कमलेश, बीबीसी संवाददाता
दिल्ली के गांधी स्मृति संग्रहालय में लगी हुईं महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी तस्वीरों को बदलने पर विवाद खड़ा हो गया है। गांधी स्मृति में महात्मा गांधी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को डिस्प्ले बोर्ड पर लगी तस्वीरों के माध्यम से दिखाया था, जिनमें उनकी मृत्यु और अंतिम यात्रा की तस्वीरें भी थीं।
लेकिन, अब उनकी मृत्यु और अंतिम यात्रा की तस्वीरों का डिजिटलीकरण कर दिया गया है। ये तस्वीरें एक डिजिटल स्क्रीन (टीवी स्क्रीन की तरह) पर नज़र आती हैं। एक स्क्रीन पर छह से आठ तस्वीरें दिखती हैं जो एक के बाद एक चलती रहती हैं।
डिजिटलीकरण के इस तरीक़े को लेकर महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने आपत्ति जताई और ट्वीट किया।
क्या है आपत्ति
तुषार गांधी का आरोप है कि डिजिटलीकरण के नाम पर तस्वीरों का महत्व कम कर दिया गया है और अब वो इतनी जीवंत और आकर्षक नहीं लगतीं, जितनी पहले लगती थीं। उनका कहना है कि यह एक तरह से ये उस वक़्त की यादों को धुंधला करने की कोशिश है।
तुषार गांधी कहते हैं, ''गांधी स्मृति महात्मा गांधी का जीवन वृतांत है। लोग यहां उनसे जुड़ी पेटिंग्स और तस्वीरें देखने आते हैं। उस जगह का एक अलग माहौल है। लेकिन, तस्वीरों को स्क्रीन में डालकर वो माहौल ही ख़त्म हो गया है।''
''पहले लोग ठहरकर तस्वीरों को देखते थे और उनसे जुड़े विवरण को पढ़ते थे लेकिन अब अगर वो पढ़ना भी चाहें तो तस्वीरें कुछ देर रुकती हैं और फिर आगे बढ़ जाती हैं। उन पर लिखा विवरण लोग पूरी तरह पढ़ भी नहीं पाते और थोड़ी ही देर में दूसरी तस्वीर आ जाती है। कभी स्क्रीन काली भी हो जाती है। लोगों को उससे कितना समझ आएगा? ये स्क्रीन पर चलते विज्ञापन की तरह दिखता है और लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाता। वह भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना को तस्वीरों के ज़रिए देखने से वंचित रह जाते हैं।''
वह कहते हैं, ''बापू की हत्या के वाक़ये से इस सरकार को परेशानी होती है क्योंकि उसका इतिहास जितना उजागर होगा, उतना लोगों को इस सरकार के जो प्रेरणा स्रोत हैं, उनकी भूमिका का पता चलता जाएगा। इसलिए उनकी कोशिश रही है कि बापू के इतिहास को धुंधला किया जाए।''
वहीं, गांधी स्मृति के निदेशक दीपांकर श्री ज्ञान इन आरोपों को ग़लत बताते हैं। वह कहते हैं कि मौजूदा समय को देखते हुए यह डिजिटलीकरण की सामान्य प्रक्रिया है।
दीपांकर श्री ज्ञान कहते हैं, ''गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति एक स्वायत्त संस्थान है। इसे नियंत्रित करने वाली एक उच्च संस्था है जिसके आदेशों का हम पालन करते हैं। हमें उच्च संस्था से ही संग्रहालय के डिजिटलीकरण का आदेश मिला था और उसके तहत हम तस्वीरों को स्क्रीन में सहेज रहे हैं। कई तस्वीरों को बदला जा चुका है और कुछ आगे बदली जानी हैं। यह प्रक्रिया दिसंबर 2019 से शुरू हुई है। डिजिटलीकरण के अलावा इसका कोई मक़सद नहीं है।''
दीपांकर श्री ज्ञान ये भी कहते हैं कि जहां तक बात लोगों के देखने की है तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है बल्कि नए प्रयोग को सराहा गया है।
उन्होंने बताया, ''इस स्क्रीन पर छह से आठ तस्वीरें दिखती हैं और एक तस्वीर एक मिनट तक रुकती है। लोग इस दौरान उसके बारे में पढ़ सकते हैं। साथ ही मैं कहता हूं कि जिसे भी कोई संदेह है, वो यहां आकर देखे कि तस्वीरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। जिन तस्वीरों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, वे सभी उसी तरह गैलरी में लगी डिजिटल स्क्रीन पर मौजूद हैं।''
इस पर तुषार गांधी का कहना है कि उन्हें डिजिटलीकरण से कोई समस्या नहीं है लेकिन उसमें संयम बरतने की ज़रूरत है। उनका कहना है कि गांधी जी के कमरे और उनके जीवन से जुड़ी तस्वीरों को वैसा ही रहने दिया जाए और स्क्रीन ही लगानी है तो कहीं और लगाकर उन तस्वीरों को सहेजा जा सकता है।
गांधी स्मृति के निदेशक दीपांकर श्री ज्ञान कहते हैं कि गांधी जी के कमरे में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और न ही की जाएगी।
कौन-सी तस्वीरें डिजिटल हुईं
गांधी स्मृति संग्रहालय को बिड़ला हाउस के नाम से जाना जाता था। नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी पर गोलियां चलाई थीं। महात्मा गांधी ने बिड़ला हाउस के परिसर में अंतिम सांसे ली थीं।
