निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 6 सितंबर के 127वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 127 ) में प्रद्युम्न द्वारा संभरासुर के पुत्र सिंहनाद और केतुमाली का वध करने के बाद कुंभकेतु की पत्नी जब यज्ञकुंडी की अग्नि की जलती हुई अग्नि को देखती है तो वह यह भूल जाती है कि मेरे देवरों के वध में महल में शोक है और वह जोर जोर से हंसती है यह सोचकर की मेरा पति सुरक्षित है। इस पर श्रीकृष्ण रुक्मिणी को कहते हैं कि यह हंसी कलयुग का दर्पण है। कलयुग में इससे भी गिरे हुए लोग होंगे। अब आगे...
कुंभकेतु की पत्नी ये जानती है कि जब तक यज्ञकुंड की अग्नि जलती रहेगी मेरे पति के जीवन की ज्योति भी जलती रहेगी। उधर, कुंभकेतु का प्रद्युम्न से युद्ध प्रारंभ हो जाता है। दोनों भयंकर रूप से मायावी युद्ध लड़ते हैं। यह बताया जाता है कि कुंभकेतु के अस्त्र से प्रद्युम्न का मृत्यु हो जाती है। यह देखकर कुंभकेतु खुश हो जाता है। वह रणभूमि में जोर-जोर से चीखता है प्रद्युम्न मर गया, प्रद्युम्न मर गया। मैंने उसे नष्ट कर दिया।
उधर, गुप्तचर यह समाचार संभरासुर को सुनाता है कि कुंभकेतु ने प्रद्युम्न का वध कर दिया तो संभरासुर खुशी के मारे जोर-जोर से हंसता है और कहता है सुन लिया महारानी! प्रद्युम्न तो गुरुदेव के कहने के अनुसार मेरा काल था परंतु वो स्वयं मृत्यु का निवाला बन गया...हा हा हा हा।...परंतु महारानी मायावती को इस समाचार पर शंका रहती है और कहती है कि स्वामी न जाने क्यों मुझे इस पर विश्वास नहीं हो रहा है। इस पर संभरासुर कहता है कि मैं तुम्हें प्रत्यक्ष रणभूमि का दर्शन करवा सकता हूं। फिर संभरासुर अपनी माया से रणभूमि का प्रत्यक्ष दर्शन करवाता है।
रणभूमि में प्रद्युम्न रथ पर मृत अवस्था में पड़ा रहता है। तब उसका सारथी रथ से उतरकर रथ के घोड़े को पकड़कर दूसरी ओर ले जा रहा होता है। यह दिखाने के बाद संभरासुर कहता है- देख लिया मायावती। प्रद्युम्न मर गया मायावती, प्रद्युम्न मर गया। यह देख और सुनकर मायावती भी प्रसन्न हो जाती है।
फिर वहां पर एक सेवक आकर संभरासुर से कहता है कि राजकुमार कुंभकेतु प्रद्युम्न का वध करके राजमल की ओर आ रहे हैं। फिर राजकुमार कुंभकेतु का भव्य स्वागत होता है। संभरासुर कुंभकेतु को अपने गले से लगाकर कहता है कि कुंभकेतु आज में अतिप्रसन्न हूं तुमने अपने भाई मायासुर का बदला ले लिया है। कृष्ण ने मेरे एक पुत्र का वध किया था तो मैंने भी उसके एक पुत्र को नष्ट कर दिया है। कुंभकेतु अब हम द्वारिका पर आक्रमण करेंगे क्योंकि अभी हमारा सबसे बड़ा शत्रु जीवित है।
उधर, रणभूमि में सारथी अपने रथी प्रद्युम्न को एक जगह पर लेटाकर बैठ जाता है। वहां पर रात्रि में रति प्रकट होती हैं और वह रोते हुए प्रद्युम्न के पास जाकर कहती है- स्वामी आंखें खोलिये स्वामी। आप यूं मुझे छोड़कर नहीं जा सकते स्वामी। बड़े लंबे युगों बाद हमारा मिलन हुआ था ये मिलन क्या फिर से बिछुड़ने के लिए हुआ था। हे महादेव! आपने वरदान दिया था कि कामदेव को प्रद्युम्न के रूप में नया शरीर मिलेगा और अब इस मुर्दा शरीर को लेकर मैं क्या करूंगी महादेव। हे महादेव! आपने मुझे ऐसा झूठा वचन क्यूं दिया था?
