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ग़ज़ल - ज़ोक
क्या मद्द-ऐ-नज़र है यारों से तो कहिएगर मुँह से नहीं कहते, इशारों से तो कहिएहाल-ए-दिल बेताब कहा जाए जो हमसेगर कहिये न लाखों से हज़ारों से तो कहिएइस गोहर ऐ दन्दाँ पे वे अगर सूझे कोई बातमौती तो हैं क्या माल, सितारों से तो कहिएजिस राह से शानः है गया ज़ुल्फ़ ए रसा मेंउस रस्ते को इन सीनः फ़िगारों से तो कहिएकहिए न तंग जर्फ़ से ऐ ज़ोक़ कभी राज़कहकर अगर सुन्ना हो हज़ारों से तो कहिए