पौराणिक शास्त्रों में प्रदोष व्रत की बड़ी महिमा है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिवशंकर कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते है। इसीलिए शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्तों को त्रयोदशी व्रत यानी प्रदोष व्रत का नियमपूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए। इस दिन शिव का पूजन करने से गरीबी, दु:ख-दारिद्रय, और कर्ज से मुक्ति मिलती है।
हिन्दू कैलेंडर की तिथियों के अनुसार तेरहवें दिन यानी त्रयोदशी के दिन प्रदोष होता है। यह तिथि हर महीने में दो बार आती है- पहली शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष में। त्रयोदशी अथवा प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिवशंकर की पूजा की जाती है। इस दिन शिवजी के साथ-साथ मां पार्वती और नंदी की पूजा भी की जाती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार त्रयोदशी अर्थात् प्रदोष का व्रत करने से मनुष्य सदा सुखी रहता है, शिव का ध्यान करने से उसके सभी पाप धुल जाते है तथा उसे शिव धाम की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत करने के लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है। आइए जानें :-
प्रदोष व्रत-पूजन सामग्री की सूची:-
1. सफेद पुष्प
2. सफेद फूलों की माला
3. आंकड़े का फूल
4. सफेद मिठाइयां
5. सफेद चंदन
6. जल से भरा हुआ कलश
7. बेलपत्र
8. धतूरा
9. भांग
10. आरती के लिए थाली
11. कपूर
12. धूप
13. दीप
14. शुद्ध घी (गाय का हो तो अतिउत्तम)
15. सफेद वस्त्र
16. हवन सामग्री एवं आम की लकड़ी।
इस व्रत को करने से मनुष्य के संपूर्ण पापों का नाश होता है। इतना ही नहीं सुहागिनों द्वारा इस व्रत के करने से उनका अखंड सुहाग बना रहता है। अगर कोई मनुष्य कारागार में है तो वह इस व्रत के प्रभाव से छूट जाता है।
कैसे करें प्रदोष व्रत पूजन-
* सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करें।
* नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं, तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8 दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें।
* इसके बाद धर्म सत्वं वृषरूपेण से नंदीश्वर (बछड़े) को जल एवं दुर्वा खिलाकर स्पर्श करें।
* शिव-पार्वती एवं नंदकेश्वर की प्रार्थना करें।
* प्रदोष व्रतार्थी को नमकरहित भोजन करना चाहिए।
यद्यपि प्रदोष व्रत प्रत्येक त्रयोदशी को किया जाता है, परंतु विशेष कामना के लिए वार संयोगयुक्त प्रदोष का भी बड़ा महत्व है।
किस वार की प्रदोष से क्या फल-
प्रत्येक माह त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है। प्रदोष व्रत कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों को किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के 2 घंटे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है। सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरंभ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है।
आरोग्य के लिए- रविवार।
संतान प्राप्ति के लिए- सोमवार।
ऋण से छुटकारे के लिए- मंगलवार।
इष्ट प्राप्ति के लिए- बुधवार।
सफलता के लिए - गुरुवार
सौभाग्य के लिए- शुक्रवार।
हर तरह की मनोकामना के लिए- शनि प्रदोष शुभ है।