Shaka Samvat 1946: भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत रहा है। यह कैलेंडर भारत के प्राचीन कैलेंडर का अपडेट वर्जन है। भारत में सबसे पहले सृष्टि संवत, ऋषि संवत, ब्रह्म-संवत, वामन-संवत, परशुराम-संवत, श्रीराम-संवत और द्वापर में युधिष्ठिर संवत का प्रचलन। बाद में कलि संवत प्रचलन में आया इसके बाद सम्राट विक्रमादित्य ने 57 ईस्वी पूर्व विक्रम संवत का प्रारंभ किया, लेकिन आजाद के बाद तत्कालीन सरकार ने शक संवत को राष्ट्रीय संवत घोषित कर दिया।
शक संवत किसने प्रारंभ किया?
शक संवत की शुरुवात सम्राट कनिष्क ने सन 78 ईस्वी में की थी। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में घोषित कर दिया। राष्ट्रीय संवत का नववर्ष 22 मार्च से शुरू होता है जबकि लीप ईयर में यह 21 मार्च होता है। इसमें महीनों का नामकरण विक्रमी संवत के अनुरूप ही किया गया है जबकि उनके दिनों का पुनर्निर्धारण अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार किया गया है। इसके प्रथम माह (चैत्र) में 30 दिन हैं, जो अंग्रेजी लीप ईयर में 31 दिन हो जाते हैं।
शक युग की शुरुआत 78 ईस्वी में हुई थी, जब कुषाण वंश के शासक सम्राट कनिष्क ने अपनी राजधानी मथुरा से पेशावर स्थानांतरित की थी। शक संवत के विषय में कहा जाता है कि उज्जयिनी के क्षत्रप चेष्टन ने इसे प्रचलित किया। 21 मार्च 2024 को शक संवत 1946 प्रारंभ हुआ है।
क्यों इसे राष्ट्रीय संवत घोषित किया गया?
1957 में तात्कालिक भारत सरकार ने शक संवत् को भारत के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। इसीलिए सभी राजपत्र, आकाशवाणी और सरकारी कैलेंडरों में ग्रेगेरियन कैलेंडर के साथ इसका भी प्रयोग किया जाता है विक्रम संवत का नहीं।
इसको सरकारी रूप से अपनाने का कारण बताया जाता है कि प्राचीन लेखों, शिलालेखों में इसका वर्णन मिलता है। जबकि विक्रम संवत का भी लेखों और शिलालेखों में वर्णन मिलता है। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन सरकार पर वामपंथ और बौद्ध धर्म का प्रभाव होने के कारण इस संवत को अपनाए जाने की बात भी कही जाती है लेकिन कई लोग इससे इनकार करते हैं।
यह भी आरोप लगाया जाता है कि उस वक्त की सरकार पर अंग्रेजों का प्रभाव ज्यादा था। उन्होंने शक संवत को उठाकर उसमें हेरफेर करके ग्रेगोरी कैलेंडर जैसा सूर्य आधारित बना दिया जिसमें 12 महीने होते हैं और 365 दिन होते हैं। इससे ग्रेगरी कैलेंडर की महानता बरकरार रही। दूसरा यह भी कि उस वक्त की सरकार विक्रम संवत को हिंदू कैलेंडर मानती थी और उन्हें तब देश को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाना था।
शक कौन थे : शक राजा मध्य एशिया के थे जिनके बारे में इतिहासकारों में मतभेद है। शकों को उत्तरी चीन यानी झिंगझियांग प्रांत का माना जाता है। जब वहां से उन्हें खदेड़ा गया तो यह मध्य एशिया में जाकर बस गए। वहां उन्हें स्किथी जाती का माना जाता था। जब उन्हें मध्य एशिया से भी खदेड़ा गया तो उन्होंने भारत पर आक्रमण करके यहां के बहुत बड़े भू भाग पर कब्जा कर लिया था। शुंग वंश के कमजोर होने के बाद शकों ने भारत में अपने पैर जमाना प्रारंभ किए थे। सम्राट विक्रमादित्य का शकों से युद्ध हुआ और विक्रमादित्य ने शकों से भारत को मुक्ति कराया। इसी ऐतिहासिक जीत के चलते ईसा पूर्व 57 में विक्रम संवत की शुरुआत हुई। विक्रमादित्य के बाद शालिवाहनों ने शकों को हराया और इसके बाद चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसी क्रम को जारी रखा। कनिष्क की मृत्यु के बाद शक शासन का अंत हो गया। हालांकि प्राचीन भारतीय, ईरानी, यूनानी और चीनी स्रोत इनका शकों के इतिहास का अलग-अलग विवरण देते हैं।
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- अनिरुद्ध जोशी