम्मीद करता है कि उनका चुना हुआ विधायक उनके क्षेत्र के मुद्दों को विधानसभा में उठाए। लेकिन क्या केवल महिलाएं ही नहीं बोलतीं और पुरुष बोलते हैं तो इस पर आंकड़ों को जांचना होगा क्योंकि ऐसे कई पुरुष विधायक या सांसद हैं जो सालों साल नहीं बोलते। हां इसमें महिलाओं की संख्या ज्यादा हो सकती है। तो ये गंभीर समस्या है जिसे आप आत्मविश्वास से जोड़ कर देख सकते हैं या ये मुद्दों पर समझ का अभाव भी हो सकता है।''
 
डॉक्टर सुरभि ने ये भी जानकारी दी कि दर्शक दीर्घा में महिला छात्राओं को भी आमंत्रित किया गया है ताकि उन्हें भी राजनीति में आने की प्रेरणा मिल सके। हालांकि इसे आगे भी जारी रखा जाएगा इस सवाल पर उनका कहना था कि फिलहाल इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है।
 
राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में 5 महिलाएं बेबी रानी मौर्य, गुलाब देवी, प्रतिभा शुक्ल, विजय लक्ष्मी गौतम और रजनी तिवारी शामिल हैं। इस बार राज्य में सबसे ज्यादा संख्या में महिला विधायक चुन कर आई हैं।
 
महिला आरक्षण बिल अधर में
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि पार्टियां महिला वोटरों की अहमियत समझती हैं। महिला विधायिकों को सत्र में बोलने के लिए एक दिन देना अच्छा कदम हो सकता है, लेकिन पार्टियां अगर वाकई महिलाओं के लिए सोच रही है तो उन्हें महिला आरक्षण के बारे में भी सोचना चाहिए।
 
महिला आरक्षण विधेयक तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने लोकसभा में पेश किया था जिसे अब करीब 25 साल बीत चुके हैं, हालांकि अभी भी वो अधर में लटका हुआ है।
 
नीरजा चौधरी कहती हैं, ''देवगौड़ा ने सबसे पहले महिला आरक्षण बिल पेश किया। लेकिन अभी तक महिलाओं को 33 फ़ीसद आरक्षण नहीं मिला है। हालांकि संसद में धीरे-धीरे महिला सांसदों का प्रतिनिधित्व बढ़कर 14 फ़ीसद हुआ है, लेकिन राज्यों की विधानसभा में ये बहुत कम है। ऐसे में अगर नीति निर्धारण में महिलाओं की भी आवाज़ सुनाई दे तो ऐसे कदम उठाने की जरूरत है और यूपी इसका नेतृत्व कर सकता है।''
 
महिलाओं को सशक्त करने और उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार इसे नए नजरिए से देख कर लागू कर सकती है।
 
ये भी पढ़ें
लद्दाख में भारत-चीन की सेना पीछे हटी लेकिन स्थानीय लोग दुखी