गृह और ग्रह का हमारे जीवन में बहुत बड़ा योगदान होता है। यदि घर वास्तु अनुसार बना है तो ग्रह भी सही होंगे। सबसे महत्वपूर्ण घर ही होता है। वास्तु शास्त्र अनुसार हमारे घर के दरवाजे कैसे हैं इससे भी हमारे भविष्य पर प्रभाव पड़ता है। दरवाजे किस्मत चमका भी सकते और बिगाड़ भी सकते हैं। तो आइये जानते हैं दरवाजों की दिशा और उनके आकार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी।
दरवाजे हमारे घर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। क्या आप जानते हैं दरवाजे आजकल लोग फ्लैट में रहते हैं तो सभी के दरवाजे भी एक जैसे होते हैं। ऐसे में क्या सभी का भाग्य भी एक जैसा होगा यह सवाल आपके मन में उठ सकता है।
1.पूर्व दिशा का दरवाजा : अक्सर लोग पूर्व मुखी मकान लेने का सोचते हैं लेकिन अधिकतर मकान या तो आग्नेय कोण वाले होते हैं या ईशान कोण वाले मिलते हैं। यदि पूर्व मुखी वाले हैं तो यह शुभ तो होगा लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं। पूर्व दिशा में घर का दरवाजा कई मामलों में शुभ है लेकिन ऐसा व्यक्ति कर्ज में डूब जाता है। वास्तुदोष होने पर इस दिशा में दरवाजे पर मंगलकारी तोरण लगाना शुभ होता है। हालांकि यह दरवाजा बहुमुखी विकास व समृद्घि प्रदान करता है।
2.आग्नेय का दरवाजा : आग्नेय कोण का दरवाजे के बार में कहा जाता है कि यह बीमारी और गृहकलह पैदा करने वाला होता है। दिनभर सूर्य का ताप घर में बने रहने से घर के भीतर का ऑक्सिजन लेवल कम हो जाता है। यह दरवाजा सभी तरह की प्रगति को रोक देता है। लगातर आर्थिक हानी होती रहती है।
3.दक्षिण दिशा का दरवाजा : दक्षिण दिशा का दरवाजा है तो लगातार आर्थिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए। इस दिशा की भूमि पर भार रखने से गृहस्वामी सुखी, समृद्ध व निरोगी होता है। धन को भी इसी दिशा में रखने पर उसमें बढ़ोतरी होती है।
4.नैऋत्य का दरवाजा : किसी भी स्थिति में दक्षिण-पश्चिम में प्रवेश द्वार बनाने से बचें। इस दिशा में प्रवेश द्वार होने का मतलब है परेशानियों को आमंत्रण देना। नैऋत्य कोण के बढ़े होने से असहनीय स्वस्थ्य पीड़ा व अन्य गंभीर परेशानियां पैदा होती हैं और यदि यह खुला रह जाए तो ना ना प्रकार की समस्या घर कर जाती है।
5.पश्चिम दिशा का दरवाजा : पश्चिम दिशा में दरवाजा होने से घर की बरकत खत्म होती है। आपका रसोईघर या टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए। आपके भवन का प्रवेश द्वार केवल पश्चिम दिशा में है तो यह आपके व्यापार में लाभ तो देगा, मगर यह लाभ अस्थायी होगा। हालांकि जरूरी नहीं है कि पश्चिम दिशा का दरवाजा हर समय नुकसान वाला ही होगा। यदि घर के भीतर का वास्तु सही है और नीचे बताए दरवाजे के महत्वपूर्ण नियमों अनुसार दरवाजा है तो यह आर्धिक उन्नती में सहायक होगा।
6.वायव्य का दरवाजा : उत्तर व पश्चिम दिशा में है तो ये आपको समृद्घि तो प्रदान करता ही है, यह भी देखा गया है कि यह स्थिति भवन में रहने वाले किसी सदस्य का रूझान अध्यात्म में बढ़ा देती है। लेकिन इसके लिए घर के भीतर का वास्तु भी सही होना चाहिए। वायव्य कोण यदि गंदा है तो नुकसान होगा।
