बायोमेडिकल इंजीनियरिंग
मेडिकल और इंजीनियरिंग का अकल्पनीय मेल
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अशोक जोशी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कभी कल्पना तक नहीं की थी कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब इंजीनियरिंग और मेडिसिन के संगम से एक विज्ञान का प्रादुर्भाव होगा? मेडिसिन तथा इंजीनियरिंग दो सबसे पुराने और चुनौतीपूर्ण पेशे हैं, लेकिन गत कुछ वर्षों से दोनों क्षेत्रों में तेजी के साथ इतने विकास हुए हैं कि नई विशेषज्ञताओं से भरपूर एक नया क्षेत्र उभरकर सामने आ गया। इस नए क्षेत्र से विकसित प्रत्येक क्षेत्र एक परिष्कृत क्षेत्र बन गया और इसमें रिसर्च से लेकर करियर निर्माण की अपार संभावनाएँ हिलोरे लेने लगीं। इस क्षेत्र का सबसे दिलचस्प विकास है बायोमेडिकल इंजीनियरिंग का विकास। बायोमेडिकल इंजीनियरिंग मेडिसिन और इंजीनियरिंग का एक यथोचित मेल है। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें डॉक्टरों और लाइफ साइंटिस्टों की तरह ही बायोमेडिकल इंजीनियर भी मानवों और जानवरों के साथ काम करते हैं। यह बात है कि उनके काम करने का तरीका जुदा होता है। आमतौर पर बायोमेडिकल इंजीनियर अन्य लाइफ साइंटिस्टों, केमिस्टों तथा मेडिकल साइंटिस्ट के साथ काम करते हुए निवारणात्मक तथा उपचारात्मक औषधियों के लिए सहायता प्रदान करते हैं, लेकिन इनका काम अन्य मेडिकल प्रोफेशनल्स से अलग है, क्योंकि ये खुद उपचार नहीं करते, निदान और उपचार के साधन तैयार करते हैं। ये मेडिकल रिसर्च को आसान बनाने के लिए उपकरणों, प्रणालियों तथा प्रक्रियाओं को विकसित करते हैं या स्वास्थ्य तथा चिकित्सकीय समस्याओं के समाधान में मदद करते हैं। यही कारण है कि बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में नए-नए अनुसंधानों के लिए भरपूर और असीमित संभावनाएँ हैं। इस क्षेत्र में हुए विकास के कारण ही अनुसंधान की नई-नई अवधारणाएँ विकसित हुई हैं तथा उपचार के तरीकों को एक नई दिशा मिली है। आज चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हम और आप जीन और टिश्यू मेनिपुलेशन, कृत्रिम अंगों के निर्माण, जीवनरक्षक उपकरणों यथा पेसमेकर और डायलीसिस, परिष्कृत सर्जिकल उपकरणों तथा मेडिकल इमेजिंग तकनीकों जैसे कि एमआरआई, सीटी स्केनिंग और सोनोग्राफी जैसे नए-नए शब्द सुनते हैं, ये सब बायोमेडिकल इंजीनियरिंग का ही परिणाम या यूँ कहिए कि कमाल है। किसी अनभिज्ञ इंसान के लिए यद्यपि बायोमेडिकल इंजीनियर्स प्रैक्टिशनर्स का संभ्रांत वर्ग लगे, इन विशेषज्ञों की हमेशा से बढ़ती माँग ने इसे एक लोकप्रिय विकल्प बना दिया है, जिसे मेडिकल की बजाय इंजीनियरिंग का क्षेत्र माना जाता है और इसमें करियर बनाने वालों को अध्ययन के बाद इंजीनियरिंग की डिग्री ही प्रदान की जाती है।
पहले इलेक्ट्रिकल, केमिकल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने वाले बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में स्पेशलाइजेशन किया करते थे, लेकिन अब बायोमेडिकल इंजीनियरिंग की अपने आपमें इंजीनियरिंग की एक नई शाखा बनकर सामने आई है। आमतौर पर अधिकांश छात्र बीई करने के बाद बायोमेडिकल इंजीनिययरिंग में मास्टर्स के विकल्प का चयन करते हैं, लेकिन इसे एमबीबीएस के बाद भी किया जा सकता है। भारत में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के मास्टर्स कोर्स के साथ-साथ आईआईटी मुंबई में डॉक्टोरल लेवल के कोर्स भी उपलब्ध हैं, जबकि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी तथा बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑव टेक्नॉलॉजी एंड साइंस, विद्या विहार, पिलानी राजस्थान में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में एम.टेक कोर्स उपलब्ध हैं।अपने विविधापूर्ण अनुप्रयोग के लिए बायोमेडिकल का क्षेत्र इन दिनों लोकप्रियता की ओर अग्रसर है। विदेशों में इसकी भारी माँग होने के साथ-साथ बायोमेडिकल को मिलने वाला पारिश्रमिक भी इंजीनियरिंग शाखाओं से ज्यादा है, लेकिन हमारे यहाँ अभी इसकी नवजात अवस्था है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले 3-4 वर्षों में इस क्षेत्र में भारी बूम आएगा। बायोमेडिकल इंजीनियरिंग से जुड़े विशेष क्षेत्रों में बायोइंस्ट्रूमेंटेशन, बायोमटेरियल्स, बायोमैकेनिक्स, सेल्यूलर, टिश्यू एंड जिनेटिक इंजीनियरिंग, क्लिनिकल इंजीनियरिंग, रिहेबिलिटेशन इंजीनियरिंग, ऑर्थोपीडिक सर्जरी, मेडिकल इमेजिंग व सिस्टम फिजियोलॉजी शामिल है। भारत में बायोमेडिकल हेल्थकेयर रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए प्रोफेसर गुहा, डॉ. हरिदासन, विंग कमांडर मोहन तथा डॉ. एचवीजी राव ने साठ-सत्तर के दशक में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग सोसाइटी ऑव इंडिया आरंभ की थी। इसने पूरे देश में 50 से अधिक रिसर्च सेंटर स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन केंद्रों पर परिष्कृत डायग्नोस्टिक, बायोएनालीटिकल तथा थैरेपेटिक उपकरणों का उपयोग किया जाता है। सोसाइटी द्वारा समय-समय पर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग से संबंधित विषयों पर सेमिनार तथा कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जाता है। यदि पेशे की दृष्टि से देखा जाए तो बायोमेडिकल इंजीनियरिंग करियर निर्माण के रोमांचक अवसर प्रदान करता है। बायोमेडिकल इंजीनियर्स विभिन्न अनुसंधान संस्थानों, केंद्रों, फार्मास्यूटिकल कंपनियों, सरकारी संस्थानों तथा विनियामक इकाइयों में कार्य कर सकते हैं। इसके अलावा वे स्वतंत्र रूप से सलाहकार तथा परामर्शदाता के रूप में भी करियर बना सकते हैं।