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Last Updated : मंगलवार, 4 सितम्बर 2018 (12:34 IST)

शुगर डैडी बनाने का चलन क्या है?

kenya | शुगर डैडी बनाने का चलन क्या है?
दुनिया भर के कई देशों में अमीर और संपन्न लोगों को शुगर डैडी बनाने का चलन है। शुगर डैडी का मतलब क्या है, इसे समझना उतना मुश्किल भी नहीं है। दरअसल, युवा लड़कियां अपने ऐशोआराम और सुख सुविधाओं के लिए पैसों की व्यवस्था करने वाले किसी डैडी नुमा शख़्स की तलाश कर लेती हैं, जिनके साथ वो समय भी बिताती हैं तो उस शख़्स को शुगर डैडी कहा जाता है।
 
 
शुगर डैडी बनाने का ये चलन इन दिनों कीनिया को अपने चपेट में लिए हुए है। इसे सेक्स के कारोबार का नया रूप भी कहा जा रहा है, लेकिन बुनियादी फर्क क्या है, ये जानने के लिए पहले इवा से मिल लीजिए।
 
 
नैरोबी एविएशन कॉलेज में पढ़ने वाली 19 साल की इवा अपने छोटे से कमरे में बेचैन दिखती हैं। उनके पास महज 100 कीनियाई शीलिंग है और उन्हें अपने आने वाले दिनों के ख़र्च की चिंता हो रही है।
 
 
इवा तैयार होकर बाहर निकलती हैं, बस लेकर सिटी सेंटर पहुंचती हैं और वहां अपने साथ सेक्स करने वाले शख़्स की तलाश करती हैं, दस मिनट के अंदर ही उन्हें ऐसा पुरुष मिल जाता है जो सेक्स करने के बदले में 1000 केनियाई शेलिंग इवा को देने को तैयार है।
 
 
क्या होता है फ़ायदा
इवा के ठीक उलट है शिरो की ज़िंदगी। शिरो छह साल पहले यूनिवर्सिटी में पढ़ती थीं, यही कोई 18-19 साल की उम्र रही होगी। तब शिरो एक शादीशुदा शख़्स से मिली जो उनसे 40 साल बड़ा था। पहली मुलाकात में उसने शिरो को कुछ तोहफे दिए। फिर सैलून ले गया। दो साल के संबंध के बाद उसने शिरो को एक अच्छा अपार्टमेंट दिला दिया।
 
 
चार साल के अंदर शिरो के लिए उसने नियारी काउंटी में एक भूखंड ले लिया है। इन सबके बदले में वह जब चाहता है तब शिरो के साथ सेक्स करता है। अब आप समझ ही चुके होंगे कि शिरो ने अपने लिए एक शुगर डैडी तलाश लिया है। केनियाई समाज में शिरो जैसी लड़कियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो सोशल प्लेटफ़ॉर्म से लेकर बार, रेस्टोरेंट सब जगह नज़र आने लगी हैं।
 
 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ नैरोबी से पढ़ने वाली सिलास नयानचावनी बताती हैं, "शुक्रवार की रात यूनिवर्सिटी हॉस्टल के बाहर देखिए, किसकी कार नहीं आती- मंत्रियों की, नेताओं की सब के ड्राइवर आकर युवा लड़कियों को ले जाते हैं।"
 
 
हालांकि अब तक इस तरह का कोई आंकड़ा नहीं आया है, जिससे ये पता चले कि कितनी लड़कियां शुगर रिलेशन में हैं। लेकिन बीबीसी अफ़्रीका की ओर से बोसारा सेंटर फॉर बिहेवयरियल इकॉनामिक्स ने एक अध्ययन किया है जिसमें 18 से 24 साल की 252 छात्राएं शामिल हुईं, इनमें 20 फ़ीसदी छात्राओं ने अपना शुगर डैडी बनाया हुआ था। वहीं युवा लड़कियां ये मानती हैं कि उनके साथियों में क़रीब 24 फ़ीसदी साथियों के शुगर डैडी हैं।
 
समाज में बदलाव के संकेत
ये सैंपल साइज बहुत छोटा है, लेकिन इससे कीनियाई समाज के इस बदलाव के संकेत ज़रूर मिल रहे हैं। ऐसी ही एक लड़की है 20 साल की जेन। जेन ने अपने लिए दो-दो शुगर डैडी तलाशे हुए हैं। ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही जेन बताती हैं कि उनके टॉम और जेफ़ से अलग अलग संबंध हैं।
 
 
जेन कहती हैं, "वे मदद करते हैं, लेकिन हमेशा सेक्स के बदले ही नहीं। कई बार उन्हें बात करने के लिए, साथ रहने के लिेए भी कोई चाहिए होता है।" जेन के मुताबिक उसने आर्थिक सुरक्षा के लिए ये फ़ैसला लिया ताकि वह अपने से छोटी बहनों की मदद कर सकें। ऐसी ही लड़कियों की कहानी नैरोबी डायरी नामक रियलिटी टीवी शो में दिखाई जा रही हैं।
 
 
जेन की तरह ही ब्रिजेट भी है। नैरोबी के झुग्गी झोपड़ी वाले इलाक़े काइबेरा में रहती हैं। वे घरों में काम करने वाली महिला थी, लेकिन अब सोशल मीडिया पर उनकी धमक है। उन्होंने अपना एक सेक्सी वीडियो शूट किया है, इसके बाद उनकी फॉलोइंग काफ़ी बढ़ गई है।
 
 
गुड लाइफ़ का टेस्ट
इतना ही नहीं, शुगर रिलेशन के बाद उनकी दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है। एक से एक महंगे ब्रैंड के कपड़े और बैग। ब्रिजेट के मुताबिक वे अपने जीवन में गुड लाइफ़ का टेस्ट लेना चाहती हैं। 25 साल की ग्रेस भी इन्हीं लोगों में शामिल हैं। उत्तर नैरोबी में रहने वाली ग्रेस सिंगल मदर हैं। उनका सपना सिंगर बनने का है। वे नाइट क्लब में गाती हैं लिहाजा वह ऐसे पुरुष से संबंध बनाना चाहती हैं जो उनका करियर बनाने में भी मदद कर सके।
 
 
हालांकि इस चलन पर सवाल भी ख़ूब उठ रहे हैं। लोगों का कहना है कि इस संस्कृति से महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं होने वाला है बल्कि ये एक तरह से उस चलन को बढ़ावा देना है जिसके चलते महिलाओं के शरीर का इस्तेमाल पुरुष आनंद के लिए कर रहे हैं।
 
 
वहीं महिलावादी चिंतक ओयंगा पाला का ये भी मानना है कि अफ्रीका में महिलाओं की स्वतंत्रता का मुद्दा लगातार ज़ोर पकड़ रहा है, ऐसे में जो लोग सेक्शुअली एक्टिव हैं, उनको तो इस चलन से लाइसेंस मिल जा रहा है।
 
 
( जिंबाब्वे की पत्रकार और फ़िल्मकार नायडा कडानडारा ने ये कहानी बीबीसी के लिए की है।)
 
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