उधर, कुंभकेतु की पत्नी कामिनी कुंभकेतु को यज्ञकुंड के पास ले जाकर कहती है- स्वामी! आज मैं धन्य हो गई। आपने प्रद्युम्न का वध कर दिया है ये सुनकर मेरा मन मयुर की तरह नाचने लगा है। तब कुंभकेतु कहता है- कामिनी ये तो तुम्हारी तपस्या का प्रभाव है। तब कामिनी कहती है- स्वामी जो आपको नष्ट करने आएगा वो स्वयं ही नष्ट हो जाएगा।
उधर, प्रद्युम्न के शव के पास भानामति भी प्रकट हो जाती है। देवी रति उन्हें देखकर उनसे लिपटकर रोने लगती है तो भानामति कहती है- देवी रति ये क्या हो गया, ये कैसे हो गया? यह सुनकर देवी रति कहती है- मुझ पर अन्याय हो गया है माते। ये देखिये कुंभकेतु की दिव्य शक्ति ने प्रद्युम्न के प्राण हर लिए हैं। यह सुनकर भानमति कहती है- प्राण हर लिए! नहीं मेरे प्रद्युम्न को संसार की कोई शक्ति मार नहीं सकती।..
फिर देवी रति विलाप करते हुए कहती है कि यही संदेशा देकर आपने नारद को मेरे पास भेजा था कि इन्हें त्रिलोक का कल्याण करना है इन्हें अभी जाने दो। संभरासुर का वध करने के पश्चात वो तुम्हारे पास वापस लौट आएगा। आप बताइये क्या कर दिया है उन्होंने संभरासुर का वध? अब लौटा दीजिये मुझे मेरे प्रद्युम्न को माते। नारद ने भी मुझे धोखा दिया और आपने भी मुझे धोखा दिया कि आपकी मायावी शक्ति से प्रद्युम्न अजेय हो गया है। अब कहां गई आपकी मायावी विद्या? स्वयं भगवान शंकर ने भी मुझे झूठा आश्वासन दिया। अब तीनों लोक में कौन सुनेगा मेरी पुकार। मेरे साथ किए गए अन्याय को कौन मिटाएगा। अब दिखाइये अपनी मायावी शक्ति का चमत्कार दिखाइये।
फिर भानामति कहती है कि मैंने अपनी सारी शक्तियों के कवच बनाकर प्रद्युम्न के चारों ओर सुरक्षा का कवच बना दिया था। अब मैं पता करूंगी कि वो कौन-सी शक्ति थी जिसने मेरे सुरक्षा कवच का भेदन करके मेरे प्रद्युम्न के प्राण हर लिए। फिर भानामति चामुंडा के मंत्र का जाप करके अपनी माया प्रद्युम्न के ऊपर छोड़ती है। तब उसे प्रद्युम्न के हृदय में एक ज्योति जलती हुई नजर आती है जिसे देखकर वह प्रसन्न हो जाती है। रति भी इसे देखकर प्रसन्न हो जाती है। भानामति तब खुशी से हंसते हुए कहती है- मेरा प्रद्युम्न जीवित है, वो मरा नहीं है वो तो केवल अचेत था..ये तो..ये तो गंधर्व देवता की शक्ति थी।
फिर भानामति गंधर्व, नाग और यक्षदेव का आह्वान करती है तो वे तीनों वहां प्रकट हो जाते हैं तब भानामति कहती है- हे देवता! मेरे पुत्र के प्राण संकट में हैं रक्षा करो...रक्षा करो। आपने कभी कुंभकेतु को जो शक्ति प्रदान की थी उस शक्ति का दुरुपयोग करके कुंभकेतु ने मेरे प्रद्युम्न के प्राण संकट में डाल दिए हैं। मेरी सुरक्षा का कवच ज्यादा समय तक उस शक्ति के प्रहार को नहीं रोक पाएगा। आप अपनी शक्ति के प्रभाव को निष्फल कीजिये प्रभु, आप अपना वचन निभाइये। मेरे प्रद्युम्न की रक्षा कीजिये प्रभु।
यह सारा दृश्य श्रीकृष्ण और रुक्मिणी देख रहे होते हैं।
तब वे देव कहते हैं कि भानामति तुम बिल्कुल चिंता न करो। तीनों लोकों के कल्याण के लिए प्रद्युम्न का जीवित रहना आवश्यक है। इसलिए हम अपनी शक्ति के प्रभाव को विफल कर देंगे। यह सुनकर भानामति प्रसन्न हो जाती है। फिर वे तीनों देव अपनी शक्ति के प्रभाव को हटाकर कहते हैं कि हमने अपनी शक्ति का प्रभाव हटा लिया है भानामति। तब भानामति तीनों देवा को प्राणाम करती।
