कुछ तारीखों ने दुनिया का इतिहास बदल दिया, यह वो तारीखें बन चुकी है जिन्हे याद कर के कभी सिहरन होती है, कभी अपनी अक्षमता पर शर्म और गुस्सा आता है तो कभी विपरीत परिस्थितियों में जी-जान से जूझते इंसानों के जज्बे पर सीना चौडा हो जाता है। 26 नवंबर 2008 भी उन तारीखों में से एक बन चुकी है जो भारत के इतिहास में अपनी जगह खून से लाल और धुँए से काले पड़ चुके अक्षरों में दर्ज हो चुकी है।

गुरिल्ला युद्ध में निपुण और पाक स्थित आकाओं की सरपरस्ती से मानवता के दुश्मनों ने हर कदम पर सुरक्षाबलों का कड़ा प्रतिरोध किया। इस अप्रत्याशित हमले से सन्न मुंबई के ऐसे बहुत से लोग है जो इस हमले में बच तो गए, उन्हें लगी गोलियों के जख्म भी भर गए पर उनकी आत्मा पर लगे जख्म शायद कभी नहीं भर पाएँगे।

वहीं होटल ताज को वापस अपने पुराने स्वरूप में लाने के लिए रतन टाटा ने दिन-रात एक कर दिए और हमले के सिर्फ एक महीने बाद ताज एक बार फिर मेहमानों के लिए तैयार था।
इस हमले ने कई मामलों में देश के सरकारी और निजी तंत्र की पोल खोल दी। इस संकट पर तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल रटा-रटाया बयान देते नजर आए, राज्य सरकार और सुरक्षा एजेंसियों में भी ताल-मेल का भारी अभाव नजर आया। एनएसजी के कमांडो को मुंबई पहुँचने में 12 से भी अधिक घंटे लग गए। मीडिया ने भी सबसे पहले फुटेज दिखाने की होड़ के चलते होटल में छुपे लोगो की जगह और सुरक्षाबलों की हर हरकत की जानकारी का जिस तरह से सीधा प्रसारण किया गया उसके चलते कई बार मासूमों की जान पर बन आई।
पर इस सब उहापोह में बहुत से वाकये ऐसे भी मिले जो मानवता की मिसाल बने और घोर संकट में नेतृत्व करने वाले कुछ चेहरे भी सामने आए, चाहे घायलों को अस्पताल पहुँचाने वाले आम लोग हो या एनएसजी के शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और कमांडो गजेन्द्रसिंह। गोलियों की बौछार में लोगों को आश्रय देने के लिए अपने घर-दुकानों में शरण देने वाले मुंबईकर, एकमात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी को रोकने वाले शहीद तुकाराम आंबले। होटल ताज के कर्मचारी जिन्होने अपनी जान की बाजी लगा कर अपने मेहमानों को सुरक्षित निकालने में मदद की। ऐसे सैकड़ो उदाहरण मिलेंगे जो दर्शाते है कि आतंकियों के खौफनाक मंसूबों पर आम आदमी का हौसला भारी पड़ा।
एक ऐसा ही और उदाहरण मिलता है नरीमन हाउस में मारे गए यहूदी दंपत्ति के 2 साल के बेटे मोशे की आया सांड्रा सैम्युल में, इस घर में आतंकियों ने बर्बरता की इंतहा करते हुए मोशे के माता-पिता सहित 4 अन्य यहूदियों को मार डाला था। सांड्रा ने अपनी जान पर खेलते हुए मोशे को किचन में फ्रिज के पीछे कई घंटो तक छुपा कर रखा और कमांडो कार्यवाई के दौरान गोलियों की बौछार के बीच बाहर निकाला था।
