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आजादी का अमृत महोत्सव : भारत में विज्ञान, प्रोद्योगिकी और विकास

आजादी का अमृत महोत्सव : भारत में विज्ञान, प्रोद्योगिकी और विकास - 75th Anniversary of Independence
किसी भी देश का विकास वहां के लोगों के विकास से सम्बद्ध होता है। निरंतर प्रगति करती इस दुनिया में जिस प्रकार तकनीक ने हमारे दैनिक जीवन में प्रतिक्षण हस्तक्षेप किया है, उसी प्रकार आवश्यक है कि हम भी विज्ञान और प्रोद्योगिकी को आत्मसात करें – क्योंकि उसी से भारत की नींव है। मेरे अनुसार किसी भी देश की प्रगति तभी संभव है जब भविष्य की पीढ़ियों के लिए सूचना और ज्ञान आधारित वातावरण बनाया जाए और उच्च शिक्षा के स्तर पर शोध तथा अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। 

कल 
प्राचीन काल से ही विज्ञान में प्रमुख रहा राष्ट्र
गौरतलब है कि देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इतिहास दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं का है। सिंधु घाटी सभ्यता से प्रमाण मिले हैं कि वहां के निवासियों द्वारा गणित, हाइड्रोग्राफी, धातु विज्ञान, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, सिविल इंजीनियरिंग और मलजल संग्रहण का अभ्यास किया जाता रहा था। निर्माण ही नहीं, चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत में आयुर्वेद का वर्णन है। सुश्रुत संहिता (400 ईसा पूर्व) में मोतियाबिंद सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी आदि करने का विवरण है। प्राचीन भारत भी समुद्री यात्रा तकनीक में सबसे आगे था। इसका सबूत है मोहनजोदड़ो में पाया गया एक एक नौकायान शिल्प।

आज
वर्तमान: सुदृढ़ हो रहा प्रोद्योगिकी तंत्र
भारत ने नए दौर की अत्याधुनिक तकनीक के विकास में काफी तत्परता दिखाई है, उसी का सुखद परिणाम है कि आज हम तकनीकी नवाचार के मामले में विश्व में चीन के साथ दूसरे स्थान पर पहुंच गए हैं। कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी के 2020 ग्लोबल टेक्नॉलजी इंडस्ट्री इनोवेशन सर्वे के अनुसार आर्टिफशल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी), 3डी प्रिंटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, नैनो टेक्नोलॉजी, 5जी वायरलेस, कम्युनिकेशन, स्टेम सेल थेरेपी, इत्यादि के क्षेत्र में नई खोजों और अनुसंधान में भी प्रगति हुई है। उभरती तकनीक में निवेश के ज़रिए भारत महत्वपूर्ण आर्थिक, सामाजिक और सैन्य फ़ायदा हासिल कर सकता है और इससे बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में बड़ा नाम होने की भारत की आकांक्षा को बल मिल सकता है।
 
इंडियन साइंस एंड रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाले देशों में शामिल है। हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों में सातवें, नैनो तकनीक पर शोध के मामले में तीसरे और वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index) में हम 57वें स्थान पर हैं।
 
तकनीक की प्रगति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2015 में 4500 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय सुपर कम्प्यूटिंग मिशन की शुरुआत की गई जिससे कि 2022 तक पूरे देश में 73 सुपर कम्प्यूटर लगाए जाएं। अब सरकारी संस्थाएं भी तकनीक का इस्तेमाल अपना तंत्र मजबूत बनाने के लिए कर रही हैं। भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने कई ऐसी लैब की भी स्थापना की है जो भविष्य की तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम और कॉग्निटिव तकनीक, असिमेट्रिक टेक्नोलॉजी और स्मार्ट मैटेरियल पर ध्यान दे रही है।  साथ ही, भारतीय सेना अत्याधुनिक मिलिट्री सिस्टम जैसे डायरेक्टेड एनर्जी वेपन (DEW), मैन्ड कॉम्बैट प्लेटफॉर्म और स्वार्म ड्रोन विकसित कर रही है।  विदेश मामलों के मंत्रालय ने हाल में नई, उभरती और रणनीतिक तकनीक (NEST) डिवीज़न का गठन किया है जो नई और उभरती तकनीक को लेकर विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनी पहलुओं को देखेगा और वैश्विक तकनीकी शासन के मंचों पर सक्रिय भारतीय भागीदारी का इंतज़ाम करेगा।