फिर भानामति भावुक होकर रोते हुए अचेत प्रद्युम्न को आवाज लगती है- उठो पुत्र प्रद्युम्न। मैं भानामति तुम्हारी मां तुम्हें आदेश देती हूं उठो पुत्र..उठो। तुम्हें मेरी ममता की सौगंध है पुत्र उठो। फिर थोड़ी देर में प्रद्युम्न अपनी आंखें खोल देता है। तो रति स्वामी स्वामी कहने लगती है। प्रद्युम्न अपनी आंखें खोलकर अपनी मां को देखता है। फिर वह उठकर खड़ा हो जाता है और उसे कुछ समझ में नहीं आता है कि ये हुआ क्या था। तब वह आसमान में तीनों देवताओं को देखकर उन्हें प्रणाम करता है। तीनों देवता उसे आशीर्वाद देकर वहां से चले जाते हैं।
फिर प्रद्युम्न भानमति को प्रणाम करके कहता है- माताश्री आप रो क्यों रही हैं? कदाचित मुझसे कोई भूल हुई है इसलिए रणभूमि में आप सभी को आना पड़ा। मुझे क्षमा कर दीजिये माताश्री मेरे पास कुंभकेतु की उस शक्ति का कोई उत्तर नहीं था। परंतु अब मुझसे ऐसी भूल नहीं होगी माताश्री। यह सुनकर भानामति उसके सिर पर हाथ रखकर कहती है- हम सबकी तुमसे यही अपेक्षा है पुत्र।.. फिर रति यह कहते हुए वहां से चली जाती है कि स्वामी मैं बहुत प्रसन्न हूं.. बहुत प्रसन्न हूं। भानामति भी चली जाती है।
फिर नारदमुनि आकर प्रद्युम्न को समझाते हैं कि तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे अस्त्र-शस्त्रों का कुंभकेतु पर कोई असर नहीं पड़ रहा था। तुम इन अचूक हथियारों के वार से भी कुंभकेतु के शरीर पर कोई खरोंच तक नहीं कर पाए। तब प्रद्युम्न कहता है कि हां देवर्षि युद्ध भूमि में यूं लग रहा था कि मानो उस पर अस्त्र-शस्त्रों की नहीं भूलों की वर्षा हो रही है।
यह सुनकर नारदमुनि कहते हैं कि फिर भी तुम उस पर सहज विजय की बात करते हो। यह सुनकर प्रद्युम्न कहता है कि तो आप ही बताइये मुनिवर की उस दुष्ट को मैं कैसे नष्ट करूं? फिर नारदमुनि प्रद्युम्न को रहस्य बताते हैं कि प्रद्युम्न जब तक तुम कुंभकेतु के कक्ष के यज्ञकुंड अग्नि को बुझा नहीं दोगे तब तक कुंभकेतु का वध नहीं कर पाओगे और जब तक कुंभकेतु का वध नहीं हो जाता तब तक संभरासुर का वध करना असंभव है। कुंभकेतु की पत्नी को साक्षात यमदेव का वरदान है कि जब तक यज्ञकुंड की अग्नि जलती रहेगी तब तक कुंभकेतु का कोई वध नहीं कर सकेगा।..यह सुनकर प्रद्युम्न कहता है कि इसका अर्थ ये हुआ कि कुंभकेतु से युद्ध करने से पूर्व मुझे उस यज्ञकुंड की अग्नि को नष्ट करना होगा।.. इस पर नारदमुनि कहते हैं- नारायण नारायण अवश्य। वे वहां से चले जाते हैं।
इसके बाद प्रात:काल प्रद्युम्न आसमान में एक बाण छोड़कर बिजली पैदा करता है जिसके कड़कने की भयंकर आवाज उत्पन्न होती है।
फिर प्रद्युम्न शंखघोष करके संभरासुर और मायावती की नींद खोल देता है। दोनों चौंककर उठ जाते हैं और भयभित होकर वह शंख ध्वनि सुनते हैं। मायावती कहती है- स्वामी ये शंख ध्वनि सुन रहे हैं ना आप कहीं प्रद्युम्न तो.. यह सुनकर संभरासुर कहता है- हां मुझे भी यही शंका है। तब मायावती कहती है- परंतु स्वामी वो जीवित कैसे हो गया?
