सोमवार, 23 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Ancient Symbol
Written By
Last Modified: मंगलवार, 26 दिसंबर 2017 (11:54 IST)

प्राचीन सभ्यता के इस चिह्न का क्या है रहस्य?

प्राचीन सभ्यता के इस चिह्न का क्या है रहस्य? - Ancient Symbol
बदलते दौर में कुछ बातों, कुछ निशानों और कुछ संकेतों के मायने बदलते जाते हैं। इसकी बहुत बड़ी मिसाल है, प्राचीन काल का एक प्रतीक चिह्न। इसे ग्रीक ज़बान में ऑरोबोरोस कहते हैं। ये ऐसा प्रतीक चिह्न है जो भारत से लेकर मिस्र तक की प्राचीन सभ्यताओं में इस्तेमाल होते हुए देखा गया है।
 
हर सभ्यता ने अलग-अलग बात कहने के लिए इसे इस्तेमाल किया। ऑरोबोरोस ऐसा चिह्न है, जिसमें एक सांप को गोलाकार रूप में दिखाया जाता है। जो अपने मुंह से ही अपनी पूंछ को चबाता हुआ दिखता है।
 
ऑरोबोरोस एक ग्रीक शब्द
हाल ही में जर्मनी के वॉल्फ़्सबर्ग म्यूज़ियम में प्राचीन काल की कलाओं की कई विधाओं की नुमाइश लगाई गई। इस प्रदर्शनी की एक थीम का नाम था 'नेवर एंडिंग स्टोरीज़'। इस प्रदर्शनी में ऑरोबोरोस के भी तमाम सभ्यताओं में इस्तेमाल के सबूत रखे गए हैं।
 
ऑरोबोरोस एक ग्रीक शब्द है जिसका मतलब है एक लंबी दुम वाला भक्षक। आमतौर पर इसे ऐसे सांप का नाम दिया जाता है जो अपनी दुम को ख़ुद ही खाता है। हालांकि, ये चिह्न बहुत से देशों की कला में देखा गया है और इसकी अहमियत भी बहुत है लेकिन इसका इतिहास आख़िर है क्या? चलिए जानते हैं।
 
इतिहासकार बताते हैं कि ऑरोबोरोस के सबसे पुरानी मिसाल मिस्र के राजा तूतेनख़ामेन के पिरामिड में मिलती है। मिस्त्र के जानकार जेन ऑसमन का कहना है कि मिस्र की प्राचीन सभ्यता में ऑरोबोरोस चाल-चक्र के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। प्राचीन मिस्रियों का मानना था कि समय एक सूत्र में नहीं चलता। ये बदलता रहता है। चीज़ें ख़त्म होती रहती हैं और घूम-फिर कर वहीं आ जाती हैं, जहां से शुरू हुई थीं।
 
सोने की पैदावार का प्रतीक
अपने इस मत की हिमायत में वो सूरज के सफ़र और नील नदी में आने वाले सैलाब का तर्क देते थे। उनके मुताबिक़ सूरज निकलता है। धीरे-धीरे ढलता है। डूब जाता है। दूसरे दिन फिर से उसी तरह का चक्र घूमने लगता है। इसी तरह दरिया-ए-नील में सैलाब आते हैं। बर्बादी होती है, लेकिन कुछ समय बाद फिर से वो इलाक़ा आबाद हो जाता है। ये चक्र चलता भी चलता रहता है। ऑरोबोरोस इसी चाल चक्र का प्रतीक है।
 
लेकिन यूनानी सभ्यता में इस चिह्न का मतलब ज़रा अलग है। यहां पेपायरस सोने की पैदावार का प्रतीक माना जाता है। पेपायरस मिस्र में पानी में पैदा होने वाला एक ख़ास तरह का पौधा है जिससे काग़ज़ तैयार किया जाता है। जबकि ऑरोबोरोस यहां रहस्यमय चिह्न था। यहां इस निशान को शुभ माना जाता था। यहां के लोगों के मुताबिक़ ये निशान हमेशा नवाज़िश करते रहने का प्रतीक था।
 
हालांकि, बहुत हद तक प्राचीन यूनान के लोग भी इसे समय के चक्र से जोड़कर ही देखते थे। लेकिन मिस्रियों की तरह वो इसे सूरज और नील नदी के सफ़र की तरह नहीं देखते थे।
 
