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Written By वृजेन्द्रसिंह झाला

मजबूत हुई 'पंजे' की पकड़

कांग्रेस के लिए सुखद रहा साल

Top News Stories-Congress 2009 | मजबूत हुई ''पंजे'' की पकड़
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'कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ' नारे के उलट लोग भले ही सालभर महँगाई की मार से सिसकियाँ लेते रहे हों, लेकिन केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस की झोली में साल 2009 कई खुशियाँ डाल गया। वर्ष के पूर्वार्द्ध में जहाँ कांग्रेस एक बार फिर केन्द्र में सत्तारूढ़ हुई, वहीं उत्तरार्द्ध में भी उसने विधानसभा चुनावों में सफलता का स्वाद चखा। राहुल गाँधी के युवा नेतृत्व का करिश्मा भी इस वर्ष देखने को मिला। हालाँकि आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्‍डी की असामयिक मौत उसे हमेशा सालती रहेगी।

14वीं लोकसभा में 145 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में महँगाई जैसे मुद्‍दे के बावजूद 206 सीटों पर विजय हासिल कर एक बार फिर केन्द्र में सरकार बनाई।

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मनमोहनसिंह पुन: प्रधानमंत्री बने। इस बार का जनादेश कई मायनों में कांग्रेस के लिए सुखद संयोग लेकर आया। उसे एक ओर लालू यादव, रामविलास पासवान जैसे परेशान करने वाले सहयोगियों से मुक्ति मिली, वहीं वामपंथियों का 'सिरदर्द' नहीं झेलना पड़ा। जगजाहिर है कि वामपंथियों के दबाव के चलते पिछली लोकसभा में सरकार कई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं ले पाई थी।

राजग से छिटककर अलग हुई ममता बनर्जी के रूप में उसे नया सहयोगी मिला, जिससे गठजोड़ कर उसने पश्चिम बंगाल में 'लालगढ़' को भी कमजोर करने में सफलता प्राप्त की।

आंध्रप्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर राज्य में सरकार बनाई। यहाँ 158 सीटें हासिल कर पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। हालाँकि उड़ीसा में सरकार बनाने का उसका सपना पूरा नहीं हो सका। वहाँ कांग्रेस सिर्फ 26 सीटें ही प्राप्त कर सकी।

वर्ष के उत्तरार्द्ध में हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने सफलता का स्वाद चखा। हरियाणा में भूपेन्द्रसिंह हुड्‍डा के नेतृत्व में एक बार फिर उसकी सरकार बनी, वहीं महाराष्ट्र में भी गठबंधन सहयोगियों के साथ उसने ‍सफलता को दोहराया। अरुणाचलप्रदेश में तो 42 सीटें जीतकर उसने एकतरफा जीत हासिल की। वर्ष के अंत में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन पूर्व की तुलना में अच्छा रहा। झाविमो के साथ मिलकर उसने 25 सीटें हासिल की हैं। हालाँकि बहुमत के जादुई आँकड़े से यह अभी भी 16 सीट दूर है।

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राहुल का करिश्मा : गरीबों की झोपड़ियों में रात बिताकर सुर्खियों में आए कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी का करिश्मा भी लोकसभा चुनाव में देखने को मिला। उत्तरप्रदेश में मृतप्राय: कांग्रेस के लिए राहुल के दौरों ने 'संजीवनी' का काम किया। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के सहयोग दहाई के आँकड़े को नहीं छू पाई कांग्रेस इस चुनाव में अपने बूते 21 लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही।

राहुल के उभरते नेतृत्व के चलते इस बार सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव जैसे युवा नेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान मिला, वहीं कई युवा सांसद बनकर लोकसभा तक पहुँचे। इसके उलट अर्जुनसिंह, हंसराज भारद्वाज, शीशराम ओला जैसे पुरानी पीढ़ी के कद्दावर नेता राजनीतिक परिदृश्य से गायब होते दिखे।

रेड्‍डी का निधन : इस साल कई खुशियाँ अपनी झोली में समेटने वाली कांग्रेस को आंध्रप्रदेश के मुख्‍यमंत्री राजशेखर रेड्‍डी के निधन का सदमा भी झेलना पड़ा। रेड्‍डी का सितंबर में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में निधन हो गया। रेड्‍डी के निधन के बाद कांग्रेस को राज्य में कुछ समय के लिए राजनीतिक संकट का सामना भी करना पड़ा। रेड्‍डी समर्थक चाहते थे कि उनके बेटे जगनमोहन रेड्‍डी को राज्य की बागडोर सौंपी जाए, लेकिन कांग्रेस हाईकमान को यह मंजूर नहीं हुआ और के. रोसैया को राज्य का मुख्‍यमंत्री बनाया गया। हालाँकि कुछ समय बाद यह मामला पूरी तरह शांत हो गया।

तेलंगाना विवाद : केन्द्र की कांग्रेस सरकार के लिए अलग तेलंगाना राज्य की माँग गले की हड्‍डी बन गई है। आमरण अनशन पर बैठे टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव की बिगड़ती हालत को देखते हुए सरकार ने अलग तेलंगाना राज्य को हरी झंडी तो दे दी, लेकिन बाद में आंध्रप्रदेश में अलग राज्य के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए उसने इस मामले में ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश भी की। चंद्रशेखर राव के तेवरों को देखते हुए लग रहा है कि यह मुद्‍दा कांग्रेस को 2010 में भी तकलीफ देने वाला है। कुल मिलाकर यह साल कांग्रेस के लिए खुशियों से भरा ही रहा।