सरहद पर चीन और भारत में तनाव के बीच भूटान भी चर्चा में है। जिस डोकलाम सीमा पर विवाद है वह भूटान और चीन के बीच है। चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने आरोप लगाया है कि भारत अपने हितों को साधने के लिए भूटान का इस्तेमाल कर रहा है।
ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि भूटान की सीमा चौकी पर भारत ने बेवजह आकर टांग अड़ाई है। चीन के इस सरकारी अख़बार ने लिखा है, ''अतीत में चीन और भूटान सीमा पर कई घटनाएं हुई हैं। सभी का समाधान रॉयल भूटान आर्मी और चीनी आर्मी के बीच होता रहा है। इसमें कभी भारतीय सैनिकों की ज़रूरत नहीं पड़ी है।''
अख़बार ने आगे लिखा है, ''इसमें कोई शक नहीं है कि भूटान में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी है और भूटानी आर्मी को भारत ट्रेनिंग और फंड मुहैया कराता है। भारत ऐसा भूटान की सुरक्षा के लिए नहीं करता है बल्कि ऐसा वह अपनी सुरक्षा के लिए करता है। यह भारत का चीन के ख़िलाफ़ सामरिक योजना के तहत है।''
इस बीच राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी ने ट्वीट कर कहा है, ''चीन अग्रिम रूप से अपनी योजना तैयार कर रहा है। 1948 में माओ ने इसी तरह तिब्बत को अपने कब्ज़े में लिया था। क्या वर्तमान तनाव भूटान को दूसरा तिब्बत बनाने का हिस्सा है?''
अपने अगले ट्वीट में चारी ने लिखा है, ''चीन पीओके के ज़रिए सीपीईसी को अंजाम दे रहा है। ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री को येरुशलम और वेस्ट बैंक क्यों नहीं जाना चाहिए? इतिहास बदल रहा है इसलिए इसका असर भूगोल पर भी पड़ेगा।''
हालांकि डोकलाम पर चीन और भारत के बीच तनाव को लेकर भूटानी मीडिया उस तरह से आक्रामक नहीं है। दूसरी तरफ़ चीनी और भारतीय मीडिया में इस तनाव पर आक्रामकता आसानी से महसूस किया जा सकता है। भूटान के सरकारी अख़बार क्यून्सेल ने डोकलाम के पास चीन द्वारा सड़क बनाए जाने पर चिंता जाहिर की है।
इस भूटानी अख़बार ने लिखा है, ''भूटान और चीन के बीच जिन चार इलाक़ों को लेकर विवाद हैं उनमें डोकलाम एक है।'' 29 जून को भूटान के विेदेश मंत्रालय ने चीन से कहा था कि उसे यथास्थिति का पालन करना चाहिए। भूटान ने कहा था कि चीन डोकलाम के पास कोई निर्माण करता है तो यह दोनों देशों के बीच सीमा समझौते का उल्लंघन होगा।
एक और भूटानी अख़बार ने फ़ेसबुक पर अपने संपादक की टिप्पणी पोस्ट की है, ''पहले रॉयल भूटान आर्मी ने चीन के सड़क निर्माण को रोकने की कोशिश की लेकिन चीनी टीम ने इसमें सहयोग करने से इनकार कर दिया। इसके तत्काल बाद इस इलाक़े में भारतीय सैनिक आए और सड़क निर्माण को रोका गया। इसके बाद चीनी सेना ने प्रतिक्रिया में भारतीय सैनिकों की छोटी चौकियों को नष्ट कर दिया।''
एक और अख़बार बिज़नेस भूटान ने लिखा है, ''भारतीय और भूटानी आर्मी के साथ तीन हफ़्तों से जारी गतिरोध के बावजूद चीनी आर्मी डोकलाम के पास निर्माण सामग्री पहुंचाने में लगी हुई है।''
दोनों देशों के बीच जारी विवाद को लेकर भारत की पूर्व विदेश सचिव और चीन में भारत की राजदूत रहीं निरुपमा राव ने भी ट्विटर पर चिंता ज़ाहिर की है। उन्होंने लिखा है, ''डोकलाम का विवाद कोई नया नहीं है लेकिन चीन यहां सड़क निर्माण जानबूझकर कर रहा है ताकि भारत और भूटान की तरफ़ से प्रतिक्रिया आए।''
उन्होंने कहा है, ''डोको लाँग चीन, भूटान और भारत (सिक्किम) के लिए त्रिकोणीय-जंक्शन की तरह है। चीन इस क़दम के ज़रिए यहां अपनी परिभाषा थोपना चाहता है। चीन का यह क़दम भूटान और भारत दोनों की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाने वाला है।''
इस तनाव के बीच भारत को भूटानी संवेदनशीलता को किस तरह से हैंडल करना चाहिए? इस पर निरुपमा राव ने ट्वीट किया है, ''भूटान और भारत के बीच संबंध स्थायी, भरोसमंद और बहुत क़रीबी का है। दोनों देशों के बीच ज़ाहिरा तौर पर सैन्य मदद को लेकर कोई विवाद नहीं है। दोनों देशों के बीच अच्छी समझ भी है। भारत भूटानी संप्रभुता को पवित्र और अटूट मानता है। 2007 में भारत और भूटान ने फ्रेंडशिप संधि पर हस्ताक्षर किए थे।''
इंस्टिट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के डायरेक्टर और 2014 से 2016 तक चीन में भारत के राजदूत रहे अशोक कांता ने दोनों देशों के बीच ताजा विवाद को लेकर भारतीय मीडिया में कहा है, ''चीन भूटान में कुछ इलाक़ों पर अपना दावा पेश करता है। चीन यहां 1988 से ही अतिक्रमण करता रहा है। लेकिन डोकलाम में चीनी सेना या चरवाहों की स्थायी मौजूदगी नहीं रही है। यह पहली बार है जब चीन डोकलाम से ज़ोमप्लरी में भूटानी आर्मी कैंप तक सड़क बना रहा है।''
अशोक कांता के मुताबिक, ''चीन का मूल्यांकन हो सकता है कि भूटान इस पर कुछ कर नहीं पाएगा। यह साफ़ है कि भूटानी इतने सक्षम नहीं हैं कि चीनी सैनिकों को निर्माण से रोक दें। भूटान ने इस निर्माण को लेकर राजनयिक स्तर पर विरोध भी जताया। चीनियों को यह भी लगा होगा कि भारत इस मामले में बीच में नहीं आएगा।''