लिंग समानता में उलझी मुक्केबाजी
गुवाहाटी। महिला मुक्केबाजी मेरिट के आधार पर ओलंपिक स्तर पर विस्तार की हकदार है लेकिन क्या ऐसा पुरुष स्पर्धाओं की संख्या घटाकर होना चाहिए? इस सवाल का जवाब आसान नहीं होगा, क्योंकि ओलंपिक के मार्की खेलों में शामिल मुक्केबाजी 2020 खेलों के दौरान आमूलचूल बदलाव की ओर बढ़ रही है।
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने टोकियो खेलों में महिला स्पर्धाओं की संख्या 3 से बढ़ाकर 5 करने को स्वीकृति दी है लेकिन कुल प्रतिभागियों या पदकों की संख्या में इजाफा नहीं किया है।
इसका मतलब होगा कि 2012 खेलों के दौरान 13 से 10 की गई पुरुष स्पर्धाओं को अब घटाकर 8 कर दिया जाएगा, क्योंकि आईओसी खेलों के महाकुंभ में अधिक लिंग समानता लाने की तैयारी कर रहा है। लंदन 2012 खेलों में महिला मुक्केबाजी ने 3 स्पर्धाओं के साथ पदार्पण किया था। मुक्केबाजी 1904 से ओलंपिक खेल रहा है और 2008 तक इसमें सिर्फ पुरुष स्पर्धाएं होती थीं।
भारत के हाई परफॉर्मेंस निदेशक सेंटियागो नीवा ने कहा कि एक समय था, जब पुरुष मुक्केबाजी में 13 वजन वर्ग थे जिसे घटाकर 10 कर दिया गया और अब 2020 में ये 8 हो सकते हैं। महिला मुक्केबाजी विस्तार की हकदार है लेकिन साथ ही पुरुष मुक्केबाजी को अपनी जगह के लिए संघर्ष जारी रखना चाहिए।
भारतीय मुक्केबाजी के राष्ट्रीय पर्यवेक्षक अखिल कुमार ने कहा कि मुझे यह समझ नहीं आता कि प्रतिनिधित्व में इजाफा क्यों नहीं हो सकता? अधिक महिला स्पर्धाएं अच्छी बात हैं लेकिन पुरुष स्पर्धाएं उतनी ही रहने दीजिए, अधिक पदक हों, अधिक मुक्केबाज हों। मेरे नजरिए से यह लक्ष्य होना चाहिए। क्या ओलंपिक भावना यही नहीं है? (भाषा)