यूनान में ऑरोबोरोस को पेपायरस की एक अंगूठी पर लिपटा हुआ दिखाया गया है। क्योंकि यूनानियों की मान्यता थी कि सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा है। अलग कुछ भी नहीं है। किसी भी चीज़ का अकेले कोई वजूद नहीं है।
 
रहस्यवादियों के लिए इस निशान का अपना ही मतलब है। इनके मुताबिक़ ऑरोबोरोस का मुंह और पूंछ दुनिया में रहने वाले इंसान और परलोक को दर्शाते हैं। यानि जो दुनिया में या है उसे वापस परलोक जाना है। वहां से फिर लौटकर दुनिया में आना है। लेकिन इस सफ़र में दोनों लोकों के बीच तालमेल बने रहना ज़रूरी है।
 
रहस्वादियों का ये विचार चीन की यिन एंड यांग विचारधारा से मिलता है, जिसके मुताबिक़ विरोधी ताक़तों के साथ समरसता बनाए रखना ज़रूरी है। साथ ही अंधेरे-उजाले के बीच तालमेल से भी इसकी तुलना की जाती है।
 
वहीं, पारसी दर्शन फ़र्वाहार के मुताबिक़ हरेक आत्मा पाक और मुक़द्दस होती है लेकिन साथ ही साथ उसमें इंसानी कमज़ोरियां भी होती हैं। ख़ुद इंसान की अपनी कमज़ोरियों और अच्छाइयों से कश्मकश चलती रहती है। ऑरोबोरोस का निशान इसी खींचतान का प्रतीक है।
 
ऑरोबोरोस को कई अवतारों में पेश किया गया
ऑरोबोरोस का ज़िक्र बहुत-सी प्राचीन रवायतों में भी है। मिसाल के लिए नॉर्स पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जोरमुंगंदर नाम के एक सांप ने सारी दुनिया को घेर रखा है। हिंदू धर्म के मुताबिक़ सांप धरती के वजूद का हिस्सा है। जबकि मेसोअमेरिकन देवी क्योत्ज़ालकोट को अक्सर ऑरोबोरोस के अवतार में दिखाया गया है।
 
जर्मनी में लगी प्रदर्शनी के क्यूरेटर रैल्फ़ बील के मुताबिक़ ऑरोबोरोस इतना दिलचस्प प्रतीक है कि सदियों से इससे जुड़ी तरह-तरह की कहानियां चलन में हैं।
 
इस प्रदर्शनी में ऑरोबोरोस के तमाम ऐतिहासिक रूपों के अलावा नई तकनीक की मदद से क़रीब पांच प्रकार के गोलों में भी पेश किया। किसी गोले में इसे पट्टियों की मदद से दिखाया गया है। तो, कहीं एक ही गोले में बहुत से गोलों की मदद से दिखाया गया है, तो कहीं कभी ना ख़त्म होने वाली सीढ़ियों की मदद से दर्शाया गया है।
 
इस नुमाइश में हर दौर में ऑरोबोरोस की मान्यता को आसान तरीक़े से समझाने की कोशिश की गई। सभी फ़नकारों ने ऑरोबोरोस को एक नए अवतार में पेश किया है। हालांकि लगभग सभी दौर में इसे चाल के चक्र के रूप ज़्यादा देखा गया है। लेकिन यूरोप में पंद्रहवीं सदी में पुनर्जागरण काल में इस यक़ीन को तोड़ा गया। इस काल में ऑरोबोरोस को एक चाल चक्र ना मानकर एक युग का ख़ात्मा और एक नए युग की शुरुआत के तौर पर देखा है। इनके मुताबिक़ हर लम्हा एक नए दौर की शुरूआत होता है। और इस काल में ऑरोबोरोस एक नए युग की शुरूआत का प्रतीक बन गया।
 
यानी एक ही गोले को अलग दौर और अलग सभ्यताओं में अलग-अलग बातों के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया। ऑरोबोरोस इसकी शानदार मिसाल है।
ये भी पढ़ें
नज़रिया: अफ़ग़ानिस्तान में भारत को अलग थलग कर रहा है चीन?