फिर कुंभकेतु भी अपनी पत्नी के समक्ष कहता है कि मेरा मन किसी विषैले सांप की भांति बार-बार फन उठाकर पूछ रहा है कि प्रद्युम्न जीवित कैसे रह गया। यह सुनकर कामिनी कहती है- अब क्या होगा स्वामी? तब कुंभकेतु कहता है चिंता की कोई बात नहीं कामिनी। अब मैं स्वयं अपने पैरों तले उसे संपोले को कुचल डालूंगा।
उधर, प्रद्युम्न रथ लेकर नगर के पास पहुंकर सारथी से कहता है- ठहरो सारथी! फिर वह कुंभकेतु और उसकी सेना को देखता है। उधर, कुंभकेतु की पत्नी अपने यज्ञकुंड में अपनी साधना से हवा में पहुंचकर घी और समिधा डालकर चामुंडा का मंत्र जप करने लगती है।
फिर इधर, प्रद्युम्न कहता है- कुंभकेतु यूं चकित होकर क्या देख रहे हो? मैं जीवित हूं और तुम्हारे सामने हूं। क्यों विश्वास नहीं होता ना? तो आओ मुझे छूकर देख लो। मैं कोई माया नहीं स्वयं मायापति हूं। यह सुनकर कुंभकेतु कहता है कि अच्छा हुआ तुम मरे नहीं परंतु अब मैं तुम्हें कठिन से कठिन मृत्यु दूंगा। मेरे हाथों तड़प-तड़प कर मरोगे तुम।
फिर दोनों में युद्ध प्रारंभ होता है तो प्रद्युम्न कहता है कि अब तुम्हारे इन अस्त्रों से काम नहीं चलेगा। तुम तो बड़े मायावी हो अपने तरकश से कोई महान तीर निकालो।.. यह सुनकर रुक्मिणी श्रीकृष्ण से कहती है- प्रभु प्रद्युम्न की युद्ध नीति मेरी समझ में नहीं आई देवर्षि ने उसे स्पष्ट शब्दों में समझा दिया था परंतु ये देखिये वो दो कुंभकेतु के साथ युद्ध कर रहा है। वो कामिनी के यज्ञकुंड को नष्ट करने का प्रयास क्यों नहीं कर रहा है? यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि देवी प्रद्युम्न ने योग्य नीति अपनाई है वह कामिनी के पुण्य के शून्य होने की प्रतीक्षा कर रहा है। कामिनी अपनी पति की सुरक्षा के लिए इतनी उत्सुक है कि वह स्वयं अपने हाथों अपने पुण्य को नष्ट कर रही है।
फिर उधर, प्रद्युम्न अपनी माया से कुंभकेतु के रथ को क्षतिग्रस्त कर उसे अचेत कर देता है जिसे देखकर कामिनी विचलित और क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में और घी डालकर एक धनुर्धर राक्षस पैदा करके उसे आज्ञा देती है कि जाओ रणभूमि में जाकर मेरे स्वामी के शत्रु प्रद्युम्न का वध कर दो। वह राक्षस चला जाता है।
रणभूमि में प्रकट होकर राक्षस देखता है कि कुंभकेतु अचेत है और उसका सारथी उसे जगाने का प्रयास कर रहा है। फिर वह प्रद्युम्न को देखकर उस पर बाण साधकर छोड़ देता है तो प्रद्युम्न अपनी माया का प्रयोग करके उसके बाण को विफल कर देता है। यह देखकर कामिनी क्रोधित हो जाती है।..फिर प्रद्युम्न उस राक्षस का वध कर देता है।
उधर, श्रीकृष्ण कहते हैं कि आज तक कामिनी ने आसुरी विद्या का प्रयोग नहीं किया था परंतु आज वो कुंभकेतु की रक्षा के लिए आसुरी विद्या का प्रयोग कर रही है। देवी प्रद्युम्न अपनी माया के प्रयोग से कामिनी को चिंतित कर उसके विश्वास को तोड़कर उसे अधिक से अधिक आसुरी विद्या का प्रयोग करने पर विवश कर रहा है।
फिर कामिनी अपनी माया से अग्निकुंड से एक राक्षसनी को पैदा करती है और उसे आदेश देती है कि कृत्या! शीघ्र जाओ और उस घमंडी प्रद्युम्न का विनाश कर दो। कृत्या कहती है- जो आज्ञा स्वामिनी। फिर कृत्या जाकर देखती है कि कुंभकेतु अचेत है जिसे उसका सारथी जगाने का प्रयास कर रहा है। फिर वह प्रद्युम्न को देखकर क्रोधित हो जाती है और फिर दोनों में मायावी युद्ध होता है। अंत में वह राक्षसनी कृत्या भी मारी जाती है। यह देखकर कामिनी और भी ज्यादा क्रोधित हो जाती है।
फिर प्रद्युम्न अपनी माया से नकली संभरासुर पैदा करके उसे कामिनी के पास भेज देता है। वह कामिनी के कक्ष में जाकर खड़ा हो जाता है। यह देखकर कामिनी अपनी साधना छोड़कर खड़ी हो जाती है और तब वह उन्हें प्रणाम करती है तो नकली संभरासुर इधर-उधर देखकर उदास हो जाता है तो कामिनी पूछती है क्या हुआ? तब प्रद्युम्न का भेजा संभरासुर उदास और निराश भाव से कहता है- क्या बताऊं पुत्रवधु...क्या बताऊं। यह सुनकर कामिनी आशंकित होकर कहती है बताइये ना क्या हुआ है? तब वह कहता है- कैसे बताऊं पुत्री, ना मुझमें बताने का साहस है और न तुममें सुनने का साहस है। कैसे कहूं कि मैं तुम्हारा अपराधी हूं?