7.उत्तर दिशा का दरवाजा : वास्तु के अनुसार उत्तर का दरवाजा हमेशा लाभकारी होता है। इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होना चाहिए। घर की बालकनी भी इसी दिशा में होना चाहिए। उत्तर दिशा का द्वार समृद्धि, प्रसिद्ध और प्रसन्नता लेकर आता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर धन की हानि व करियर में बाधाएं आती हैं।
8.ईशान का दरवाजा : यदि दरवाजा ईशान में है तो यह शांति, उन्नती, समृद्धि और खुशियों का खजाना है। उत्तर और ईशान के दारवाजों में ध्यान रखने वाली खास बात यह है कि सर्दियों में घर में ठंडक रहती है तो गर्माहट का अच्छे से इंतजाम करें। साथ ही ईशान कोण के दारवाजे के बाहर का वास्तु भी अच्छा होना चाहिए।
दरवाजे के कुछ महत्वपूर्ण नियम:-
*एक सीध में तीन दरवाजे नहीं होना चाहिए।
*घर में दो प्रवेश द्वार होने चाहिए। एक बड़ा दूसरा छोटा।
*प्रवेश द्वार मकान के एकदम कोने में न बनाएं।
*मकान के भीतर तक जाने का मार्ग मुख्य द्वार से सीधा जुड़ा होना चाहिए।
*मकान के ठीक सामने विशाल दरख्त न हो तो बेहतर।
*मुख्य द्वार के ठीक सामने किसी भी तरह का कोई खम्भा न हो।
*खुला कुआं मुख्य द्वार के सामने न हो।
*मुख्य द्वार के सामने कोई गड्ढा अथवा सीधा मार्ग न हो।
*कचरा घर, जर्जर पड़ी इमारत या ऐसी कोई नकारात्मक चीज मकान के सामने नहीं होनी चाहिए।
*दरवाजे के सामने उपर जाने के लिए सीढ़ियां नहीं होना चाहिए।
*एक पल्ले वाला दरवाजा नहीं होना चाहिए। दो पल्ले वाला हो।
*मुख्य द्वार त्रिकोणाकार, गोलाकार, वर्गाकार या बहुभुज की आकृति वाला नहीं होना चाहिए।
*मुख्यद्वार खोलते ही सामने सीढ़ी नहीं बनवाना चाहिए। वास्तु अनुसार *सीढ़ियों के दरवाजे का मुख उत्तर या दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।
*मुख्य दरवाजा छोटा और उसके पीछे का दरवाजा बड़ा नहीं होना चाहिए। मुख्य दरवाजा बड़ा होना चाहिए।
*दरवाजे के भीतर दरवाजा नहीं बनाना चाहिए।
*घर के ऊपरी माले के दरवाजे निचले माले के दरवाजों से कुछ छोटे होने चाहिए।
*दरवाजे टूटे फूटे नहीं होना चाहिए।
*द्वार के खुलने बंद होने में आने वाली चरमराती ध्वनि स्वरवेध कहलाती हैं जिसके कारण आकस्मिक अप्रिय घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है।
*कुछ दरवाजे ऐसे होते हैं जिनमें खिड़कियां होती हैं ऐसे दरवाजों में वास्तुदोष हो सकता है।
*घर की सभी खिड़की व दरवाजे एक समान ऊंचाई पर होने चाहिए।
*घर में दो मुख्य द्वार हैं तो वास्तुदोष हो सकता है। घर में प्रवेश का केवल एक मुख्य द्वार बड़ा होना चाहिए। *विपरीत दिशा में दो मुख्य द्वार नहीं बनाना चाहिए।
*घर का मुख्यद्वार घर के बीचों-बीच न होकर दाईं या बाईं ओर स्थित होना चाहिए या वास्तुशास्त्री से संपर्क करें।
*ऐसा दरवाजा जिसके सामने वृक्ष, खम्भा, दीवार, डीपी, हैंडपम्प, किचड़ आदि होता है उसे वास्तु में स्तंभ वेध माना जाता है।
*घर का मुख्य द्वार बाहर की ओर खुलने वाला नहीं होना चाहिए।