कल
भविष्य: चुनौतियां और समाधान
उभरती तकनीक के क्षेत्र में विकास और वैज्ञानिक सिद्धांत महत्व रखते हैं। सामान्यतः विश्वविद्यालय और अकादमिक संस्थान पहले दृष्टिकोण पर आधारित प्रोजेक्ट पर काम करते हैं जबकि पेशेवर रिसर्च लैबोरेटरी दूसरे दृष्टिकोण पर ध्यान देती है। अफ़सोस की बात ये है कि दोनों दृष्टिकोणों के बारे में बुनियादी ढांचे पर पैसा खर्च नहीं किया गया है और रिसर्च का अच्छा माहौल बनाने के लिए इस कमी पर ध्यान देने की ज़रूरत है। 2018 में भारत ने अपनी GDP का सिर्फ़ 3% शिक्षा पर खर्च किया जो कोठारी आयोग की तरफ़ से की गई सिफ़ारिश का आधा है। साथ ही 2019 के एक सर्वे के अनुसार भारत के सिर्फ़ 47% ग्रैजुएट नौकरी के योग्य हैं। लेकिन नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत जो क़ानूनी बदलाव प्रस्तावित हैं, उनका उद्देश्य ज़रूरत से ज़्यादा नियमों को कम करना और शैक्षणिक संस्थानों को महत्वपूर्ण स्वायत्तता उपलब्ध कराना है। इसके अलावा टॉप रैंक विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत में कैंपस खोलने के लिए आकर्षित करने की कोशिश एक स्वागत योग्य क़दम है। 
 
भारत में ज़्यादातर वैज्ञानिक रिसर्च सरकारी पैसे पर चलने वाले शैक्षणिक संस्थानों जैसे IISc, IIT और AIIMS या विशेष संगठनों जैसे ICAR, ICMR, CSIR, DRDO और ISRO में होती है। लेकिन ये संगठन भी सीमित क्षमता और पैसे की कमी का सामना कर रहे हैं। उच्च शिक्षा के साथ भारत में रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) के बुनियादी ढांचे पर भी लगातार ध्यान देने की ज़रूरत है। ऐसे में अलग-अलग मंत्रालयों की तरफ़ से रिसर्च के लिए एक-दूसरे से अलग रक़म देने की मौजूदा व्यवस्था को राष्ट्रीय रिसर्च फाउंडेशन (NRF) के ज़रिए बदलना फायदेमंद होगा।
 
स्टार्टअप भी उभरती तकनीक में अत्याधुनिक रिसर्च के केंद्र के रूप में उभरे हैं। कॉरपोरेट टैक्स में छूट या विशेष मशीनों के आयात पर कर में छूट देने से भारतीय नौजवानों को स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। इससे भारत ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन की स्थिति में पहुँच सकेगा है और विदेशों में काम कर भारत लौटने वाले भारतीय वैज्ञानिकों की संख्या में भी वृद्धि होगी।
 
इसमें संदेह नहीं कि उभरते परिदृश्य और प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था में विज्ञान को विकास के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में मान्यता मिल रही है। इसके पीछे सरकार द्वारा किये गए प्रयासों को नकारा नहीं जा सकता। 2035 तक तकनीकी और वैज्ञानिक दक्षता हासिल करने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने ‘टेक्नोलॉजी विज़न 2035’ नाम से एक रूपरेखा भी तैयार की है। इसमें शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य, खाद्य और कृषि, जल, ऊर्जा, पर्यावरण इत्यादि जैसे 12 विभिन्न क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिए जाने की बात कही गई है। वर्ष 2018-19 की नवीनतम पहलों की बात करें तो इसमें इंटर-डिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS) और द ग्लोबल कूलिंग प्राइज़ शामिल हैं। इसके अलावा भारतीय और आसियान शोधकर्त्ताओं, वैज्ञानिकों और नवोन्मेषकों के बीच नेटवर्क बनाने के उद्देश्य से आसियान-भारत इनोटेक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डिजिटल अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों, साइबर सुरक्षा और स्वच्छ विकास को बढ़ावा देने की संभावनाओं को साकार करने वाली वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये भारत-UK साइंस एंड इनोवेशन पॉलिसी डायलॉग के ज़रिये भारत और ब्रिटेन मिलकर काम कर रहे हैं।

वाहनों के प्रदूषण से निपटने के लिये वायु-WAYU (Wind Augmentation & Purifying Unit) डिवाइस लगाए जा रहे हैं। विदेशों में एक्सपोज़र और प्रशिक्षण प्राप्त करने के उद्देश्य से विद्यार्थियों के लिये ओवरसीज विजिटिंग डॉक्टोरल फेलोशिप प्रोग्राम चलाया जा रहा है। जनसामान्य के बीच भारतीय शोधों के बारे में जानकारी देने और उनका प्रसार करने के लिये अवसर-AWSAR (ऑगमेंटिंग राइटिंग स्किल्स फॉर आर्टिकुलेटिंग रिसर्च) स्कीम इत्यादि जैसी अन्य कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने दूरदर्शन और प्रसार भारती के साथ मिलकर विज्ञान संचार के क्षेत्र में डीडी साइंस और इंडिया साइंस नाम की दो नई पहलों की भी शुरुआत की है।
 
हालाँकि विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रयास कर रही है, फिर भी इस दिशा में और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। एक ऐसी नीति बनानी होगी जिसमें समाज के सभी वर्गों में वैज्ञानिक प्रसार को बढ़ावा देने और सभी सामाजिक स्तरों से युवाओं के बीच विज्ञान के अनुप्रयोगों के लिये कौशल को बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया हो। अगर देश को विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना है तो उस तकनीक को अपनाना होगा, जो भविष्य में अहम भूमिका निभाने वाली है और तभी हमारे 75 वर्षों की इस यात्रा के बाद आने वाले 25 वर्षों में भारत को परम वैभव के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा पाएँगे।
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