नज्म : मेरे महबूब !
-फ़िरदौस ख़ान
मेरे महबूब !
तुम्हारा चेहरा
मेरा कुरान है
जिसे मैं
अजल से अबद तक
पढ़ते रहना चाहती हूं...
तुम्हारा जिक्र
मेरी नमाज है
जिसे मैं
रोजे-हश्र तक
अदा करते रहना चाहती हूं...
मेरे महबूब !
तुमसे मिलने की चाह में
दोजख से भी गुजर हो तो
गुजर जाना चाहती हूं...
तुम्हारी परस्तिश ही
मेरी रूह की तस्कीन है
तुम्हारे इश्क में
फना होना चाहती हूं...