हमारे सनातन धर्म में मुख्यत: साधना के 2 प्रकार माने गए हैं- 1. मंत्रात्मक साधना, 2. तंत्रात्मक साधना। मंत्रात्मक साधना में विशेष मंत्रों के माध्यम से साधना की जाती है, वहीं तंत्रात्मक साधना में यंत्रों, वनस्पतियों व कुछ विशेष वस्तुओं के माध्यम से साधना की जाती है। तंत्रात्मक साधना पद्धति में 'वनस्पति-तंत्र' की महती भूमिका होती है।
'वनस्पति-तंत्र' में अनेक ऐसी जड़ियों, बीजों व पौधों का वर्णन मिलता है जिनके विधिवत प्रयोग से साधक अपने जीवन में उन्नति व सफलता प्राप्त कर सकता है। 'वनस्पति-तंत्र' के कई प्रयोग साधक के विभिन्न संकटों का निवारण करने की अद्भुत सामर्थ्य रखते हैं।
हम 'वेबदुनिया' के पाठकों को आगामी कुछ दिनों तक 'वनस्पति-तंत्र' के कुछ विशेष प्रयोगों व साधनाओं से अवगत कराएंगे। 'वनस्पति-तंत्र' की इस विशेष श्रृंखला में आज हम 'बांदा' के बारे में कुछ प्रयोग बताने जा रहे हैं जिनसे साधक अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
क्या होता है 'बांदा'?-
सामान्यत: जब किसी पेड़ पर किसी दूसरी प्रजाति का कोई पौधा उग जाता है, उसे वनस्पति-तंत्र की भाषा में 'बांदा' कहा जाता है। तंत्राचार्यों के अनुसार 'बांदा' अपना एक विशिष्ट प्रभाव रखता है। लेकिन सभी बांदे वनस्पति-तंत्र में महत्वपूर्ण नहीं होते, केवल कुछ विशेष बांदे ही वनस्पति-तंत्र में महत्वपूर्ण माने गए हैं, जैसे- पीपल, बरगद, बेर, बहुवार, हरसिंगार, गूलर, आम, अनार, बढ़, बच, नीम, अशोक, गुंजा, आंवला आदि। 'बांदा' प्राप्त करने के लिए विशेष मुहूर्त व नक्षत्रों की आवश्यकता होती है। विशेष नक्षत्रों व मुहूर्त में पूर्ण वैदिक रीति से प्राप्त किया गया 'बांदा' ही प्रभावकारी होता है। अत: 'बांदा' प्राप्त करते समय शास्त्रोक्त नियम व मुहूर्त का विशेष ध्यान रखें।
'बांदा' प्राप्त करने के शास्त्रोक्त नियम-
1. 'बांदा' सदैव निमंत्रण देकर ही प्राप्त करें। जिस दिन 'बांदा' प्राप्त करने का मुहूर्त हो, उससे 1 दिन पूर्व उसे पंचोपचार पूजा करने के उपरांत धूप, दीप, नैवेद्य, जल सिंचन, दक्षिणा, वस्त्र सहित पीले चावल अर्पित कर निमंत्रित करें।
2. 'बांदा' सदैव हाथों से निकालें, काटें या बीच में तोड़ें नहीं। इस प्रक्रिया में लोहे की वस्तु का प्रयोग वर्जित है।
3. 'बांदा' सदैव एकांत में निकालें, जहां किसी बाहरी व्यक्ति की नज़र इस पर ना पड़े।
4. 'बांदा' प्राप्त कर बिना कहीं रुके घर आकर इसे पूजा स्थान में रखें।
विभिन्न लाभकारी 'बांदा' साधना-
1. पीपल- पीपल का 'बांदा' अश्विनी नक्षत्र में प्राप्त करने से जीवन में सफलता व संतान-सुख प्राप्त होता है।
2. गुंजा- गुंजा का 'बांदा' रवि-पुष्य योग में प्राप्त करने से सुरक्षा व वाक्-स्तंभन होता है।
3. आंवला- आंवले का 'बांदा' आश्लेषा नक्षत्र में प्राप्त करने से राजकोप व भय से मुक्ति मिलती है।
4. नीम- नीम का 'बांदा' शत्रुदमन में अत्यंत लाभकारी होता है।
(विशेष- आजकल के प्रतिस्पर्धी व स्वार्थी वातावरण को ध्यान में रखते हुए हम इसे प्राप्त करने के मुहूर्त व नक्षत्रादि का उल्लेख नहीं कर रहे हैं।)
5. अनार- अनार का 'बांदा' रविपुष्य या गुरुपुष्य नक्षत्र में प्राप्त करने से आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है।
6. आम- आम का 'बांदा' रविपुष्य नक्षत्र में प्राप्त करने से सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। यह विशेषकर चुनाव, मुकदमा, खेलकूद आदि में लाभदायक होता है।
7. गूलर- गूलर का 'बांदा' रोहिणी नक्षत्र में प्राप्त करने से धनवृद्धि होती है व आर्थिक संपन्नता स्थायी रहती है।
8. बरगद- बरगद का 'बांदा' आर्द्रा नक्षत्र में प्राप्त करने से युद्ध आदि में विजय प्राप्त होती है और यह साहस व बल में वृद्धिकारक होता है।
9. हरसिंगार- हरसिंगार का 'बांदा' हस्त नक्षत्र में प्राप्त करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जो साधक इसे अपनी तिजोरी, भंडार, घर अथवा गले में धारण करता है, वह कभी आर्थिक संकटों से ग्रस्त नहीं होता एवं उसे अचल धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
10. बेर- बेर का 'बांदा' स्वाति नक्षत्र में प्राप्त करने से यश में वृद्धि होती है।
(निवेदन- 'बांदा' साधक के प्रारब्ध, शुद्ध आचार-विचार एवं शुचितापूर्ण आचरण से अपना न्यूनाधिक प्रभाव प्रदर्शित करता है। अत: साधकगण इस तथ्य को भलीभांति समझकर ही 'बांदा' प्राप्त करें।)
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र