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Guru Ramdas Jayanti : जानिए 5 बातें

Guru Ramdas Jayanti : जानिए 5 बातें - Guru Ramdas Jayanti 2022
Guru Ramdas Jee 
 
1. सिख धर्म के चौथे गुरु श्री गुरु रामदास साहेब जी (Guru Ramdas Saheb) का प्रकाश (जन्‍म) कार्तिक वदी 2, विक्रमी संवत् 1591 (24 सितंबर सन् 1534) को पिता हरदास जी तथा माता दया जी के घर लाहौर (अब पाकिस्तान में) की चूना मंडी में हुआ था। गुरु रामदास जी के जन्मदिवस को प्रकाश पर्व या गुरुपर्व भी कहा जाता है। 
 
2. उन्हें बचपन में 'भाई जेठाजी' के नाम से पुकारा जाता था। छोटी उम्र में ही गुरु रामदास जी के माता-पिता का स्‍वर्गवास हो गया। इसके बाद बालक जेठा अपने नाना-नानी के पास बासरके गांव में आकर रहने लगे। जेठाजी ने अपने जीवन काल में 30 रागों में 638 शबद लिखे, जिनमें 246 पौउड़ी, 136 श्लोक, 31 अष्टपदी और 8 वारां हैं, जिसे गुरु ग्रंथ साहिब जी में शामिल किया गया है।
 
3. बचपन में ही उन्होंने कुछ सत्‍संगी लोगों के साथ गुरु अमरदास जी के दर्शन किए और उनकी सेवा में पहुंच गए, उनकी सेवा से प्रसन्‍न होकर गुरु अमरदास जी ने अपनी बेटी भानीजी का विवाह भाई जेठाजी से करने का निर्णय लिया। आपका विवाह होने के बाद आप गुरु अमरदास जी की सेवा जमाई बनकर न करते हुए एक सिख की तरह तन-मन से करते रहे। गुरु रामदास जी ने ही आनंद कारज सिखों के विवाह में पढ़े जाने वाले फेरों की रचना की थी। 
 
4. गुरु अमरदास जी जान गए थे कि जेठाजी गुरुगद्दी के लायक हैं, पर लोक-मर्यादा को ध्‍यान में रखते हुए उनकी परीक्षा ली। जिसमें उन्‍होंने अपने दोनों जमाइयों को 'थडा' बनाने का हुक्‍म दिया। शाम को वे उन दोनों जमाइयों द्वारा बनाए गए थडों को देखने आए। थडे देखकर उन्‍होंने कहा कि ये ठीक से नहीं बने हैं, इन्‍हें तोड़कर दोबारा बनाओ। गुरु अमरदास जी का आदेश पाकर दोनों जमाइयों ने दोबारा थडे बनाए। गुरु साहेब ने उन थडों को नापसंद कर दिया और उन्‍हें दोबारा से थडे बनाने का हुक्‍म दिया। इस हुक्‍म को पाकर दोबारा थडे बनाए गए। पर अब जब गुरु अमरदास साहेब जी ने इन्‍हें फिर से नापसंद किया और फिर से बनाने का आदेश दिया, तब उनके बड़े जमाई ने कहा- 'मैं इससे अच्‍छा थडा नहीं बना सकता'। पर जेठाजी ने गुरु अमरदास जी का आदेश मानते हुए दोबारा थडा बनाना शुरू किया। यहां से यह सिद्ध हो गया कि भाई जेठाजी ही गुरुगद्दी के लायक हैं। 
 
5. गुरु रामदास जी यानी जेठाजी को 1 सितंबर सन् 1574 ईस्‍वी में गोविंदवाल जिला अमृतसर में श्री गुरु अमरदास जी द्वारा गुरुगद्दी सौंपी गई। 16वीं शताब्दी में सिखों के चौथे गुरु रामदास ने एक तालाब के किनारे डेरा डाला, जिसके पानी में अद्भुत शक्ति थी। इसी कारण इस शहर का नाम अमृत+सर (अमृत का सरोवर) पड़ा। गुरु रामदास के पुत्र ने तालाब के मध्य एक मंदिर का निर्माण कराया, जो आज अमृतसर, स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु माथा टेकने के लिए आते हैं। गुरु रामदास जी ने गोइंदवाल साहिब में 1 सितंबर 1581 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।
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