यहां पर महात्मा गांधी ने अपना अंतिम समय गुज़ारा था। यहां वो कमरा है जहां मृत्यु से पहले महात्मा गांधी रहते थे। एक तरह से यह संग्रहालय महात्मा गांधी की जीवन यात्रा का साक्षी है।
फ्रांसीसी फ़ोटोग्राफ़र हेनरी कार्तियर-ब्रेसन ने महात्मा गांधी की हत्या और अंतिम संस्कार की तस्वीरें ली थीं जिसे उन्होंने गांधी स्मृति को तोहफ़े में दिया था। इन तस्वीरों को संग्रहालय की लॉबी में लगाया गया था।
तुषार गांधी बताते हैं कि इस संग्रहालय में कई ऐसी तस्वीरें हैं जो एक जीवंत अनुभव देती हैं और उनकी मृत्यु की साक्षी रही हैं।
वह कहते हैं, ''जब मैंने देखा कि ये तस्वीरें वहां नहीं है तो मुझे बड़ा अजीब लगा। वो एक स्क्रीन में बदल गई थीं। मैंने पूछा कि ये क्यों बदला गया तो स्टाफ़ ने बताया कि ऊपर से आदेश आया था। मुझे वहां मौजूद लोगों ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले साल नवंबर में दौरे के बाद ये आदेश आया था।''
लेकिन, निदेशक दीपांकर ज्ञान इस बात से पूरी तरह इनकार करते हैं और बताते हैं कि उनके पास आदेश संग्रहालय को नियंत्रित करने वाली संस्था से आए थे।
तुषार गांधी ने बताया कि डिजिटल की गई तस्वीरों में उस बंदूक की तस्वीर भी थी जिससे गांधी जी को गोली मारी गई थी। इसके अलावा गुलाब की पंखुड़ियों के बीच रखे उनके मृत शरीर की तस्वीर, उनकी अंतिम यात्रा में जुटे लोगों के सैलाब और इस दौरान इकट्ठे बड़े-बड़े नेताओं की तस्वीर भी शामिल थीं।
'इरादों पर संदेह'
गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत भी गांधी स्मृति में इस बदलाव को देखने गए थे। कुमार प्रशांत ने बीबीसी को बताया कि ये बदलाव सही नहीं है।
उन्होंने कहा, ''डिजिटलीकरण किसी और तरीक़े से भी हो सकता है। आप तस्वीरों की मूलात्मा से छेड़छाड़ नहीं कर सकते। फिर तक़नीक इतनी आगे बढ़ गई है कि आप और बेहतर तरीक़े से उन तस्वीरों को दिखा सकते थे। अभी जो किया गया है उससे लगता है कि तस्वीरों के महत्व को बढ़ाने की बजाए कम कर दिया गया है।''
कुमार प्रशांत कहते हैं कि 'बीजेपी को हमेशा महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ी जानकारियों से समस्या रही है क्योंकि उन्हें मारने वाला उनसे ही जुड़ा था।'
वह बताते हैं, ''डिजिटाइज़ करना चीज़ों को सुरक्षित करना है लेकिन यहां मामला अलग है। ऐतिहासिक स्मारक और ख़ासतौर पर एक जीवित स्मारक में हज़ारों लोग रोज़ आते हैं। उन तस्वीरों को देखकर उन्हें महसूस करते हैं और भावुक होते हैं। अगर उस जगह पर बस एक इलेक्ट्रॉनिक अहसास रह जाए तो वो एक तरह से इतिहास को मिटा देने की कोशिश है।''
कुमार प्रशांत बताते हैं, ''गांधी जी के कामों का एक संग्रह है, '100 वाल्यम्स: द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गांधी।' इसके 100 संस्करण हैं। गांधी जी ने जो कहा और लिखा, वो सबकुछ एक जगह इसमें छापा गया है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन सभी संस्करणों का डिजिटलीकरण किया था ताकि इसे ख़राब होने से बचाया जा सके। लेकिन, जब इसका डिजिटल संस्करण बना तो उसमें बहुत सारे ऐसे अंश हटा दिए गए जो गांधी जी ने आरएसएस के बारे में कहे थे। करीब-करीब 700 पन्ने निकाल दिए गए थे।''
''इस पर आपत्ति जताने के बाद उन अंशों को डिजिटल संस्करण में डाला गया। इन लोगों का रिकॉर्ड इतना ख़राब है कि ये भरोसा करना संभव नहीं कि ये सिर्फ़ तक़नीक का मसला है। इन्हें लगता है कि गांधी जी कि हत्या की धुंधली यादों के साथ लोग उनकी हत्या को भी भुला देंगे। हत्या करने वाला इन्हीं में से एक था। इसलिए इनकी ख़राब छवि लोगों के दिमाग में ना आए तो सारी तस्वीरें ही लोगों के सामने से हटा दी गई हैं।''
सेंट्रल गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही कहते हैं कि संग्रहालय में सन् 1947 तक के दौर के चित्र ज्यों के त्यों रखे गए लेकिन सन् 1948 के एक महीने का जो दौर है, उसके चित्रों को हटाकर गांधी जी के ग्रामसभा वाले विचार लगा दिए गए हैं। उनकी आपत्ति इस पर है कि उनकी जीवन यात्रा का क्रम तोड़ा नहीं जाना चाहिए।
लेकिन, गांधी स्मृति के निदेशक दीपांकर श्री ज्ञान का कहना है कि इन सब आरोपों की सच्चाई जानने के लिए लोग संग्रहालय में आएं। वो कहते हैं, "मैं पुरानी और नई चीज़ें दिखाने के लिए तैयार हूं और वो ख़ुद बताएं कि क्या बदलाव आया है।"