तब कामिनी कहती है- अपराधी और मैं! ये आप क्या कह रहे हैं? तब वह संभरासुर कहता है- पुत्री उस ग्वाले पुत्र प्रद्युम्न ने मेरे कुंभकेतु का भी वध कर दिया। यह सुनकर कामिनी बदहवास होकर कहती है- नहीं ये नहीं हो सकता। असंभव है ये असंभव। तब संभरासुर कहता है कि कृष्ण और कृष्ण पुत्र के लिए कुछ भी असंभव नहीं कामिनी कुछ भी असंभव नहीं। वह शत्रु पुत्र सपोंला तो द्वारिका के कृष्ण से भी महाभयंकर निकला। एक के बाद एक वो मेरे पुत्रों को डंस चुका है। उसके महाविष से मेरा कुंभकेतु भी नहीं बच सका।
यह सुनकर कामिनी रोते हुए कहती है- नहीं आप सत्य नहीं बोल रहे हैं, झूठ बोल रहे हैं। मेरी मांग सुनी नहीं हो सकती, मैं सुहागन हूं सदा सुहागन। तब वह संभरासुर कहता है- मैं भी इस सत्य को मानने को तैयार नहीं था कामिनी परंतु सत्य तो सत्य होता है। यह सुनकर कामिनी कहती है- ये सत्य नहीं है देखिये यज्ञकुंड की अग्नि जल रही है, मेरे पति जीवित है। मैं सुहागन हूं और सदा सुहागन ही रहूंगी। अग्निदेव ने मुझे वरदान दिया है। मेरे पति को अमर जीवन प्रदान किया है।
यह सुनकर नकली संभरासुर कहता है कि तुम इन देवताओं के भ्रम में मत आना कामिनी। मैं इन देवताओं को भलिभांति जानता हूं। इन देवताओं ने मेरे विरुद्ध चाल चली है, षड्यंत्र रचा है। छल किया है मेरे साथ। प्रद्युम्न उन्हीं की चाल से बड़ा हुआ है। वो कल का बालक, वो सपोंला आज अजगर बन गया है और मेरे पुत्रों को एक-एक करने निगल गया है। मेरे ही कारण उसने तुम्हारे सुहाग को अपने मुंह का निवाला बना दिया। देवताओं का मेरे साथ ये छल है कपट है। तुम इन देवताओं पर विश्वास मत रखो कामिनी।
यह सुनकर कामिनी का विश्वास टूट जाता है और वह अपने गले का मंगलसूत्र तोड़ देती है, अंगुठियां निकाल देती हैं और चूढ़ियां भी उतार कर फेंक देती है। फिर वह क्रोधित होकर यज्ञ की अग्नि को जल से बूझा देती है तब उसमें से अग्निदेव निकलकर कहते हैं ये तुमने क्या किया कामिनी, तुमने मेरा अपमान कर दिया? अब तुम्हारे पति को कोई नहीं बचा सकता। तब कामिनी आश्चर्य से पूछती है तो क्या मेरे पति जीवित हैं? इस पर अग्निदेव कहते हैं कि हां वे जीवित है और ये तो प्रद्युम्न की माया है। यह सुनकर कामिनी प्रद्युम्न द्वारा भेजे गए नकली संभरासुर की ओर देखने लगती है तो वह जोर जोर से हंसता हुआ अदृश्य हो जाता है। जय श्रीकृष्णा।