पंजाब में सियासत का 'डेरा', राम रहीम बदल सकते हैं सत्ता समीकरण
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 (punjab assembly election 2022) के लिए होने वाले मतदान से 13 दिन पहले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह (Gurmeet Ram Rahim Singh) की पैरोल पर रिहाई को राजनीतिक पंडित आम रिहाई न मानकर इसे पंजाब के चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। इन बातों को बल इसलिए भी मिल रहा है क्योंकि दुष्कर्म और हत्या के मामले में जेल में बंद राम रहीम को अपनी बीमार मां से मिलने के लिए मई 2021 में 48 घंटे की कस्टडी पैरोल मिली थी।
ऐसे में बाबा 21 दिन की पैरोल किसी के भी गले नहीं उतर रही है। बाबा इस समय हरियाणा के रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है और राज्य में इस समय भाजपा की सरकार है। हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इन अटकलों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि राम रहीम को मिली पैरोल का पंजाब चुनाव से कोई संबंध नहीं है। यह महज एक संयोग ही है। हालांकि बाबा पैरोल के दौरान पुलिस की निगरानी में रहेगा।
दरअसल, राम रहीम ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन की सराहना कर परोक्ष से रूप से भाजपा को समर्थन दे चुके हैं। ऐसे में माना जा रहा है डेरा प्रमुख भाजपा और उनके समर्थकों के पक्ष में अंदर खाने से अपील जारी कर सकते हैं। भाजपा पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा (अकाली दल संयुक्त) के साथ गठजोड़ किया है। पंजाब के 23 जिलों में 300 बड़े डेरे हैं, जिनका सीधा दखल सूबे की राजनीति में है। सबसे बड़ा डेरा बठिंडा के सलाबतपुरा में हैं।
पंजाब की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार हरकिशन शर्मा कहते हैं कि पंजाब के मालवा क्षेत्र की 69 सीटों पर डेरा प्रमुख कमोबेश असर डाल सकते हैं। इनमें करीब 4 दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिन पर डेरा का सीधा प्रभाव है। यदि बाबा प्रत्यक्ष या परदे के पीछे से किसी दल के समर्थन में अपील कर देते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्य में खासकर मालवा क्षेत्र के चुनावी समीकरण तो बदल ही सकते हैं। दरअसल, डेरा से सभी धर्मों और समुदाय के लोग जुड़े हुए हैं।
हालांकि ओपिनियन पोल में आम आदमी पंजाब में बढ़त बनाए हुए हैं, जबकि कांग्रेस दूसरे नंबर पर दिखाई दे रही है। ऐसे में डेरा प्रमुख की कोई भी अपील सत्ता समीकरणों में उलटफेर कर सकती है। शर्मा कहते हैं कि डेरा का असर न सिर्फ विधानसभा चुनावों बल्कि पंचायत समेत अन्य चुनावों पर भी होता है। 2007 में भी डेरा की अपील का असर देखा गया था, जब कांग्रेस सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इसके बाद कांग्रेस को सत्ता में लौटने में पूरे 10 साल लगे थे। माना जा रहा है कि इस समय डेरा कांग्रेस से नाराज चल रहा है।
पत्रकार शर्मा कहते हैं कि पिछले दिनों डेरा की सियासी विंग ने सत्संग के दौरान न सिर्फ शक्ति प्रदर्शन किया था बल्कि सीधे शब्दों में संकेत भी दिया था कि राजनीतिक दल हमारी ताकत को समझ लें। हम किसी का भी तख्ता पलट सकते हैं। इस बीच, यह भी कहा जा रहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ ही अकाली दल के नेता भी डेरा पर जाकर अपनी हाजिरी लगा चुके हैं।
हालांकि हकीकत 10 मार्च को चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद ही पता चलेगा, लेकिन डेरा प्रमुख की पैरोल पर रिहाई ने पंजाब की राजनीति में हलचल मचा दी है। यदि डेरा अनुयायियों ने एकजुट होकर किसी 'खास' के समर्थन में वोट किया तो कोई आश्चर्य नहीं कि राज्य में परिणाम चौंकाने वाले हों।