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- सौतिक बिस्वास
चार साल पहले सत्ता संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आमतौर पर ख़बरों में बने रहे हैं। रणनीतिक रूप से नरेंद्र मोदी दुनिया भर के नेताओं को गले लगाते रहे जबकि दूसरी ओर अपने ही घर में उनसे दूरियाँ बनाए रखीं।
पिछले दिनों मोदी की मुख्य विपक्षी पार्टी, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की उन्हें गले लगाने की 'घटना' ने सुर्खियाँ बटोरीं। अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के बीते चार साल के प्रदर्शन को निशाना बनाते हुए राहुल गांधी सदन में बोल रहे थे। तभी नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी के 48 वर्षीय राहुल गांधी ने संसद में अपने तमाम राजनीतिक विरोधियों को भौचक्का कर दिया।
वो अपना भाषण ख़त्म करने के बाद पीएम मोदी की सीट की तरफ बढ़े और अचानक ही उन्हें गले लगा लिया। इसके बाद पीएम मोदी और उनकी पार्टी ने राहुल गांधी और संसद में सिकुड़ चुकी उनकी कमज़ोर पार्टी का मज़ाक उड़ाने का आनंद उठाया। इसके बाद मोदी के समर्थकों ने राहुल गांधी को भद्दे मज़ाक के साथ सोशल मीडिया पर भी ट्रोल किया।
संसद में मोदी को गले लगाने से पहले राहुल ने कहा था, "आपके भीतर मेरे लिए नफ़रत है। गुस्सा है। मगर मेरे अंदर आपके प्रति इतना सा भी गुस्सा, इतना सा भी क्रोध, इतनी सी भी नफ़रत नहीं है।"
गले लगाने की ये घटना राष्ट्रीय समाचारों में हेडलाइन बनी। मीडिया में इसे लेकर हड़बड़ी दिखी और एक अनाड़ी की तरह सोशल मीडिया पर हैशटैग #hugoplacy चल पड़ा। कुछ ने इसे ऐतिहासिक 'हग' (गले मिलना) बताया और ये साबित किया कि राहुल गांधी को जैसा कि उनके विरोधी बताते हैं, वो उससे कहीं ज़्यादा घाघ राजनेता हैं।
तो कुछ ने कहा कि कभी अनाड़ी रहे इस नेता ने आख़िर टेलीविजन पर दिखने वाली राजनीति करने की कला सीख ली है। ये कला उन्हें उस मज़बूत नरेंद्र मोदी को मात देने में मदद करेगी जो अपनी जीतने की कला और पक्के इरादे वाले दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।
'दुश्मन को कस कर गले लगाना'
समाजशास्त्री शिव विश्वनाथन कहते हैं, "तस्वीर में एक ओर मोदी पर उनके काम का बोझ साफ़ झलक रहा था तो दूसरी तरफ राहुल कुछ नया करते नज़र आए। ऐसा लगा जैसे वो अपने स्टाइल में कुछ बदलाव का संकेत दे रहे हैं।"
राजनीति के जानकार इस गले लगाने को 'नाटकीय', 'अप्रत्याशित' और 'अविश्वसनीय' मानते हैं। साथ ही इसे जानबूझकर, सोच समझ कर तैयार की गई रणनीति का हिस्सा बताते हैं।
बरखा दत्त ने लिखा कि राहुल गांधी चाहते हैं कि लोगों के बीच इस गले लगाने को लेकर 'नफ़रत की राजनीति बनाम प्रेम की राजनीति' का संदेश जाए। इससे ये दिख सके कि एक नई पीढ़ी का शिष्ट आदमी कट्टर और कड़ी छवि के व्यक्ति के आगे टिक सकता है।
एक अख़बार ने तो यहाँ तक लिख डाला कि मोदी को गले लगाने की इस योजना को तो फरवरी में ही बनाया गया था। एक डेयरी फ़र्म का कार्टून भी चर्चा में रहा, इस कार्टून में ये आश्चर्य जताया गया था कि ये गले लगाने का प्रयास था या मोदी से भद्दा मज़ाक करने की कोशिश। मेरा मानना है कि कार्टून ने इसे सही समझा है।
कई लोगों का मानना है कि राहुल का मोदी को गले लगाना मोदी के दौर में 'विषैली राजनीतिक परिस्थिति' में 'दोस्ती की भावना' से था। लेकिन दो दलों का दिखने वाला ये गले लगना मोदी से लिपटने से कहीं अधिक हमलावर सा दिखता है।
राहुल गांधी शायद अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन से प्रेरित हो सकते हैं। उन्होंने कहा था, "अपने दोस्त को कस कर गले लगाओ, लेकिन अपने दुश्मनों को उससे भी अधिक कस कर। इतना कस कर कि वो हिलडुल भी ना सके।"